उत्सव की तरह आयोजित हों परीक्षाएं जीवन में एक मील का पत्थर हो सकती हैं, लेकिन वे अंतिम गंतव्य नहीं
स्कूली शिक्षा के लिए राष्ट्रीय पाठ्यचर्या रूपरेखा एक योग्यता-आधारित दृष्टिकोण प्रदान करती है जिसमें रटने के बजाय गहन अनुभवात्मक शिक्षा की अवधारणा को प्राथमिकता देने की आवश्यकता है। ऐसा होने से शैक्षिक तंत्र पाठ्यक्रम केंद्रित होने के बजाय योग्यता केंद्रित होगा। आगे बढ़ने की चाह छात्रों को प्रदर्शन-संबंधी व्याकुलता दूर करने में सहायता कर सकती है। शैक्षिक तंत्र को विद्यार्थियों की क्षमता और बुद्धिमत्ता के लचीलेपन में विश्वास करना चाहिए।
… इन दिनों देश भर में विभिन्न बोर्डों की 10वीं एवं 12वीं की परीक्षाएं हो रही हैं। इनमें करोड़ों विद्यार्थी भाग ले रहे हैं। गत दिनों प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने छात्रों को परीक्षा के भय से मुक्त करने के लिए परीक्षा पे चर्चा जैसे अपने जनभागीदारी कार्यक्रम का आयोजन किया। इसके जरिये उन्होंने देश भर के छात्रों, अभिभावकों और शिक्षकों को साथ जोड़कर परीक्षा को तनावमुक्त बनाने का प्रयास किया।
यह एक नकारात्मक प्रथा है, जिससे जिज्ञासा, आलोचनात्मक सोच और विश्लेषण की हमारी प्राचीन भारतीय परंपरा काफी हद तक प्रभावित हुई है। हालांकि राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 भारतीय ज्ञान परंपरा के प्रति हमारे विश्वास को पुन: जागृत कर इन प्रतिगामी समस्याओं को हल करने का प्रयास कर रही है, जो मुख्यत: आलोचनात्मक सोच और सीखने-जानने एवं मूल्यांकन के समग्र दृष्टिकोण पर आधारित है।
इसका समग्र उद्देश्य एक सर्वांगीण और संतुलित व्यक्तित्व का निर्माण करना तथा युवाओं में सोचने की प्रवृत्ति एवं कौशल सीखने को प्रेरित करना है। करीब-करीब सभी को परीक्षा के कारण होने वाले तनाव का विभिन्न स्तरों पर सामना करना पड़ता है। व्याकुलता (एंग्जायटी), चिंता, भावुकता और डर जैसे शब्द दुनिया भर में परीक्षाओं अथवा मूल्यांकनों के साथ जुड़े हुए हैं।
यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि ‘एंग्जायटी’ शब्द 2021 का आक्सफोर्ड चिल्ड्रन वर्ड आफ द ईयर घोषित हुआ था। अंतरराष्ट्रीय छात्र मूल्यांकन कार्यक्रम (पीसा) ने 2015 में एंग्जायटी का एक नया सामान्य सूचकांक प्रस्तुत किया-स्कूलवर्क एंग्जायटी सूचकांक। इस सूचकांक में छात्रों के स्कूल के कार्यों और परीक्षाओं पर उनकी प्रतिक्रियाओं की गणना की जाती है।
यह सामान्य बात है कि परीक्षा के समय केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) हेल्पलाइन पर फोन काल की बाढ़ आ जाती है। एनसीईआरटी के 2022 के एक सर्वेक्षण में 81 प्रतिशत छात्रों ने पढ़ाई, परीक्षा और नतीजों को एंग्जायटी का कारण बताया था। अधिकांश अनुभवजन्य शोधों ने स्कूली उपलब्धि और परीक्षा की व्याकुलता के बीच विपरीत संबंध दिखाया है। इसलिए छात्रों को इससे बचाना जरूरी है।
