दिल्ली मंत्रिमंडल में नहीं होगा कोई मुसलमान ?
दिल्ली मंत्रिमंडल में नहीं होगा कोई मुसलमान, बीजेपी कैसे निकालेगी समाधान, जानें कब-कब मुस्लिम मुक्त रही कैबिनेट
दिल्ली को पहला मुस्लिम मंत्री शीला दीक्षित की सरकार के पहले कार्यकाल के दौरान मिला था. शीला की अगुवाई में कांग्रेस की लगातार 3 बार सरकार बनी और तीनों ही बार किसी न किसी मुस्लिम को मंत्री बनाया गया. हालांकि बीजेपी और AAP के पहले कार्यकाल के दौरान दिल्ली में कोई मुस्लिम मंत्री नहीं बना था.

दिल्ली विधानसभा चुनाव में करारी मात खाने के बाद आम आदमी पार्टी (AAP) सत्ता से बाहर हो गई है. भारतीय जनता पार्टी (BJP) प्रचंड बहुमत के साथ 27 साल बाद दिल्ली की सत्ता में वापसी करने में कामयाब रही है. विधायक दल की बैठक के साथ ही बीजेपी जल्द ही मुख्यमंत्री के नाम पर फाइनल मुहर लगाने के साथ मंत्रिमंडल के गठन की प्रक्रिया पूरी कर लेगी, लेकिन यह पूरी तरह ‘मुस्लिम मुक्त कैबिनेट’ होगी. हालांकि, राजधानी की सियासत में यह पहली बार नहीं है, जब कोई मुस्लिम मंत्री नहीं होगा.
केंद्र शासित प्रदेश दिल्ली की सल्तनत पर कांग्रेस का कब्जा रहा हो या फिर आम आदमी पार्टी का, दोनों ही दलों ने मुस्लिम मतों को साधे रखने के लिए मुस्लिम समुदाय से मंत्री बनाने का दांव चलती रही है. बीजेपी के सत्ता में वापसी करने के साथ ही 10 साल के बाद एक बार फिर दिल्ली सरकार में कोई मुसलमान मंत्रिमंडल का हिस्सा नहीं बना सकेगा, लेकिन सवाल यह अल्पसंख्यक मंत्रालय का समाधान बीजेपी कैसे निकालेगी?
दिल्ली में मुस्लिम मुक्त होगी बीजेपी की कैबिनेटविधानसभा चुनाव में 4 मुस्लिम विधायक बने हैं और चारों ही आम आदमी पार्टी से हैं. बीजेपी ने दिल्ली में इस बार किसी भी मुस्लिम समाज के नेता को टिकट नहीं दिया था. बीजेपी के नवनिर्वाचित 48 विधायकों में कोई भी मुस्लिम समुदाय से नहीं है.
ऐसे में बीजेपी दिल्ली सरकार में अल्पसंख्यक मंत्रालय का जिम्मा गैर-मुस्लिम अल्पसंख्यक समुदाय के नेता को सौंप सकती है. बीजेपी पंजाबी या फिर सिख समुदाय से किसी व्यक्ति को मंत्री बना सकती है. इस तरह 27 साल बाद सत्ता में लौटी बीजेपी दिल्ली में ‘मुस्लिम मुक्त कैबिनेट’ का गठन करेगी.
कैसी थी BJP की पहली सरकार की कैबिनेटदिल्ली में पहली बार जब 1993 में बीजेपी की सरकार बनी थी तो पार्टी ने पंजाबी या सिख समुदाय से जीत कर आए विधायक को मंत्री बनाया था. मदनलाल खुराना की अगुवाई में पहली बार बीजेपी की सरकार बनी थी तो जगदीश मुखी, साहिब सिंह वर्मा, हरशरण सिंह बल्ली, सुरेंद्र पाल रातावल, लालबिहारी तिवारी और हर्षवर्धन को मंत्री बनाया गया था.
खुराना के बाद जब साहिब सिंह दिल्ली के मुख्यमंत्री बने तो राजेंद्र गुप्ता को मंत्री बनाया गया और लालबिहारी तिवारी के सांसद चुने जाने के बाद देवेंदर सिंह शौकीन को भी मंत्री बनने का मौका मिला. इस तरह पहली बीजेपी कैबिनेट में कोई मुस्लिम चेहरा नहीं था, लेकिन अल्पसंख्यक चेहरे के तौर पर सिख समुदाय से आने वाले हरशरण सिंह बल्ली जरूर मंत्रिमंडल का हिस्सा रहे.
शीला दीक्षित सरकार में मुस्लिम मंत्रीदिल्ली में कांग्रेस की लगातार 3 बार सरकार बनी और तीनों ही बार सत्ता की बागडोर शीला दीक्षित ने संभाला. 1998 में कांग्रेस ने बीजेपी को सत्ता से बेदखल कर पहली बार सरकार बनाई थी. शीला दीक्षित मुख्यमंत्री बनी थीं, जिनकी कैबिनेट में मुस्लिम चेहरे के चौर पर परवेज हाशमी को शामिल किया गया था. इसके अलावा सिख समुदाय से आने वाले महिंदर सिंह साठी को भी सिख चेहरे के तौर पर शामिल किया था.
