वैज्ञानिकों का दावा- अगर मई-जून में आती आपदा तो हो सकता थी और भी विनाशकारी
देहरादून के वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान के वैज्ञानिक डॉ. सुमित तिवारी ने कहा कि यह ग्लेशियर के टूटने का नहीं बल्कि हैवी स्नोफॉल है. अगर यही हादसा मई-जून या रात में भी होता यह काफी विभत्स होता.
: चमोली जिले में आपदा की घटना बड़ी त्रासदी हो सकती थी. वैज्ञानिकों का मानना है कि तपोवन क्षेत्र की यह घटना अगर मई-जून में या फिर रात में होती तो इसका रूप और भी विकराल होता. वैज्ञानिकों का मानना है कि अभी तक हिमालय क्षेत्रों में इस प्रकार की घटना सर्दियों के समय नहीं हुई है. यह इस तरह की पहली घटना है जो कि चिंता का विषय है.
दरअसल, तपोवन क्षेत्र में हुई तबाही के वास्तविक कारणों की जांच के लिए पहुंचे वैज्ञानिकों का कहना है कि अभी इस क्षेत्र में चार ग्लेशियर हैं. जिनकी लंबाई 10 किलोमीटर के करीब है. देहरादून के वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान के वैज्ञानिक डॉ. सुमित तिवारी ने कहा कि यह ग्लेशियर के टूटने का नहीं बल्कि हैवी स्नोफॉल है. अगर बड़ा ग्लेशियर टूटता तो स्थिति और भी भयंकर होती. उन्होंने कहा कि अगर यही हादसा मई-जून या रात में भी होता यह काफी विभत्स होता.
मलबे के सैंपल से पता चलेगा आपदा की इंटेंसिटी
वहीं वाडिया संस्थान के तीन सदस्यीय वैज्ञानिक हरिद्वार से रैणी गांव के पास ओरिजिन पॉइन्ट तक इस आपदा का अध्ययन करेगी. वैज्ञानिकों का दल इस तबाही से निकली, मिट्टी व पानी के सैंपल ले रही है. जिसके आधार पर इस आपदा की इंटेंसिटी का पता भी चल जाएगा. डॉ. सुमित ने कहा कि हम पानी और मलबे का सैंपल ले रहे हैं. जांच के बाद पता चलेगा कि यह कितना भयंकर था. वहीं उन्होंने बताया कि हरिद्वार में इसका पानी नहीं पहुंचा है. अबनॉर्मल पानी लेकर उसकी जांच की जा रही है.
क्या है रेस्क्यू ऑपरेशन की स्थिति?
उत्तराखंड के चमोली आपदा ने काफी इलाके उजाड़ दिए हैं. प्रशासन तेजी से रेस्क्यू ऑपरेशन चला रहा है. तपोवन की दूसरी सुरंग में फंसे लोगों को सुरक्षित बाहर निकालने की कोशिशें लगातार जारी हैं. बता दें, रेस्क्यू के दौरान 30 शव बरामद किए गए हैं, जबकि करीब 35 लोगों के अभी भी टनल में फंसे होने की आशंका जताई जा रही है. इसके अलावा, 171 लोग लापता बताए जा रहे हैं. जल्द ही रेस्क्यू ऑपरेशन पूरा कर ज्यादा से ज्यादा लोगों को सुरक्षित वापस लाने की कोशिश की जा रही है.