विकसित भारत के लक्ष्य की बाधाएं, तकनीक और एआई के क्षेत्र में करना होगा कमाल
डिजिटल तकनीक की प्रगति का आधार विज्ञान के ज्ञान में समाहित है। जो देश डिजिटल साइंस और तकनीक में अग्रणी होंगे वे विश्व पर राज करेंगे। हाल में पेरिस में आयोजित आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस शिखर सम्मेलन में अमेरिकी उपराष्ट्रपति जेडी वांस के वक्तव्य से स्पष्ट हुआ कि अमेरिका एआई के सभी क्षेत्रों में अग्रणी बने रहने के लिए कमर कसे हुए है।
…. प्रधानमंत्री मोदी का विकसित भारत का लक्ष्य सराहनीय है। उनके इस लक्ष्य पर सभी देशवासियों को ध्यान केंद्रित करना चाहिए। प्रधानमंत्री मोदी बार-बार यह कहते रहे हैं कि भारत को विकसित देश का लक्ष्य 2047 तक हासिल करना चाहिए। 2047 में हमारी स्वतंत्रता के सौ वर्ष पूरे होंगे। यह कठिन लक्ष्य है, क्योंकि 2047 अब 22 वर्ष ही दूर है।
किसी देश के जीवनकाल में 22 वर्ष पलक झपकते बीत जाते हैं। इसके बाद भी यदि हम भारतीय विकसित भारत के लक्ष्य को पाने के लिए प्रतिबद्ध हो जाएं तो सभी बाधाओं को आसानी से पार किया जा सकता है। विकसित भारत के लक्ष्य को पाने के लिए शिक्षित भारत, स्वस्थ भारत और समृद्ध भारत की भी आवश्यकता है।
इसके साथ ही सामाजिक रूप से शांतिमय भारत की भी आवश्यकता है और इसकी भी कि देश का राजनीतिक वर्ग अपने वैचारिक मतभेदों को भुलाकर देश में शांति-सद्भाव का माहौल बनाए रखने और सुरक्षा चुनौतियों का सामना करने के उपायों पर सहमति कायम करे। यह स्वाभाविक ही है कि हमें सबसे अधिक महत्ता शिक्षित भारत पर देनी होगी। देश को यह सुनिश्चित करना होगा कि प्रत्येक नागरिक शिक्षित हो।
युवाओं की शिक्षा पर विशेष ध्यान देना होगा। इस संदर्भ में अच्छी बात यह है कि वर्तमान में करीब-करीब समाज के सभी तबकों के लोग यह चाहते हैं कि उनके बच्चे अच्छी शिक्षा प्राप्त करें। यह स्थिति स्वतंत्रता के समय या फिर उसके बाद के कालखंड में नहीं थी। प्राइमरी और माध्यमिक शिक्षा की गुणवत्ता को सुधारने पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए।
केंद्र और राज्य सरकारों को शिक्षा की गुणवत्ता सुधारने के मामले में पूरी तौर पर निजी क्षेत्र पर निर्भर नहीं रहना चाहिए और खुद ही कमान अपने हाथ में लेनी चाहिए, ताकि बड़ी संख्या में सरकारी स्कूल जाने वाले छात्रों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा मिलना सुनिश्चित हो सके। इस पर अतिरिक्त ध्यान दिया जाना चाहिए कि सभी स्तरों पर तकनीक और विज्ञान की उच्चस्तरीय शिक्षा प्रदान की जाए।
हमें इसकी अनदेखी नहीं करनी चाहिए कि प्राचीन भारत विज्ञान के कई क्षेत्रों में विश्व की अगुआई कर रहा था। हमारे प्राचीन ग्रंथों में चिकित्सा से लेकर खगोलशास्त्र तक के विषयों पर उत्कृष्ट ज्ञान है। इसमें कोई संदेह नहीं कि प्राचीन भारत विज्ञान के तमाम क्षेत्रों में अग्रणी था, लेकिन यह भी सत्य है कि बाद में इस क्षेत्र में हमारी प्रगति ठहर गई।
यह ठहराव सदियों तक जारी रहा। 15वीं शताब्दी से यूरोपीय देशों ने विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में प्रगति करनी शुरू की। इन क्षेत्रों में प्रगति के साथ ही उनकी सैन्य शक्ति भी बढ़ती गई। इसके बाद 19वी शताब्दी में इन देशों में औद्योगिक क्रांति आई। इसने यूरोप को इतना शक्तिशाली बना दिया कि एशिया, अफ्रीका और दक्षिण अमेरिका के बड़े हिस्से उसके उपनिवेश बन गए। भारत भी ब्रिटेन का उपनिवेश बना और उसके शोषण का भी शिकार हुआ।
