PhD Content Theft: हर आठवीं पीएचडी में दस प्रतिशत से ज्यादा चोरी का कंटेंट

इंदौर PhD Content Theft। डाक्टर आफ फिलासफी (पीएचडी) की लगातार गिरती संख्या को लेकर  पड़ताल की तो चौंकाने वाली जानकारी सामने आई। सुनने में थोड़ा अजीब लग सकता है, लेकिन यह हकीकत है कि देवी अहिल्या विश्वविद्यालय (डीएवीवी) में पीएचडी के लिए प्रस्तुत होने वाली शोध सामग्री (थीसिस) में से हर आठवीं थीसिस में दस फीसद से ज्यादा मिलावट मिल रही है। यानी इन थीसिस में सामग्री कापी-पेस्ट की जा रही है। डीएवीवी खुद भी इससे चिंतित है।

पीएचडी करने वाले शोधार्थी नया शोध करने के बजाय किताबों-ग्रंथों, वेबसाइट व पूर्व में प्रकाशित शोध पत्रों से सामग्री जस का तस उतार रहे हैं। हर साल ऐसी दो से ढाई दर्जन थीसिस विवि लौटा रहा है, ताकि वे इसे संशोधित कर दोबारा जमा करें। शोधार्थियों को थीसिस दोबारा जमा कराने के लिए आठ महीने दिए जा रहे हैं। इसी कारण डीएवीवी में पीएचडी की संख्या लगातार घट रही है।

डीएवीवी में सालभर में औसतन 330 शोधार्थियों को पीएचडी अवार्ड होती रही है। इस साल भी जनवरी से अगस्त तक 213 पीएचडी हो चुकी है। अधिकारियों के मुताबिक जमा करने से पहले शोधार्थियों को प्लेजरियम साफ्टवेयर के माध्यम से थीसिस की जांच करवाना होती है, जिसमें चुराए गए साहित्य का फीसद निकाला जाता है। फिर प्रमाण पत्र जारी किए जाते हैं। ये काम तक्षशिला परिसर स्थित सेंट्रल लाइब्रेरी को सौंपा गया है। सूत्रों के मुताबिक तकरीबन 25 थीसिस में दस से पंद्रह फीसद कंटेंट विभिन्न साहित्यों से मिलता हैं। अधिकतर शोधार्थी निजी कालेजों के शिक्षक है। इनमें भी ज्यादातर मैनेजमेंट, इंजीनियरिंग व आर्ट्स की थीसिस रहती है।

साफ्टवेयर पकड़ रहा चोरी

पीएचडी की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए यूनिवर्सिटी ग्रांट कमिशन (यूजीसी) थीसिस में चोरी व नकल रोकने पर जोर दे रहा है। 2017 से प्लेजरियम यानी साहित्यिक चोरी से जुड़े नियम लागू किए गए। पहले 30 फीसद तक चुराए गए साहित्य को चोरी के दायरे में नहीं लिया जाता था। अब दस फीसद से ऊपर मिलता-जुलता कंटेंट कार्रवाई की जद में है। शोधार्थियों की चोरी पकड़ने के लिए उरकुंड साफ्टवेयर की मदद ली जाती है। तय मापदंड के ऊपर चोरी का कंटेंट मिलने पर शोधार्थियों को दोबारा थीसिस लिखना पड़ती है। इसके लिए अतिरिक्त समय भी यूजीसी ने तय कर रखा है।

जांचने की प्रक्रिया

– शोध पूरा होने के बाद शोधार्थियों को डिजिटल फार्मेट में थीसिस देना होती है।

– साफ्टवेयर में कंटेंट को अपलोड किया जाता है।

– पंद्रह मिनट बाद थीसिस में साफ्टवेयर प्लेजरियम का फीसद बताता है।

– साफ्टवेयर चुराया गया साहित्य कहां से लिया गया है, इसकी जानकारी भी देता है।

ऐसे होती है कार्रवाई

– 10 फीसद से कम कंटेंट होने पर थीसिस को मंजूरी मिलती है।

– 10 से 40 फीसद तक का कंटेंट मिलने पर शोधार्थियों को छह महीने के भीतर थीसिस दोबारा लिखना पड़ती है।

– 40-60 फीसद तक का कंटेंट होने की स्थिति में शोधार्थियों को सालभर अतिरिक्त दिया जाता है, जिसमें थीसिस में बदलाव करना होता है। इस बीच दो साल तक किसी भी शोध पत्र को प्रकाशित करने की अनुमति नहीं होती है।

– 60 फीसद से ऊपर कंटेंट रहने पर पूरी थीसिस दोबारा लिखना पड़ती है। संस्थान पर पीएचडी पंजीयन भी निरस्त कर सकता है।

पीएचडी की संख्या

2017 : 226

2018 : 322

2019 : 344

2020 : 190

2021 : 213 (अगस्त तक)

इन संकायों में सर्वाधिक पीएचडी

सालभर में कुछ संकाय व विषयों में सबसे ज्यादा पीएचडी होती है। उसमें प्रबंधन, वाणिज्य, कला, विज्ञान, इंजीनियिरिंग शामिल है। इन संकायों में सबसे ज्यादा पीएचडी करवाने वाले गाइड भी उपलब्ध हैं।

प्लेजरियम पर सख्त विवि

पीएचडी थीसिस में प्लेजरियम की जांच साफ्टवेयर कर रहे हैं। 2017-18 से पहले बीस से तीस फीसद थीसिस में साहित्यिक चोरी पाई जाती थी, लेकिन अब सालभर में करीब 25 थीसिस में शोधार्थियों को संशोधन करने का कहते हंै। समयावधि तय है। वैसे 85-90 फीसद पीएचडी में पांच-सात फीसद तक का कंटेंट अन्य किताबों-वेबसाइट व अन्य संसाधनों का रहता है।

– डा. राजीव गुप्ता, प्रभारी, सेंट्रल लाइब्रेरी

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