मिट्टी में मिल गए सुहाने सपने ?
दिसंबर 2015 में कथित जनलोकपाल बिल विधानसभा से पास किया गया और उपराज्यपाल के पास भेजा गया। वहां से उसे दिल्ली सरकार को वापस भेज दिया गया। इसके बाद वह कहां गया इसका पता आज तक नहीं चला। जल्द ही दिल्ली भी भूल गई और देश भी कि एक वक्त किस तरह सारे नेताओं को चोर बताकर इसी जनलोकपाल के लिए आसमान सिर पर उठाया गया था।
……वर्ष 2011 के वे दिन याद करें, जब अन्ना आंदोलन के दौरान भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने के लिए जनलोकपाल विधेयक लाने की मांग की जा रही थी। इस आंदोलन ने सारे देश में अलख जगाई और इसका नतीजा यह हुआ कि संसद ने छुट्टी के दिन लोकपाल विधेयक पारित किया। इस आंदोलन की सफलता से उत्साहित केजरीवाल ने राजनीति में न उतरने के वादे और अन्ना हजारे की असहमति के बाद भी 2012 में राजनीतिक दल के गठन का फैसला किया।
2013 में नवगठित आम आदमी पार्टी ने दिल्ली विधानसभा चुनाव में 28 सीटें जीतकर इतिहास रच दिया। इन चुनावों में आप ने जिस कांग्रेस का बेड़ा गर्क किया, उसी ने इस डर से केजरीवाल को समर्थन देकर मुख्यमंत्री बना दिया कि भाजपा सत्ता में न आ जाए। केजरीवाल ने जल्द ही कांग्रेस पर यह तोहमत मढ़कर इस्तीफा दे दिया कि वह जनलोकपाल बिल दिल्ली विधानसभा में नहीं लाने दे रही है।
वह इस बिल को पेश करने के पहले केंद्र सरकार की अनुमति लेने को तैयार नहीं थे, जो नियमतः आवश्यक थी। केजरीवाल के इस्तीफे से उनके समर्थक नाराज हुए, मगर वह यह संदेश देने में लगे रहे कि भ्रष्टाचार से लड़ाई में कोई समझौता नहीं होगा। बाद में केजरीवाल 49 दिन में सत्ता छोड़ने के फैसले पर बार-बार माफी मांगकर 2015 के विधानसभा चुनाव में उतरे।
इस बार उन्होंने 67 सीटें जीतकर सबको चौंका दिया। फरवरी 2015 में उन्होंने फिर सरकार बनाई, लेकिन जल्द ही यह दिखने लगा कि उनका इरादा जो भी हो, भ्रष्टाचार से लड़ना कतई नहीं है। इसका संकेत तब मिला, जब प्रशांत भूषण, योगेंद्र यादव जैसे केजरीवाल से असहमत लोगों को पार्टी से निकालने या उनके स्वतः बाहर जाने का सिलसिला कायम हो गया और जो जनलोकपाल आप का सबसे बड़ा मुद्दा था, वह नेपथ्य में चला गया।
जब यह आवाज उठनी शुरू हुई कि आखिर दिल्ली में कोई लोकायुक्त क्यों नहीं तो दिसंबर 2015 में रेवा क्षेत्रपाल लोकायुक्त बनीं। जनवरी 2019 में जब क्षेत्रपाल ने केजरीवाल समेत उनके विधायकों से अपनी संपत्ति की जानकारी देने का नोटिस जारी किया तो विधानसभा अध्यक्ष रामनिवास गोयल ने कहा कि वह किस कानून के तहत यह जानकारी मांग रही हैं?
