दतिया-ग्वालियर में एक महीने बाद भी कई ग्रामीण बेघर; आर्थिक सहायता मिली, पर इससे मकान बनाना तो दूर मरम्मत भी नहीं हो पा रही

बाढ़ से तबाह 82 गांवों की रिपोर्ट

2 अगस्त को सिंध, पार्वती और नोन नदी में आई बाढ़ से दतिया और ग्वालियर के 82 गांवों में तबाही का मंजर आज भी वैसा ही है, जैसा पहले दिन था। गांव के लोग खेतों में रिफ्यूजी की तरह कैंप या स्कूलों में बने राहत शिविरों में रह रहे हैं। न छत है और न पहनने को कपड़े। सरकार से आर्थिक मदद तो मिली है, लेकिन उससे मकान बनना तो दूर मरम्मत भी नहीं हो पा रही। गांव में गंदा पानी और कीचड़ में पनप रहे मच्छर घुसने नहीं दे रहे।

एक महीने बाद भी इन गांवों में जिंदगी की गाड़ी पटरी पर आती नजर नहीं आ रही। लोग जिंदगी के लिए संघर्ष कर रहे हैं। मामले में संभागीय आयुक्त आशीष सक्सेना का कहना है कि लगातार आर्थिक सहायता लोगों तक पहुंचाई जा रही है। धीरे-धीरे हालात सामान्य हो रहे हैं।

इस तरह लोग खेतों मे तिरपाल डालकर तंबू में रहने को विवश हैं।
इस तरह लोग खेतों मे तिरपाल डालकर तंबू में रहने को विवश हैं।

3 गांवों के 150 मकान टूट गए थे
डबरा क्षेत्र के लड़ैयापुरा, अजीतपुरा और झंडापुरा में एक माह बाद भी हालत सामान्य नहीं हुए हैं। इन तीनों गांव में करीब 150 मकान बाढ़ के पानी के कारण प्रभावित हुए थे। तभी से लड़ैयापुरा और अजीतपुरा के लोग गांव से करीब 5 किलोमीटर दूर खुले खेतों में तंबू बनाकर रिफ्यूजी की तरह रह रहे हैं। झंडापुरा में लोग गांव में पहुंच गए हैं। जर्जर मकानों के बाहर तंबू ही लगाया गया है। गांव में कीचड़ और गंदगी के कारण मच्छरों ने जीना मुहाल कर रखा है। हाल यह है कि हर तीसरा व्यक्ति बीमारी की चपेट में है।

अब बाढ़ प्रभावितों के खातों में सरकार की राहत राशि पहुंचना शुरू हो गई। गांव के लोगों का कहना है कि जो राशि आई है, उससे मकान का मेंटेनेंस तक नहीं हो सकता।

गांव में तबाही का अभी भी है ऐसा मंजर।
गांव में तबाही का अभी भी है ऐसा मंजर।

आटा, नमक में कब तक गुजारें जिंदगी
बाढ़ के कारण लड़ैयापुरा में 52 और अजीतपुरा में 56 परिवार प्रभावित हुए थे। दोनो ही गांव के लोग कई किलोमीटर की दूरी पर खेतों में खुले में कैंप लगाकर रह रहे हैं। एक परिवार के लिए पन्नियों का एक तंबू बनाया गया है, जिसमें परिवार के करीब 6 से 7 लोग रह रहे हैं।

गांव के नवल सिंह बाथम और अनीता का कहना है कि बाढ़ के बाद प्रशासन की तरफ से उन्हें महज आटा और नमक मिला है, जो एक मजाक की तरह है। यदि समाजसेवी संस्थाएं और युवा शक्ति संगठन ने गोद न लिया होता, तो वह भूखे मर जाते। लडैंयापुरा के लोग बाढ़ के बाद से गांव ही नहीं गए हैं। वहीं, अजीतपुरा में इक्का-दुक्का परिवार दिन में अपने घरों की सफाई करने के लिए चले आते हैं।

दिन में गर्मी, रात को मच्छर सता रहे, बढ़ रही बीमारियां
पिछले एक माह से लोग खुले में खेतों में रह रहे हैं, न पीने के लिए पानी की व्यवस्था है और न ही शौचालय। करीब एक किलोमीटर दूर लगे हैंडपंप से पीने के लिए पानी लाना पड़ रहा है। वहीं, बिजली न होने से दिन में गर्मी से बेहाल हो रहे हैं। रात में मच्छर काट रहे हैं, जिससे लोग बीमार हो रहे हैं। लड़ैयापुरा की रेखा बाथम दो साल का बेटा मयंक पिछले कई दिनों से जुकाम, खांशी,बुखार से पीड़ित हैं।

वहीं, अनीता बाथम को बुखार, 14 साल के मंजेश बाथम को पेट दर्द, दस्त के साथ ही इसी गांव की धनवंती, अजीतपुरा की मालती बाथम के दो बच्चे, रामदेवी का बेटा राज बुखार दस्त की पीड़ित चल रहे हैं। इसके साथ ही प्रत्येक घर में कोई न कोई बीमार हैं। गांव के द्रोबाई का कहना है, एक बार डॉक्टर आए थे। इसके बाद न तो स्वास्थ्य शिवर लगाकर जांच की गई। उनके पास इलाज के लिए शहर तक जाने के लिए न साधन है और न ही रुपए।

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