क्या ओटीटी पर अश्लील कंटेंट ‘अभिव्यक्ति की आजादी’ का गलत इस्तेमाल है?
क्या ओटीटी पर अश्लील कंटेंट ‘अभिव्यक्ति की आजादी’ का गलत इस्तेमाल है?
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19(1)(a) में यह अधिकार दिया गया है कि ‘देश के सभी व्यक्ति अपनी राय व्यक्त करने और अपनी विचारधारा साझा करने के लिए स्वतंत्र है. लेकिन, इस अधिकार पर कुछ सीमाएं भी हैं.
हाल ही में सोशल मीडिया के जाने माने इन्फ्लूएंसर रणवीर इलाहाबादिया ने यूट्यूब के एक शो में ‘विवादित कमेंट’ कर दिया था. उनके इस कमेंट की देश भर में आलोचना हुई, जिसके बाद अब सरकार इस तरह के कंटेंट को लेकर सख्त रुख अपनाने वाली है.
दरअसल पिछले कुछ सालों में ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स पर ‘अश्लीलता और हिंसा’ दिखाने वाले कॉन्टेंट की संख्या न सिर्फ बढ़ी है बल्कि लगातार इसकी शिकायतें भी आ रही है. सूचना एवं प्रसारण (I&B) मंत्रालय के अनुसार अश्लील कॉन्टेंट के लेकर भारत में क्या कानून है इसकी समीक्षा की जा रही है और जल्द ही इसपर सख्त कानून लाया जा सकता है.
ऐसे में सवाल ये उठता है कि क्या वाकई सोशल मीडिया या डिजिटल प्लैटफॉर्म पर दी जाने वाली गालियां या अश्लील डायलॉग्स अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के संवैधानिक अधिकार का दुरुपयोग है. इस रिपोर्ट में विस्तार से समझते हैं कि वर्तमान में डिजिटल प्लैटफॉर्म को लेकर क्या नियम या कानून है?
संविधान में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के बारे में क्या कहा गया है?
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19(1)(a) में यह अधिकार दिया गया है कि ‘देश के सभी व्यक्ति अपनी राय व्यक्त करने और अपनी विचारधारा साझा करने के लिए स्वतंत्र है. लेकिन, इस अधिकार पर कुछ सीमाएं भी हैं. ये सीमाएं अनुच्छेद 19(2) में दी गई हैं, जिसमें यह कहा गया है कि अगर किसी व्यक्ति का भाषण या अभिव्यक्ति सार्वजनिक व्यवस्था, राष्ट्रीय सुरक्षा, सम्मान, या नैतिकता के खिलाफ जाता है, तो उसपर रोक लगाया जा सकता है.
देश में डिजिटल मीडिया को लेकर क्या है कानून?
सरकार ने डिजिटल प्लेटफॉर्म्स को नियंत्रित करने के लिए IT Rules, 2021 बनाए हैं. ये इंटरमीडियरी गाइडलाइन्स और डिजिटल मीडिया एथिक्स कोड के तहत आते हैं. इस कानून का मुख्य मकसद इंटरनेट पर अपलोड किए जा रहे हानिकारक या आपत्तिजनक कंटेंट को रोकना है.
इन नियमों के तहत सोशल मीडिया, OTT प्लेटफॉर्म्स और डिजिटल मीडिया प्लेटफॉर्म्स को कुछ जिम्मेदारियां दी जाती हैं. जैसे यूजर्स का कंटेंट मॉनीटर करना, और कोई भी कंटेंट गैरकानूनी, हिंसक, या अश्लील लगने पर उसे तुरंत प्लैटफॉर्म से हटाना.
आईटी रूल्स 2024 के तहत इन प्लेटफॉर्म्स को यह भी बताना होता है कि कंटेंट किसने पोस्ट किया है. इसके अलावा सोशल मीडिया कंपनियों को एक मुख्य अधिकारी नियुक्त करने और मामले की शिकायतों पर 24 घंटे के भीतर कार्रवाई करने की भी जिम्मेदारी होती है.
भारत में OTT प्लेटफॉर्म्स को कैसे रेगुलेट किया जाता है?
OTT यानी ओवर द टॉप उन प्लेटफॉर्म को कहा जाता है जो इंटरनेट के जरिये वीडियो और ऑडियो कंटेंट दे रहे हैं. जैसे नेटफ्लिक्स, एमेजॉन प्राइम, यूट्युब. डिजनी हॉटस्टार. ऐसे प्लैटफॉर्मस आजकर के युवाओं के बीच कॉफी पॉपुलर भी हो रहा है.