यह भी सनद रहे कि आप की कार्यकारिणी ने मार्च 2015 में अपने पहले आंतरिक लोकपाल को हटा दिया। इसके बाद जो आंतरिक लोकपाल बने, उन्होंने कुछ महीने बाद इस्तीफा दे दिया। फिर जो इस पद पर आए, वह तीन माह तक ही टिके। इसके बाद किसी को इस पद पर नहीं लाया गया। इस तरह न बांस रहा और न बांसुरी बजी।
दिसंबर 2015 में कथित जनलोकपाल बिल विधानसभा से पास किया गया और उपराज्यपाल के पास भेजा गया। वहां से उसे दिल्ली सरकार को वापस भेज दिया गया। इसके बाद वह कहां गया, इसका पता आज तक नहीं चला। जल्द ही दिल्ली भी भूल गई और देश भी कि एक वक्त किस तरह सारे नेताओं को चोर बताकर इसी जनलोकपाल के लिए आसमान सिर पर उठाया गया था।
रेवा क्षेत्रपाल 2020 में रिटायर हो गईं और फिर मार्च 2022 तक यानी दो साल तक लोकायुक्त पद रिक्त बना रहा। नए लोकायुक्त की नियुक्ति तब हुई, जब दिल्ली हाईकोर्ट में इसके लिए जनहित याचिका दायर की गई। 2018 में जब अपने नेताओं को राज्यसभा भेजने की बारी आई तो जाने-पहचाने चेहरों-आशुतोष, कुमार विश्वास आदि के बजाय संजय सिंह और अनजान से, लेकिन अमीर गुप्ताद्वय ने बाजी मार ली।
इनमें से एक गुप्ताजी तो एक महीने पहले कांग्रेस में थे। गुप्ताद्वय को राज्यसभा चाहे जिस कारण भेजा गया हो, हम सब जानते हैं कि कुछ लोग पैसे के बल पर राज्यसभा पहुंच जाते हैं। समय के साथ आप तेजी से अन्य दलों जैसी बनने लगी। मौकापरस्त और दलबदलू किस्म के नेता आप में शामिल होने लगे। 2020 में वह फिर से दिल्ली की सत्ता में आ तो गई, लेकिन आप नेताओं की ओर से नई तरह की राजनीति का नाम लेना बंद कर दिया गया और रेवड़ियां बांटने को सफल केजरीवाल माडल बताया जाने लगा।
जब शराब नीति घोटाला सामने आया तो आप ने कहा कि यह सर्वश्रेष्ठ शराब नीति है, लेकिन जब शोर बढ़ा तो इसी सर्वश्रेष्ठ नीति को वापस ले लिया गया। इस तरह आप ने खुद ही यह संदेह पैदा कर दिया कि दाल में कुछ तो काला है। भ्रष्टाचार से लड़ने का दावा करने वाला ही भ्रष्टाचार के गंभीर आरोपों से घिर गया। रही-सही कसर मुख्यमंत्री आवास की अति विलासी साज-सज्जा ने पूरी कर दी।
आरोप लगा कि कोरोना काल में इस आवास को शीशमहल जैसा बनाने के लिए 45 करोड़ रुपये खर्च किए गए। ऐसी खबरें आईं कि इस आवास में तमाम महंगे साजो-सामान के साथ आठ-दस लाख रुपये की टायलेट सीट लगाई गईं। आप की हार पर कोई फिल्म बने तो उसका नाम टायलेट-एक पराजय कथा भी हो सकता है।
जो भी हो, इस पर यकीन करना अब भी कठिन है कि जो नेता कभी साधारण सी शर्ट, हवाई चप्पल पहनता था, वैगन-आर में चलता था और डंके की चोट पर कहता था कि हम न तो बंगला लेंगे, न सुरक्षा, न बड़ी कारें, उसने राजा-महाराजा जैसी जीवनशैली अपना ली। केजरीवाल की हार पर उन्हें ही हैरानी होनी चाहिए, जो यह भूल गए हों कि नई तरह की राजनीति का नाम लेकर उन्होंने दिल्ली और देश को कैसे सुंदर सपने दिखाए थे।
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शराब…शीशमहल और ‘जहरीली’ यमुना, कैसे डूबी अरविंद केजरीवाल की नैया? हार की 10 सबसे बड़ी वजह
