अब ब्राह्मणों के सहारे दलितों की पार्टी, बसपा ने शुरू की सोशल इंजीनियरिंग की मुहिम
उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) में ब्राह्मण वोटरों की संख्या 12-13 प्रतिशत है. सरकार बनाने में इस वर्ग की अहम भूमिका रहती है इसीलिए ब्राह्मणों को अपने पाले में खींचने के लिए बसपा (BSP) ने एक बार फिर सोशल इंजीनियरिंग (Social Engineering) की मुहिम शुरू कर दी है.
उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) में बहुजन समाज पार्टी (BSP) को मुख्य रूप से दलितों की पार्टी माना जाता है. हालांकि पार्टी ब्राह्मणों को अपने पाले में खींचने के लिए समय-समय पर सियासी दांवपेंच का सहारा लेती रहती है. एक बार फिर बसपा ने ब्राह्मणों को अपनी ओर करने के लिए मुहिम तेज कर दी है. पार्टी का मानना है कि अगर ब्राह्मण और दलितों का गठजोड़ कर दें तो आने वाले समय में आसानी से सत्ता पर काबिज हुआ जा सकता है. अलग-अलग दलों से गठबंधन और संगठनों के साथ प्रयोग के बाद पार्टी मानती है कि 2007 की रणनीति से ही उसे सफलता मिल सकती है. लिहाजा पार्टी एक बार फिर सोशल इंजीनियरिंग (Social Engineering) के फॉर्मूले को लागू करने जा रही है.
न्यूज एजेंसी आईएएनएस की खबर के मुताबिक पार्टी सूत्रों की मानें तो नवरात्रि से इस पर काम तेजी से शुरू हो जाएगा. एक बार फिर बड़े पैमाने पर ब्राह्मणों को जोड़ने की कवायद की जाएगी. पार्टी के एक नेता ने बताया कि ब्राह्मणों की समस्याओं और उसके निराकरण की जिम्मेदारी इस समय खुद महासचिव सतीश चन्द्र मिश्रा ने ले रखी है.
उत्तर प्रदेश में पिछले कुछ दिनों से ब्राह्मण केन्द्र बिन्दु पर हैं. विपक्षी दलों ने खूब शोर मचाकर एक माहौल भी तैयार किया है. बसपा को लगता है ब्राह्मण अगर सत्तारूढ़ दल से कटेगा तो उसे आसानी से लपका जा सकता है. इसी कारण इन दिनों सोशल मीडिया पर इसके लिए तेजी से अभियान भी चलाए जा रहे हैं. इसी वोट के कारण मायावती 2007 में सत्ता पर काबिज हो चुकी हैं.
ब्राह्मण नेताओं को जिम्मेदारी
सतीश चन्द्र मिश्रा के नेतृत्व में पूर्व मंत्री नकुल दुबे, अनंत मिश्रा, परेश मिश्रा समेत कई लोग ब्राह्मणों को पार्टी से जोड़ने की जिम्मेदारी निभा रहे हैं. पूर्व मंत्री नकुल दुबे ने कहा कि इन दिनों ब्राह्मण समाज के साथ जो उत्पात बढ़ा है, वह कैसे दूर हो, उन्हें क्या-क्या दिक्कतें आ रही हैं, इसके लिए महासचिव सतीश चन्द्र मिश्रा लोगों से मिल खुद फीडबैक ले रहे हैं.
उन्होंने कहा कि अभी तक हजारों लोगों से मुलाकात हो चुकी है. करीब 80 बैठकें भी हो चुकी हैं. प्रदेश में ब्राह्मणों का उत्पीड़न हो रहा है वह किसी से छिपा नहीं है. 2007 से 2012 के कार्यकाल को देखें तो ब्राह्मण बसपा के साथ बहुत सुखी था.
वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक पी.एन. द्विवेदी कहते हैं कि पिछले कुछ दिनों से ब्राह्मण राजनीति के केन्द्र बिन्दु में घूम रहा है. हर पार्टी इसे अपने पाले में लाने के प्रयास में है. सपा परशुराम मंदिर बनवाने की बात कहकर अपना प्रेम दिखा रही है लेकिन अभी चुनाव दूर है. ऊंट किस करवट बैठेगा यह वक्त बताएगा. बता दें कि उत्तर प्रदेश में करीब 12-13 प्रतिशत ब्राह्मण हैं, जिस पर सभी दलों की नजर है. बसपा भी इसे साधने की कोशिश में है.