स्वतंत्रता आंदोलन के हमारे नेताओं ने यह महसूस किया कि भारत के पतन का एक मुख्य कारण विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में पिछड़ना रहा। स्वतंत्रता के बाद जवाहरलाल नेहरू प्रधानमंत्री बने। उन्हें तमाम नीतिगत गलतियों के लिए दोष दिया जा सकता है, लेकिन देश को इसके लिए उनका आभारी होना चाहिए कि उन्होंने यूरोप और भारत के बीच विज्ञान एवं तकनीक के क्षेत्र में अंतर को पाटने की पूरी प्रतिबद्धता प्रदर्शित की।
उन्होंने विज्ञान एवं तकनीक के उन्नत संस्थानों की स्थापना में विशेष रुचि ली। इनमें से कुछ ने अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त की और कुछ हरित क्रांति तथा औद्योगिक प्रगति में सहायक साबित हुए। इस पर बहस हो सकती है कि नेहरूजी को निजी क्षेत्र पर अधिक भरोसा करना चाहिए था, लेकिन इससे इन्कार नहीं किया जा सकता कि उनके द्वारा स्थापित संस्थानों के चलते परमाणु और अंतरिक्ष समेत विज्ञान एवं तकनीक के कई क्षेत्रों में पश्चिम और भारत के बीच अंतर कम हुआ।
अब आज के डिजिटल दौर में विश्व ने विज्ञान एवं तकनीक के मामले में एक नए युग में प्रवेश कर लिया है। डिजिटल तकनीक की गति विश्व को तेजी से बदल रही है। आज यह कहा जा सकता है कि अतीत के मुकाबले 2025 का परिदृश्य बिल्कुल बदल गया है। डिजिटल तकनीक और उसका उपयोग सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक यानी मानव जीवन के प्रत्येक क्षेत्र को प्रभावित कर रहा है।
डिजिटल तकनीक की प्रगति का आधार विज्ञान के ज्ञान में समाहित है। जो देश डिजिटल साइंस और तकनीक में अग्रणी होंगे, वे विश्व पर राज करेंगे। हाल में पेरिस में आयोजित आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस शिखर सम्मेलन में अमेरिकी उपराष्ट्रपति जेडी वांस के वक्तव्य से स्पष्ट हुआ कि अमेरिका एआई के सभी क्षेत्रों में अग्रणी बने रहने के लिए कमर कसे हुए है। इस सम्मेलन की सहअध्यता भारतीय प्रधानमंत्री और फ्रांस के राष्ट्रपति ने की थी। जेडी वांस का बयान खास तौर पर चीन के परिप्रेक्ष्य में था, जिसके एआई एप डीपसीक ने सारी दुनिया का ध्यान अपनी ओर खींचा है। उनकी टिप्पणी पर भारत को भी गौर करना चाहिए।
भारत एआई के क्षेत्र में बेहतर काम कर रहा है, लेकिन कुछ मामलों में वह अमेरिका, यूरोप और चीन से पीछे है। अनेक विशेषज्ञ यह महसूस करते हैं कि डिजिटल साइंस एवं तकनीक के क्षेत्र में भारत और इन देशों के बीच का अंतर बढ़ रहा है। यह हर लिहाज से खतरे की घंटी है। जहां सरकार को अपने स्तर पर वह सब करना चाहिए, जो वह कर सकती है, लेकिन इसी के साथ देश के निजी क्षेत्र को शोध एवं अनुसंधान पर बड़े पैमाने पर अपने संसाधन खर्च करने पर अवश्य ही विशेष ध्यान देना चाहिए। हमारे निजी क्षेत्र में कुछ लोग विश्व के धनी लोगों में शामिल हैं।
उन्हें शोध एवं अनुसंधान की संस्कृति विकसित करनी चाहिए। वे इस कारण विदेश से तकनीक हासिल करने पर निर्भर नहीं रह सकते कि शोध एवं अनुसंधान पर खर्च करने में जोखिम है। सरकार और निजी क्षेत्र को यह आभास होना चाहिए कि कोई भी देश हमें अपनी उन्नत तकनीक नहीं देगा। यदि भारत सचमुच वैश्विक शक्ति बनने की इच्छा रखता है तो उसे विश्व की तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था के साथ विज्ञान एवं तकनीक और विशेष रूप से एआई के क्षेत्र में भी अगुआ बनना होगा।
(लेखक पूर्व राजदूत हैं)