भारत में OTT प्लेटफॉर्म्स को “आईटी रूल के तहत रेगुलेट किया जाता है. इसके अंतर्गत कंटेंट पर निगरानी रखी जाती है और प्लेटफॉर्म्स को अपने कंटेंट में से कुछ निश्चित नियमों का पालन करना होता है, जैसे कि कंटेंट को सही तरीके से कैटेगराइज करना, एडल्ट कंटेंट को सही उम्र के दर्शकों तक सीमित करना आदि.
नए कानूनी ढांचे की जरूरत क्यों है?
हालांकि, वर्तमान में IT Rules, 2021 के तहत ओटीटी प्लेटफॉर्म्स पर कुछ कड़े नियम हैं, फिर भी इन प्लेटफॉर्म्स पर अश्लील और हिंसक कंटेंट को लेकर अभी भी कई समस्याएं हैं. सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने अंतरिम गाइडलाइन्स के तहत इन प्लेटफॉर्म्स से कहा है कि वे “A-रेटेड कंटेंट” के लिए उम्र आधारित वर्गीकरण करें ताकि बच्चों को असंवेदनशील सामग्री से बचाया जा सके.
क्या है सरकार का अगला कदम?
मंत्रालय ने 19 फरवरी को सोशल मीडिया और ओटीटी प्लेटफॉर्म्स को डिजिटल मीडिया एथिक्स कोड लागू करने के निर्देश दिए हैं, जो इन प्लेटफॉर्म्स को सुनिश्चित करने का आदेश देगा है कि वे कानूनी और नैतिक रूप से सही कंटेंट ही प्रसारित करें.
मंत्रालय का कहना है कि सोशल मीडिया और ओटीटी प्लेटफॉर्म्स को नए कानूनी ढांचे के तहत नियंत्रित किया जाना चाहिए ताकि इस तरह से अश्लील कंटेंट पर प्रभावी रोक लगाई जा सके जो समाज में नफरत और हिंसा फैलाता हों.
अश्लीलता है क्या, समय- समय पर बदल गई इसकी परिभाषा
अश्लीलता आमतौर पर गंदी भाषा, तस्वीरें, वीडियो या मैसेज होते हैं, जो लोगों की धार्मिक, सामाजिक या सांस्कृतिक भावनाओं भावनाओं को चोट पहुंचाते हैं. भारतीय कानून के तहत अश्लील सामग्री को लेकर कई कानून हैं जैसे ‘इंडसेंट रिप्रजेंटेशन ऑफ वुमेन एक्ट, 1986 और IT एक्ट.
भारत में अश्लीलता पर अदालतों का नजरिया समय के साथ बदलता गया है. पहले अश्लीलता को बस यौन सामग्री के रूप में देखा जाता था, लेकिन अब कोर्ट इसे समाज की नैतिकता, व्यवस्था और लोगों की इज्जत से जोड़कर देखता है.
उदाहरण के तौर पर, 1957 में सुप्रीम कोर्ट ने ‘रंजीत डी. उडेशी केस’ में कहा था कि अश्लील सामग्री समाज पर बुरा असर डाल सकती है. कुछ समय बाद, ‘साक्षी केस’ में कोर्ट ने यह भी कहा कि किसी को अपनी बात रखने की स्वतंत्रता तो होनी चाहिए, लेकिन इसके साथ जिम्मेदारी भी आनी चाहिए, ताकि किसी की भावनाओं या स्वतंत्रता का उल्लंघन न हो.
यूट्युबर रणवीर इलाहाबादिया के मामले में क्या हुआ
31 वर्षीय इलाहाबादिया, ‘BeerBiceps’ नाम से भी मशहूर हैं. उन्होंने हाल ही में यूट्युब के ही एक शो में माता-पिता पर एक विवादित टिप्पणी की थी. यह बयान सोशल मीडिया पर वायरल होते ही जबरदस्त विरोध शुरू हो गया.
मामला इतना ज्यादा बढ़ गया कि इलाहाबादिया के ‘विवादित कमेंट’ को लेकर उनके खिलाफ केस दर्ज किए गए. हालांकि उन्होंने इस तरह के कमेंट को लेकर माफी मांग ली है लेकिन इससे भी उन्हें कोई मदद नहीं मिली है. सुप्रीम कोर्ट ने उनके ‘वल्गर कमेंट’ पर तल्ख टिप्पणी करने के बाद गिरफ्तारी से राहत जरूर दी है. कोर्ट ने कहा था कि ऐसे बयान अश्लीलता नहीं तो और क्या है. इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट ने यूट्यूब और अन्य सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर अश्लील कॉन्टेंट की रोकथाम के लिए केंद्र सरकार को नोटिस भी जारी किया था.