Delhi Chunav Results 2025 दिल्ली चुनाव के परिणाम बीजेपी के पक्ष में आए। 10 साल तक सत्ता में रहने के बाद आखिरकार आप के हाथ से दिल्ली की कुर्सी छिन गई। अरविंद केजरीवाल को लगातार तीन बार दिल्ली की जनता ने सत्ता दिलाई। लेकिन इस बार ऐसे क्या कारण रहे कि केजरीवाल एंड पार्टी की बुरी हार हुई और बीजेपी को प्रचंड जीत मिली। पढ़िए हार की 10 बड़ी वजह।
- 2013 में एंटी करप्शन मूवमेंट चलाकर चुनाव जीती थी आप
- जेल जाने से केजरीवालकी साख पर बुरी तरह ‘बट्टा’ लगा
- ‘आप’ के दरकते किले पर भारी पड़ा बीजेपी का चुनाव मैनेजमेंट
आखिर वो 10 बड़ी वजह क्या हैं, जिन्होंने केजरीवाल और उनकी पार्टी से दिल्ली की कुर्सी छीन ली।1. शराब घोटाले और करप्शन ने धूल में मिला दी ‘ईमानदार’ छवि
- अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली में शराब पॉलिसी लेकर आए और दिल्ली के युवाओं को साधने की कोशिश की। दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में विशेष आफर के साथ धड़ल्ले से शराब बिकने लगी। उपराज्यपाल वीके सक्सेना ने आबकारी नीति पर सवाल उठाए और केंद्रीय एजेंसियों से इसकी जांच की डिमांड कर डाली।
- तब केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो यानी सीबीआई ने भ्रष्टाचार और ईडी यानी प्रवर्तन निदेशालय मनी लॉन्ड्रिंग का अपराध दर्ज करलिया। 21 मार्च के दिन अरविंद केजरीवाल को गिरफ्तार कर लिया गया।
- केजरीवाल की गिरफ्तारी से दिल्ली वालों के दिल पर गहरी ठेस पहुंची। क्योंकि जिस केजरीवाल को ईमानदर छवि के रूप में दिल्ली ने पलकों पर बिठाया, वही करप्शन के केस में जेल चले गए।
- अरविंद केजरीवाल 6 महीने से भी ज्यादा समय तक जेल में रहे। बीजेपी ने अरविंद केजरीवाल की ‘करप्ट’ छवि को पूरी ताकत से जनता के सामने रखा। इससे केजरीवाल और ‘आप’ की साख पर बुरी तरह ‘बट्टा’ लगा।
2. 10 साल तक किया राज, एंटी इनकंबेंसी रहा बड़ा फैक्टर
- किसी भी नेता या पार्टी की कितनी भी चमत्कारिक छवि हो, कितना ही सुराज हो। जनता एक समय बाद बदलाव ही चाहती है। 10 साल के शासनकाल में तीन बार लगातार केजरीवाल को दिल्ली की ‘कुर्सी’ पर बिठाने के बाद अब जनता का मन-मानस भी बदलाव के मूड दिखा।
- डबल इंजन की सरकार: दिल्ली की जनता ने 10 साल केजरीवाल के शासन के बाद यह समझ लिया कि जेल, करप्शन और पार्टी में भितरघात व लगातार ‘आप’ छोड़ते नेताओं की ‘रेलमपेल’ की बजाय दिल्ली में इस बीजेपी पर विश्वास करना ही ज्यादा उचित होगा। इस कारण बीजेपी के लिए जमकर वोट डाले और प्रचंड जीत दिला दी।
3. करोड़ों के शीशमहल ने तोड़ी केजरीवाल की मफलर वाली छवि
- अरविंद केजरीवाल ने सड़क पर लड़ाई लड़ी, पानी की बौछारें सहन की और 2012 में एंटी करप्शन मूवमेंट में सरकार के भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाई। प्रतिसाद में जब केजरीवाल को दिल्ली की कुर्सी मिली तो वक्त के साथ उन्होंने अपनी छवि ही बदल डाली।
