बांदा यूनिवर्सिटी में 11 ठाकुरों के सलेक्शन पर अपनों ने ही उठाए सवाल, क्या यूपी में BJP के राज में भी जारी है जातिवाद?
बांदा कृषि विश्वविद्यालय ने पहले विज्ञापन निकाला और फिर 1 जून को रिजल्ट घोषित किया, जिनमें 18 सामान्य वर्ग और दो EWS कोटे की थीं. कुल 15 नियुक्तियां हुई हैं, जिनमें से 11 एक ही जाति के हैं.
छह राज्यों का सियासी तापमान चढ़ा हुआ है, लेकिन अब एक बार फिर यूपी की सियासी फिक्र की ओर लौटते हैं, जिसने एक बार फिर जातिवाद के मुद्दे को हवा दे दी है. दरअसल इत्तेफाक ये है कि यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी ठाकुर हैं और यूपी के बांदा में यूनिवर्सिटी में जो भर्तियां हुईं उनमें एक दो नहीं बल्कि 11 ठाकुर भर्ती किए गए. विडंबना ये भी है कि कुल 15 भर्तियां ही की गईं और उनमें से भी 11 एक ही जाति के. फिक्र ये है कि क्या यूपी में बीजेपी के राज में भी जातिवाद जारी है? फिलहाल इस मामले में जांच के आदेश जारी कर दिए गए हैं.
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ आज दिल्ली दौरे से सुर्खियों में रहे. वैसे सीएम योगी के इस दौरे को उत्तर प्रदेश में चल रही सियासी उठापटक से जोड़कर देखा गया कहीं न कहीं इसके तार उन बातों से भी जुड़े जिसमें एक ही जाति के लोगों को तवज्जो देने की बात कही गई खासकर ठाकुरों को क्योंकि सीएम योगी भी ठाकुर जाति से ही हैं. वैसे सियासत में ऐसे आरोप आम हैं, लेकिन बांदा कृषि विश्वविद्यालय में हुई नियुक्तियों ने इन आरोपों को हवा दे दी है.
बांदा कृषि विश्वविद्यालय में 15 प्रोफेसर की नियुक्तियां हुई उनमें से 11 एक ही जाति के निकले. यहां सामान्य जाति के कोटे में 11 ठाकुरों का चयन हुआ. ये वही लिस्ट है जिसने बांदा कृषि विश्वविद्यालय में प्रोफेसर की नियुक्तियों को कठघरे में खड़ा कर दिया और यूनिवर्सिटी की पूरी नियुक्ति प्रक्रिया पर ही जातिय भेदभाव का आरोप चस्पा कर दिया.
विवाद बढ़ने पर कृषि मंत्री सूर्य प्रताप शाही ने दिए जांच के आदेश
आरोप लगा की यहां एक ही जाति के 11 उम्मीदवारों को फायदा पहुंचाया गया. एक ही जाति से प्रोफेसर, एसोसिएट प्रोफेसर और असिस्टेंट प्रोफेसर तक नियुक्त हुए. यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर की जो नियुक्तियां हुई हैं, उसमें सामान्य जाति के कोटे में 11 ठाकुर अभ्यर्थियों का ही सिलेक्शन हुआ. अब सवाल उठता है कि क्या वाकई प्रोफेसर की नियुक्ती में किसी खास जाति के लोगों को प्राथमिकती दी गई? क्या यूनिवर्सिटी प्रशासन ने दूसरी जाति के छात्रों के साथ जातिगत भेदभाव किया? और क्या ये नियुक्तियां टैलेंट के दम पर हुई हैं या फिर जातिवाद के दम पर?
इन सवालों के जवाब जांच के बाद ही सामने आएंगे क्योंकि कृषि मंत्री सूर्य प्रताप शाही ने विवाद बढ़ने पर जांच के आदेश दे दिए हैं, लेकिन इस भर्ती घोटाले में जांच की मांग सबसे पहले बीजेपी के विधायक बृजेश प्रजापति ने ही की. हम आपको उनके बयान सुनवाएंगे लेकिन पहले ये जान लीजिए की. बांदा कृषि, प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय ने 20 भर्तिया निकालीं थीं. विश्वविद्यालय ने पहले विज्ञापन निकाला और फिर 1 जून को रिजल्ट घोषित किया, जिनमें 18 सामान्य वर्ग और दो EWS कोटे की थीं. कुल 15 नियुक्तियां हुई हैं, जिनमें से 11 एक ही जाति के हैं. नियुक्त हुए प्रोफेसर, एसोसिएट प्रोफेसर और असिस्टेंट प्रोफेसर तक ठाकुर हैं.
इस पूरे मामले में अब यूनिवर्सिटी के कुलसचिव जातिय भेदभाव के आरोप को खारिज कर रहे हैं. दावा कर रहे हैं कि सभी नियुक्तिय़ां नियम, कायदे और कानून के मुताबिक हुए हैं. सवाल उठता है कि अगर सभी भर्तियां कानून के मुताबिक हुई हैं तो फिर एक जाती के 11 उम्मीदवारों का चयन क्यों हुआ. अगर नियुक्तियों में रोस्टर आरक्षण का पालन होता शायद रिजल्ट कुछ और ही होता. ऐसा ही आरोप बीजेपी के विधायक बृजेश प्रजापति भी लगा रहे हैं. बृजेश प्रजापति बांदा के तिन्दवारी विधानसभा से बीजेपी के ही विधायक हैं.
बैकवर्ड कमीशन ने पिछले पांच साल में हुई नियुक्तियों की रिपोर्ट मांगी
उन्होंने भर्ती घोटाले की शिकायत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, राज्यपाल आनंदी बेन पटेल, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को पत्र लिख कर की. पत्र में उन्होंने रोस्टर आरक्षण की अनदेखी का आरोप लगाया. कहा कि जो विज्ञापन निकाले गए हैं, उसमें भी गंभीर अनियमितता थी. वैसे विश्वविद्यालय प्रशासन दावा है कि प्रोफेसर्स की इन नियुक्तियों के लिए एक कमेटी बनाई गई थी. इसी कमेटी ने ही 15 प्रोफेसर की नियुक्ति की है. विश्वविद्यालय प्रशासन सफाई जो भी दे, लेकिन एक ही जाति के 11 लोगों के चयन ने मामले को अब बैकवर्ड कमीशन तक पहुंच दिया है. आयोग ने बांदा यूनिवर्सिटी से 7 दिनों के भीतर पिछले पांच साल में हुई सभी नियुक्तियों की रिपोर्ट मांगी है.
उत्तर प्रदेश में अगले साल विधानसभा के चुनाव हैं लिहाजा बांदा यूनिवर्सिटी में भर्ती घोटाले ने विपक्ष को भी योगी सरकार पर हमले का मौका दे दिया है. वैसे उत्तर प्रदेश में जब अखिलेश यादव मुख्यमंत्री थे और सूबे में समाजवादी पार्टी का शासन था तब बीजेपी के नेता आरोप लगाते थे कि सरकार आंख मूंदकर यादवों की भर्तियां कर रही है, लेकिन अब यही आरोप योगी सरकार पर लग रहे हैं. ऐसे में जरूरत इस नैरेटिव को बदलने की हैं. ताकी शासन किसी भी दल का हो, ‘सबका साथ हो. सबका विकास हो’.