जैसे कुम्भ में भेदभाव नहीं, काश समाज ऐसा ही होता !

जैसे कुम्भ में भेदभाव नहीं, काश समाज ऐसा ही होता

हर कोई कुम्भ में शामिल हो रहा था। मेरा भी मन हुआ। मगर कोई ना कोई वजह से जा ना पाई। फिर, एकदम आखिरी पड़ाव में मौका मिला। उस समय तक भगदड़ वाली खबरें आ चुकी थीं। लोगों ने कहा, क्यों जा रही हो। लेकिन मुझे विश्वास था।

अगर कुछ होना है तो घर बैठे भी हो सकता है। जीवन में हम कई फैसले ले सकते हैं, मगर मौत कब आएगी, ये हमारे हाथ में नहीं है। आपके साथ एक आश्चर्यजनक बात शेयर करती हूं। 26 नवम्बर 2008 को मैं दोपहर 12 बजे से लेकर 8 बजकर 15 मिनट तक मुम्बई के ट्राइडेंट होटल में मौजूद थी। जी हां, वही होटल जहां इसके 15 मिनट बाद आतंकवादियों ने हमला कर दिया था।

उस दिन एमआईटी यूएसए से एक प्रोफेसर आए हुए थे, उनके लिए एक प्रोग्राम रखा था, जिसकी आयोजक मैं थी। खैर, लेक्चर खत्म होने के बाद हमने उनसे पूछा, आप हमारे साथ डिनर करेंगे? उन्होंने कहा नहीं, मैं थक गया हूं, रूम में ऑर्डर कर लूंगा। मैंने काली-पीली टैक्सी ली और पहुंची वीटी स्टेशन, जहां 9 बजे के करीब मैंने प्लेटफॉर्म 1 से टिकट खरीदा और लेडीज़ कम्पार्टमेंट में चढ़ गई।

खैर, एक घंटे बाद जब मैं वाशी पहुंची, घर से घबराया हुआ फोन आया कि तुम कहां हो? मुझे कोई आइडिया नहीं था कि उसी होटल में एक दर्दनाक हादसा हो गया है। तो सचमुच, ये मेरा भाग्य ही था जिसने मुझे बचा लिया। जब मैं बाहर निकल रही थी, कुछ लोग अंदर जा रहे थे। वो अनजान थे कि यमराज ने उन्हें बुलावा दिया था। ये सारी बातें मेरे मन में थीं, कुम्भ के दौरान। और लोगों की आस्था भी देखने लायक थी। बड़े-बूढ़े-बच्चे, सब गंगा मैया से लिपटने के लिए आतुर थे।

स्टेशन से टेंट सिटी का रास्ता सिर्फ 7 किमी का था, पर हम 3 घंटे तक गाड़ी में फंसे रहे। मगर एहसास हुआ कि हम कितने भाग्यशाली हैं, हमारे पास वाहन है। लोग तो नंगे पांव सड़क पर चल रहे हैं। फिर भी उनके चेहरे पर कोई शिकन नहीं। भीड़ गजब की, लेकिन हर कोई दृढ़ निश्चय से अपने रास्ते पर चल रहा है। हम रहे आगमन टेंट में, जहां हर सुविधा उपलब्ध थी। हर किसी को ये सुख प्राप्त नहीं।

फिर हम अरैल घाट पहुंचे, वहां से नौका ली त्रिवेणी संगम के लिए। और फिर आंख मींचकर ठंडे-ठंडे पानी में डुबकी ली। तन और मन में आनंद की एक लहर दौड़ पड़ी। सच कहूं तो वहां से हटने का मन ही नहीं था। खैर, घाट पर वापस पहुंचे तो ध्यान गया लाउडस्पीकर पर। जहां राजू-सोनू की मम्मी अपने घरवालों को ढूंढ रही थीं, वहीं हरी साड़ी वाली माताजी को उनके घरवाले खोज रहे थे। आप जहां भी हों, कमल द्वार पर आ जाएं।

कुम्भ के मेले में बिछड़े हुए भाइयों वाली कहानी शायद आज भी बन सकती है! हमारे ग्रुप में कई ऐसे लोग थे, जिन्हें कुम्भ के बारे में बहुत कम जानकारी थी। लेकिन यहां आने के बाद उनकी आंखें खुल गईं।

सनातन धर्म के प्रति उनके दिल में आस्था बढ़ गई। कहीं ना कहीं हम जानते हैं कि ये दुनिया सिर्फ माया है। हम मोक्ष चाहते हैं।

त्रिवेणी संगम में स्नान के बाद कुछ लोग मानते हैं कि उनके पाप धुल गए। लेकिन क्या स्नान के बाद आपने सही रास्ते पर चलने का प्रण लिया? नहीं तो वही मैल फिर से चढ़ने लगेगा। खैर, मैंने तो सूर्य की तरफ मुख करके बस इतना मांगा कि हे प्रभु, शक्ति दो। माया के जंजाल से जूझने के लिए। जीवन की पहेली बूझने के लिए। ये संसार भी एक मेला है, जिसमें सुख-दु:ख की वेला है।

कोटि-कोटि मनुष्य अनजान, कर रहे हैं ईश्वर के कमण्डल में स्नान। जैसे कुम्भ में भेदभाव नहीं, काश समाज ऐसा ही होता। जैसे कुम्भ में सरकारी व्यवस्था थी, काश शासन ऐसा ही होता। जैसे कुम्भ में गंगाजी का सम्मान, काश हर समय ऐसा ही होता।

डेवलपमेंट के नाम पर अपमान न होता। पर्यावरण पर भी थोड़ा ध्यान होता।

जैसे कुम्भ में सरकारी व्यवस्था थी, काश हमारा शासन-प्रशासन भी ऐसा ही होता। जैसे कुम्भ में गंगाजी का सम्मान हुआ, काश हर समय ऐसा ही होता। डेवलपमेंट के नाम पर अपमान न होता। पर्यावरण पर भी थोड़ा ध्यान होता।

(ये लेखिका के अपने विचार हैं)

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