- जो केजरीवाल मफलर, स्वेटर और सिर पर टोपी पहनकर खुद को कॉमन मैन बताते थे और कहते थे कि वे कभी सरकारी आवास और गाड़ी तक का उपयोग नहीं करेंगे। इन्हीं केजरीवाल पर सरकारी बंगले को शीशमहल बनाने का आरोप लगा। सरकारी आवास को चमकदार और आलीशान बनाने के लि 45 करोड़ रुपये के खर्च को बीजेपी ने सबके सामने उजागर कर दिया।
- बीजेपी के हर नेता ने अपनी जनसभाओं में और मीडिया चर्चा में केजरीवाल की शीशमहल वाली छवि को ताकत के साथ रखा। इसका खासा प्रभाव दिल्ली की जनता पर पड़ा। ‘आप’ के लिए वोटिंग और नतीजों पर इसका विपरीत असर पड़ा।
- केजरीवाल पर दिसंबर 2024 में आरोप लगा कि सरकारी बंगले में उन्होंने 1.9 करोड़ रुपए से मार्बल ग्रेनाइट, लाइटिंग और 35 लाख रुपए का जिम व स्पा बनवाया है। बीजेपी ने इसका वीडियो भी जारी किया था।
4. जहरीली यमुना पर उलटा पड़ गया केजरीवाल का दांव

- केजरीवाल ने 2020 के पिछले चुनाव में जीत के बाद यमुना को साफ करने का बड़ा वादा किया था और पूर्ववर्ती बीजेपी और कांग्रेस सरकारों को यमुना के मामले में कटघरे में खड़ा किया था। लेकिन यमुना आज भी साफ नहीं हो पाई। छठ पूजन के दौरान भी ‘मैली’ यमुना की दुर्दशा पूरे देश ने देखी।
- यमुना के मुद्दे पर घिरने के बाद केजरीवाल ने बचाव में तर्क दिया कि दो साल कोविड की वजह से यमुना को स्वच्छ बनाने का काम नहीं कर पाए। फिर कहा कि वे और उनकी पार्टी के नेता जेल में रहे इस कारण यमुना पर ध्यान नहीं दे पाए। यह तर्क दिल्ली की जनता के गले नहीं उतरे।
- तात्कालिक कारण भी चुनाव में अहम फैक्टर होता है। यमुना पर लगातार घिरने के बाद अरविंद केजरीवाल ने हरियाणा की सरकार पर यमुना को ‘जहरीला’ करने का आरोप मढ़ दिया। इस पर चुनाव आयोग ने केजरीवाल को आड़े हाथों लिया। हरियाणा के सीएम नायब सैनी ने जब यमुना के जल का आचमन किया तो उस पर भी केजरीवाल एंड पार्टी ने कमेंट किया। ऐसे आरोप प्रत्यारोंप का उलटा असर ‘आप’ पर पड़ा, जो हार का एक बड़ा कारण बना।
5. पीएम मोदी Vs केजरीवाल: ‘आप’ पर भारी पड़ा मोदी मैजिक
- पीएम मोदी ने इस बार दिल्ली चुनाव की कमान अपने हाथ में रखी और कुल 5 बड़ी रैलियां कीं। इन रैलियों ने कुल 40 सीटों को कवर किया। मोदी का मैजिक कैसे सक्सेसफुल रहा। इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इनमें से करीब 30 सीटों पर बीजेपी को जीत हासिल हुई।
- पीएम मोदी ने इस बार हिंदु मुसलमान और ‘एक रहेंगे तो सेफ रहेंगे’ से परे, पूरी तरह विकास और जनता की सहूलियतों को अपनी जनसभाओं में प्रमुखता से रखा। इसका सकारात्मक असर मतदाताओं पर पड़ा। पीएम मोदी ने स्पष्ट कहा कि बीजेपी की जीत पर डबल इंजन की सरकार दिल्ली वालों के विकास में कोई कसर नहीं छोड़ेगी।
6. 2100 Vs 2500 रुपये: ‘आप’ पर भारी पड़ी बीजेपी की घोषणाएं
- अरविंद केजरीवाल ने अपनी घोषणाओं में हर महिला को 2100 रुपये प्रति माह का लाभ देने की बात कही। वहीं बीजेपी ने 2500 रुपये प्रतिमाह देने का वादा किया। केजी से पीजी तक फ्री शिक्षा और ऐसे ही बड़े वादे जनता के सामने रखे, जो केजरीवाल की योजनाओं पर भारी पड़े।