इसके बाद 2003 में कांग्रेस की जब दोबारा सरकार बनी तो शीला दीक्षित ने अपनी कैबिनेट में मुस्लिम चेहरे के तौर पर हारुन यूसुफ को मंत्री बनाया था और सिख चेहरे के तौर पर अरविंदर सिंह लवली को मंत्रिमंडल में जगह दी थी.
साल 2008 में शीला दीक्षित की अगुवाई में तीसरी बार कांग्रेस की सरकार बनी तो मुस्लिम चेहरे के तौर पर दूसरी बार हारुन यूसुफ को मंत्रिमंडल में जगह दी गई. ऐसे ही सिख चेहरे के तौर पर अरविंदर सिंह लवली को भी दूसरी बार मंत्री बनाया गया. शीला दीक्षित ने अपने तीनों ही सरकार के दौरान मुस्लिम और सिख समाज के नेताओं को मंत्री बनाए रखा था. इसके अलावा कांग्रेस ने दलित, पंजाबी और अन्य समाज के नेताओं को मंत्रिमंडल में जाकर देकर सियासी बैलेंस बनाकर रखा हुआ था.
केजरीवाल की सरकार में मुस्लिम मंत्री2013 में पहली बार अरविंद केजरीवाल की अगुवाई में सरकार बनी थी और तीन बार दिल्ली की सत्ता पर काबिज रहे. 2013 में केजरीवाल ने कांग्रेस से समर्थन लेकर सरकार बनाई थी. उसके बाद 2015 और 2020 में पूर्ण बहुमत के साथ आम आदमी पार्टी की सरकार बनी. दिल्ली में लगातार तीन बार आम आदमी पार्टी की सरकार बनी, जिसमें पहली बार छोड़कर दोनों ही बार बनी सरकार में मुस्लिम चेहरे को जगह दी गई थी.
साल 2015 में केजरीवाल मंत्रिमंडल में मुस्लिम चेहरे के तौर आसिम मोहम्मद खान को पहले मंत्री बनाया था, लेकिन छह महीने बाद ही उनकी कैबिनेट से छुट्टी हो गई. केजरीवाल ने आसिम खान को हटाकर उनकी जगह इमरान हुसैन को मंत्री बनाया. इसके बाद 2020 में तीसरी बार केजरीवाल की सरकार बनी तो मुस्लिम चेहरे के तौर पर इमरान हुसैन को फिर दूसरी बार मंत्री बनाया गया. हालांकि केजरीवाल कैबिनेट में सिख समुदाय से कोई भी मंत्री नहीं रहा.
कब-कब मुस्लिम मुक्त कैबिनेटदिल्ली में पहली बार मुस्लिम मुक्त कैबिनेट का गठन नहीं होना जा रहा है बल्कि 1993 में बनी बीजेपी सरकार में भी कोई मुस्लिम मंत्री नही रहा. इसके बाद अरविंद केजरीवाल की अगुवाई में पहली बार 2013 में बनी आम आदमी पार्टी की सरकार में भी कोई मुस्लिम चेहरा मंत्री नहीं रहा. इसके पीछे वजह यह रही कि 1993 में बीजेपी की सरकार हो या फिर 2013 के बनी आम आदमी पार्टी की सरकार. दोनों ही पार्टी से कोई भी मुस्लिम विधायक उस समय जीतकर नहीं आया था.
1993 में बीजेपी की ओर से कोई भी मुस्लिम नेता चुनाव जीतत सका. इसी तरह 2013 में आम आदमी पार्टी से भी कोई मुस्लिम विधायक नहीं चुना गया था. इसके चलते दोनों ही सरकारों के दौरान दिल्ली में कोई भी मुस्लिम मंत्री नहीं बना सका था.
बीजेपी कैसे निकालेगी समाधानशीला दीक्षित की अगुवाई में तीन बार सरकार बनी और तीनों ही बार कांग्रेस से मुस्लिम विधायक चुनकर आए थे, जिसके चलते उन्हें कैबिनेट में शामिल किया गया था. इसी तरह आम आदमी पार्टी से जब 2015 और 2020 में मुस्लिम विधायक जीतकर आए थे तो अरविंद केजरीवाल ने उन्हें कैबिनेट में जगह दी. अब बीजेपी से कोई भी मुस्लिम विधायक जीतकर नहीं आया तो कैसे कैबिनेट में जगह देगी. हालांकि, पार्टी ने टिकट ही नहीं दिया तो जीतकर आएंगे कैसे?
27 साल बाद सत्ता में वापसी करने वाली बीजेपी दिल्ली में भले ही किसी मुस्लिम को कैबिनेट का हिस्सा न बनाए, लेकिन अल्पसंख्यक समुदाय के कोटा भरने के लिए किसी सिख समुदाय के नेता पर दांव खेल सकती है. बीजेपी के टिकट पर अल्पसंख्यक समुदाय से आने वाले राज कुमार भाटिया, मनजिंदर सिंह सिरसा, आशीष सूद, हरिश खुराना, उमंग बजाज, तरविंदर सिंह मारवाह या अरविंदर सिंह लवली चुनाव जीतकर आए हैं, जिनमें से किसी न किसी का मंत्री बनना तय है. ऐसे में देखना है कि क्या बीजेपी किसी अल्पसंख्यक चेहरे को कैबिनेट को जगह देगी?