क्या है 6G स्पेक्ट्रम, कब तक आएगा?

 क्या है 6G स्पेक्ट्रम, कब तक आएगा? इसके इस्तेमाल से क्या फायदा होने की उम्मीद

6G सिर्फ 5G का अपग्रेड नहीं है, बल्कि यह एक ऐसी तकनीक है जो इंसानी जिंदगी को पूरी तरह से बदल देगी. यह AI, VR, ऑटोनॉमस गाड़ियों और स्मार्ट शहरों को और भी बेहतर बनाएगी.

4G ने जानकारी और सोशल मीडिया तक आसानी से पहुंचने का मौका दिया. हम इंटरनेट पर कुछ भी खोज सकते थे, वीडियो देख सकते थे और सोशल मीडिया पर दोस्तों से जुड़ सकते थे. 5G ने मशीनों और सेंसर से डेटा इस्तेमाल करने की ताकत दी. इससे स्मार्ट शहर, ऑटोनॉमस गाड़ियां और इंटरनेट ऑफ थिंग्स (IoT) जैसी तकनीकें संभव हुईं.

अब 6G के आने से हम असली दुनिया और डिजिटल दुनिया को एक होते देखेंगे. इससे हमारे जीने और काम करने का तरीका पूरी तरह से बदल जाएगा. हम वर्चुअल रियलिटी (VR) और ऑगमेंटेड रियलिटी (AR) का और भी बेहतर अनुभव कर पाएंगे. AI का इस्तेमाल और भी आसान हो जाएगा.

कब तक आएगा 6G?
आमतौर पर नई मोबाइल टेक्नोलॉजी लगभग 10 साल के अंदर तैयार होती है. अनुमान है कि 6G इस दशक के अंत तक शुरुआती रूप में दिखेगा और अगले दशक की शुरुआत में पूरी तरह से तैयार हो जाएगा. इंटरनेशनल टेलीकम्युनिकेशन यूनियन (ITU-R) ‘वर्ल्ड रेडियोकम्युनिकेशन कॉन्फ्रेंस (WRC)’ के जरिए 6G के लिए फ्रीक्वेंसी बैंड और नियम तय करेगा. ITU-R के साथ ‘3GPP’ (3rd जनरेशन पार्टनरशिप प्रोजेक्ट) को भी स्टैंडर्ड तय करने होंगे.

6G के पहले स्पेसिफिकेशन्स 2028 के दूसरे भाग में ‘3GPP रिलीज 21’ में आने की उम्मीद है. 6G के लिए स्पेक्ट्रम बैंड्स पर फैसले ‘WRC-23’ में होंगे, जिससे 2030 तक इस्तेमाल के नियम तैयार हो जाएंगे.

क्या है 6G स्पेक्ट्रम, कब तक आएगा? इसके इस्तेमाल से क्या फायदा होने की उम्मीद

क्या 6G के लिए अलग स्पेक्ट्रम चाहिए
पिछली मोबाइल जनरेशन्स (2G, 3G, 4G, 5G) को देखकर ये समझ आता है कि हर जनरेशन को अपना अलग स्पेक्ट्रम चाहिए होता है. जैसे 3G के लिए 2GHz, 4G के लिए 2.6GHz और 5G के लिए 3.5GHz. अब जब WRC-23 (वर्ल्ड रेडियोकम्युनिकेशन कॉन्फ्रेंस) आ रहा है. 

हर नई मोबाइल जनरेशन को शुरू करने के लिए नए पायनियर बैंड्स चाहिए होते हैं, ताकि मैक्रो-सेलुलर डिप्लॉयमेंट हो सके. दुनियाभर में मोबाइल ट्रैफिक हर साल बढ़ रहा है और ये इस दशक में भी बढ़ता रहेगा. स्टडीज बताती हैं कि 2022 से 2027 के बीच मोबाइल ट्रैफिक तीन गुना हो जाएगा. इसलिए, इस ग्रोथ को सपोर्ट करने के लिए और स्पेक्ट्रम चाहिए होगा, ताकि ये आर्थिक और पर्यावरण के हिसाब से टिकाऊ हो सके.

कौन से बैंड्स 6G के लिए इस्तेमाल होंगे?
लोकसभा में लिखित जवाब में सरकार ने बताया कि 6G के लिए नए स्पेक्ट्रम बैंड्स पर काम चल रहा है. इंटरनेशनल टेलीकम्युनिकेशन यूनियन (ITU) 4400-4800 MHz, 7125-8400 MHz (या इसके कुछ हिस्से) और 14.8-15.35 GHz फ्रीक्वेंसी बैंड्स पर रिसर्च कर रहा है. ये रिसर्च इंटरनेशनल मोबाइल टेलीकम्युनिकेशन्स (IMT) के इस्तेमाल के लिए हो रही है.