- बड़ी बात यह कि महाराष्ट्र में ‘लाडकी बहना’ और उससे पहले मध्यप्रदेश में ‘लाड़ली लक्ष्मी’ योजना सफल रही। बीजेपी ने इन राज्यों में महिलाओं के खातों में पैसा जमा करके दिल्ली की जनता को बता दिया कि वे जीतने के बाद योजना की राशि देने में जरा भी देर नहीं करेंगे। केजरीवाल की घोषणाओं पर बीजेपी की घोषणा इसी वजह से भारी पड़ी।

- बीजेपी ने अरविंद केजरीवाल के सामने अघोषित रूप से प्रवेश को सीएम फेस के रूप में प्रोजेक्ट किया। आज 8 फरवरी को बीजेपी की जीत के बाद प्रवेश वर्मा को अपने घर बुलाकर अमित शाह ने उनसे बातचीत की।
- प्रवेश वर्मा पूर्व सीएम साहिब सिंह वर्मा के बेटे हैं, जो प्रखर और विनम्र वक्ता रहे और जाटों के बड़े नेता के रूप में भी अपनी पहचान बनाई थी। प्रवेश वर्मा को अपने पिता की ही तरह सीएम फेस के रूप में प्रोजेक्ट करने की रणनीति के कारण ही उन्हें लोकसभा चुनाव बीजेपी ने नहीं लड़वाया।
- हालांकि वे सीएम फेस रहेंगे, इसकी बीजेपी ने कोई औपचारिक घोषणा नहीं की, लेकिन ऐसी चर्चाओं का खंडन भी नहीं किया।
8. 12 लाख आय पर छूट, 8वें वेतन आयोग की घोषणा की टाइमिंग
- दिल्ली में करीब 3.38 करोड़ लोग निवास करते हैं। इनमें एक बड़ी आबादी मिडिल क्लास की है। करीब 67 फीसदी लोग मध्यम वर्ग में आते हैं। चुनाव से ठीक पहले बीजेपी ने बजट में 12 लाख रुपये तक की आय पर टैक्स में शत प्रतिशत छूट देकर मिडिल क्लास में खुशी की लहर दौड़ा दी।
- यही नहीं, चुनाव से कुछ ही दिन पहले बीजेपी ने आठवें वेतन आयोग का गठन करने की घोषणा से सरकारी वर्ग के मिडिल क्लास को खुशखबरी दे डाली इन दोनों घोषणाओं की टाइमिंग ऐसी रही कि कुछ ही दिन बाद मिडिल क्लास को दिल्ली में सरकार चुनने के लिए वोट डालना था। नतीजा बीजेपी के पक्ष में आया।
9. बीजेपी का तगड़ा रहा चुनाव मैनेजमेंट और ‘आप’ छोड़ते रहे नेता
- विधानसभा चुनाव से ऐनवक्त पहले आम आदमी पार्टी के करीब 8 बड़े नेताओं ने पार्टी को अलविदा कह दिया। इससे पहले भी पार्टी टूटकर आप नेता बीजेपी में शामिल हो गए। इनमें कैलाश गहलोत का नाम भी शामिल है। वहीं राजेंद्रपाल गौतम ने कांग्रेस का हाथ थामा।
- बीजेपी ने चुनाव का तगड़ा मैनेजमेंट किया, जिससे आप पार नहीं पा सकी। स्टार कैंपेनर सहित खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने प्रचार की कमान संभाली और धुआंधार जनभाएं कीं। इसके अलावा बीजेपी ने अपने सभी मंत्रियों और सीएम और स्टार प्रचारकों तक की पूरी मशीनरी लगा दी। आप का चुनाव मैनेजमेंट बीजेपी के मुकाबले काफी कमजोर रहा। ज्यादातर पुराने नेताओं पर ही आप ने भरोसा जताया। जबकि बीजेपी ने बड़ी संख्या में नए चेहरों को मौका दिया।
- सीएम योगी आदित्यनाथ से लेकर सांसद रवि किशन, मनोज तिवारी और गिरिराज सिंह तक स्टार प्रचारकों ने जमकर प्रचार किया। जाट, उत्तराखंडी, बिहारी और पंजाबी मतदाताओं को साधने के लिए बड़े नेताओं को चुनाव प्रचार में उतारा।
10. केजरीवाल की ‘रेवड़ी पर चर्चा’ पर भारी पड़ी बीजेपी की घोषणाएं