परीक्षाओं को आत्म-अनुशासन के साथ समझना और उसका सुसंगत समाधान एंग्जायटी-मुक्त परीक्षा की कुंजी है। डिजिटल सामग्री के प्रसार ने शिक्षार्थियों के लिए विकल्पों की अधिकता पैदा कर दी है। इस कारण परीक्षा के समय छात्रों को भ्रामक सूचना और भ्रांतिपूर्ण जानकारी के बीच अंतर करने में सक्षम होना चाहिए।
यह समझना उचित है कि भ्रामक सूचना झूठी या गलत सूचना होती है और भ्रांतिपूर्ण जानकारी जानबूझकर गुमराह करने के इरादे से दी जाती है। इसलिए छात्रों को परीक्षा के लिए एक प्रमुख शर्त के रूप में निर्धारित पाठ्यपुस्तक पर ही निर्भर रहना चाहिए। विविध पठन सामग्री के संदर्भ में भटकाव को भी दूर किया जाना चाहिए।
यूनेस्को की 2024 की रिपोर्ट ‘बिहाइंड द स्क्रींस’ में बताया गया है कि 62 प्रतिशत डिजिटल कंटेंट क्रिएटर जानकारी साझा करने से पहले उसकी गहन और व्यवस्थित ढंग से जांच नहीं करते। इसे ध्यान में रखते हुए भ्रम की स्थिति में न पड़कर परीक्षा के दौरान छात्रों एवं शिक्षकों द्वारा प्रामाणिक स्रोतों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। अभिभावक को भी चिंता बढ़ाने के बजाय शांति का स्रोत बनना चाहिए, जबकि सरकार और शिक्षा प्रणाली को मांग एवं आपूर्ति सहज बनाने पर काम करना चाहिए।
हमें रटंत पद्धति से हटकर कौशल-आधारित शिक्षा की ओर बढ़ने के लिए आवश्यक उपाय करने चाहिए। कक्षा को जितना जीवंत बनाया जा सके, उतना ही अच्छा है, जिसमें शिक्षक प्रत्येक बच्चे पर व्यक्तिगत ध्यान दें। पाठ्यक्रम को तैयार करने और मूल्यांकन का काम इस तरह किया जाए कि छात्रों में विकासशील मानसिकता को बढ़ावा मिले और वे बौद्धिक बहुलवाद की ओर अग्रसर हों। हमें छात्रों के कल्याण को उच्चतम प्राथमिकता देनी चाहिए, न कि परीक्षा को।
स्कूली शिक्षा के लिए राष्ट्रीय पाठ्यचर्या रूपरेखा एक योग्यता-आधारित दृष्टिकोण प्रदान करती है, जिसमें रटने के बजाय गहन अनुभवात्मक शिक्षा की अवधारणा को प्राथमिकता देने की आवश्यकता है। ऐसा होने से शैक्षिक तंत्र पाठ्यक्रम केंद्रित होने के बजाय योग्यता केंद्रित होगा। आगे बढ़ने की चाह छात्रों को प्रदर्शन-संबंधी व्याकुलता दूर करने में सहायता कर सकती है। इसके साथ ही शैक्षिक तंत्र को विद्यार्थियों की क्षमता और बुद्धिमत्ता के लचीलेपन में विश्वास करना चाहिए।
परीक्षा छात्रों के आत्मविश्वास में वृद्धि तो करती है, परंतु यह उनकी बुद्धिमत्ता का सटीक मापक नहीं होती। इसलिए हमें उनके जीवन में प्रसन्नता एवं सकारात्मकता के लिए प्रयासरत रहना चाहिए। सभी छात्रों को हेलेन कीलर के इस वक्तव्य को मंत्र के रूप में याद रखना चाहिए कि ‘आपकी सफलता और प्रसन्नता आपके भीतर है।’ छात्र यह समझें कि परीक्षा जीवन में एक मील का पत्थर हो सकती है, लेकिन यह अंतिम गंतव्य नहीं है।
(लेखक शिक्षा मंत्रालय में स्कूली शिक्षा के सचिव हैं)