इन रिसर्च के नतीजों के आधार पर 2027 में होने वाली वर्ल्ड रेडियो कम्युनिकेशन कॉन्फ्रेंस में इन बैंड्स को IMT इस्तेमाल के लिए तय करने का फैसला लिया जाएगा. ये फ्रीक्वेंसी बैंड्स ‘IMT2030’ के लिए माने जा रहे हैं, जिसे ‘6G’ भी कहा जाता है. 

भारत में मोबाइल स्पेक्ट्रम: 2G से 6G तक, सब कुछ संभव!
भारत में अभी 600 MHz, 700 MHz, 800 MHz, 900 MHz, 1800 MHz, 2100 MHz, 2300 MHz, 2500 MHz, 3300 MHz और 26 GHz फ्रीक्वेंसी बैंड्स को इंटरनेशनल मोबाइल टेलीकम्युनिकेशन्स (IMT) आधारित सेवाओं के लिए तय किया गया है.

जिन टेलीकॉम सर्विस प्रोवाइडर्स (TSPs) ने नीलामी में तय कीमत देकर इन बैंड्स में स्पेक्ट्रम खरीदा है, वे डिवाइस इकोसिस्टम की उपलब्धता के आधार पर 2G, 3G, 4G, 5G, 6G सहित कोई भी तकनीक इस्तेमाल कर सकते हैं.

मतलब, भारत में मोबाइल सेवाओं के लिए कई फ्रीक्वेंसी बैंड्स उपलब्ध हैं. टेलीकॉम कंपनियां अपनी जरूरत और डिवाइस की उपलब्धता के हिसाब से कोई भी तकनीक इस्तेमाल कर सकती हैं. अगर 6G के लिए डिवाइस उपलब्ध होते हैं, तो टेलीकॉम कंपनियां इन बैंड्स में 6G भी शुरू कर सकती हैं.

6G के लिए कितना स्पेक्ट्रम चाहिए?
6G में XR (एक्सटेंडेड रियलिटी) और होलोग्राम जैसे कम्युनिकेशन के लिए कितना स्पेक्ट्रम चाहिए, इसका हिसाब GSA (ग्लोबल मोबाइल सप्लायर्स एसोसिएशन) ने नोकिया के साथ मिलकर लगाया है.

6G के कुछ यूज-केस (इस्तेमाल) में बहुत डेटा लगेगा, इसके लिए हर नेटवर्क को कम से कम 1 GHz स्पेक्ट्रम चाहिए होगा. अगर एक देश में 3-4 ऑपरेटर हैं और ये मान लें कि IMT (इंटरनेशनल मोबाइल टेलीकम्युनिकेशन्स) के लिए जो मिड-बैंड स्पेक्ट्रम (लगभग 1 GHz) है, वो सिर्फ वाइड-एरिया यूज-केस के लिए इस्तेमाल होगा, तो हर नेटवर्क को 7-15 GHz रेंज में लगभग 500-750 MHz अतिरिक्त नया वाइड-एरिया स्पेक्ट्रम चाहिए होगा.

क्या है 6G स्पेक्ट्रम, कब तक आएगा? इसके इस्तेमाल से क्या फायदा होने की उम्मीद

यह मुमकिन है कि 6G को शुरू करने के लिए मौजूदा फ्रीक्वेंसी बैंड्स का ही इस्तेमाल किया जाए. लेकिन, पुराने मोबाइल जनरेशन्स को बंद करना आसान नहीं होता. भले ही नई तकनीक से एक ही फ्रीक्वेंसी बैंड में अलग-अलग मोबाइल जनरेशन्स का इस्तेमाल किया जा सकता है, लेकिन यह सिर्फ कुछ समय के लिए ही ठीक है. इससे स्पेक्ट्रम का सही इस्तेमाल नहीं हो पाता. 

सरकार ने 5G के लिए क्या किया?
भारत में 5G सर्विस अब लगभग पूरे देश में पहुंच गई है. सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में 5G शुरू हो गया है. लक्षद्वीप समेत 776 में से 773 जिलों में 5G उपलब्ध है. 28 फरवरी 2025 तक टेलीकॉम सर्विस प्रोवाइडर्स (TSPs) ने देशभर में 4.69 लाख 5G बेस ट्रांसीवर स्टेशन (BTSs) लगाए हैं.

सरकार ने 5G सर्विस शुरू करने के लिए स्पेक्ट्रम की नीलामी की. एडजस्टेड ग्रॉस रेवेन्यू (AGR), बैंक गारंटी (BGs) और ब्याज दरों को ठीक करने के लिए वित्तीय सुधार किए. 2022 और उसके बाद की नीलामी में खरीदे गए स्पेक्ट्रम के लिए स्पेक्ट्रम यूसेज चार्ज हटा दिया. 

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