नए मंत्रियों को काम के लिए सिर्फ 3 महीने मिलेंगे, फिर अपने इलाकों में चुनाव प्रचार के जरिए जातियों को साधेंगे

यूपी में योगी सरकार ने रविवार शाम दूसरा मंत्रिमंडल विस्तार किया है। ये विस्तार उस वक्त हो रहा है, जब विधानसभा चुनाव को करीब 5 महीने ही बचे हैं। ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि आखिर योगी और भाजपा सरकार कि क्या मजबूरी है, जो चुनाव से ठीक महीने पहले कैबिनेट विस्तार को मजबूर होना पड़ा? यही नहीं नए मंत्रियों के सामने भी चुनौती बड़ी है, क्योंकि उन्हें मंत्री बनने के बाद अब सीधे जनता के बीच जाना होगा।

नए मंत्रियों को काम के लिए महज तीन महीने का वक्त मिलेगा। यह वक्त 26 सितंबर की शाम से जनवरी के दूसरे या तीसरे हफ्ते तक रहने की संभावना है। क्योंकि, इसके बाद यूपी में आचार संहिता लागू हो सकती है। फिर कोई विकास कार्य सरकार नहीं कर सकेगी। तब मंत्रियों के पास सिर्फ चुनाव प्रचार करना ही बचेगा। उन्हें अपनी सीट जीतने के साथ आसपास की सीटों और अपने जातियों से जुड़े गढ़ को बचाने की जिम्मेदारी मिलेगी।

योगी मंत्रिमंडल में शामिल 7 नए मंत्रियों में सिर्फ जितिन प्रसाद को कैबिनेट मंत्री बनाया गया है।
योगी मंत्रिमंडल में शामिल 7 नए मंत्रियों में सिर्फ जितिन प्रसाद को कैबिनेट मंत्री बनाया गया है।

5 पॉइंट्स में समझें योगी कैबिनेट विस्तार के मायने-

  1. जातियों की भागीदारी: चुनाव से पहले हो रहे इस कैबिनेट विस्तार के पीछे सियासी मजबूरियां ज्यादा हैं। राजनीतिक विशेषज्ञों का कहना है कि योगी जिन जातियों के चेहरों को मंत्रिमंडल में जगह दे रहे हैं, उसके पीछे सिर्फ एक वजह उनकी जाति का वोट पाना है। अपना जनाधार बचाना है।
  2. क्षेत्रीय संतुलन: क्षेत्रीय समीकरण को साधने के मकसद से भी नए मंत्री बनाए गए हैं। संगीता बलवंत बिंद को जगह देकर पूर्वांचल में बिंद जाति के लोगों को संदेश दिया गया है। अब तक सरकार में बिंद समाज का कोई भी मंत्री नहीं था। छत्रपाल गंगवार को रूहेलखंड से जगह देकर पार्टी गंगवार जाति के वोटर्स को वहां लुभाना चाह रही है, क्योंकि सांसद संतोष गंगवार मोदी मंत्रिमंडल से पहले ही बाहर हो चुके हैं।
  3. ब्राह्मण वोटर्स पर नजर: ब्राह्मण वोटर्स को खुश करने के लिए भी विस्तार किया जा रहा है। इसीलिए हाल में कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हुए जितिन प्रसाद का नाम भी लिस्ट में है। इसके पहले लंबे समय तक एके शर्मा का नाम चर्चा में रहा था कि वे डिप्टी सीएम बनेंगे। पार्टी नें उन्हें प्रदेश उपाध्यक्ष बनाकर संगठन में संतुलन की कोशिश की।
  4. हाईकमान की नारागजी दूर करना: सीएम योगी पार्टी हाईकमान को नाराज नहीं करना चाहते, इसीलिए पितृपक्ष में उन्होंने विस्तार का फैसला किया है। इससे पहले बताया जा रहा था कि वे चुनाव से ठीक पहले विस्तार नहीं करना चाहते हैं। इसीलिए कई बार विस्तार की अटकलें आईं, लेकिन योगी की वजह से ही हर बार ये झूठी साबित हुईं। कल्याण सिंह के निधन की वजह से भी मंत्रिमंडल विस्तार में देर हुई। इससे पहले लिस्ट फाइनल करने के लिए योगी आदित्यनाथ कई बार दिल्ली दरबार में हाईकमान से मिलने पहुंचे थे। जितनी बार वह दिल्ली गए है, हर बार यूपी में मंत्रिमंडल विस्तार की अटकलें चलीं।

नए चेहरों को कुछ वक्त तो अपने विभाग को समझने में ही निकल जाएगा
राजनीतिक मामलों के जानकार धनंजय चोपड़ा कहते हैं कि हर सरकार सोचती है कि उसके अधूरे काम पूरे हो जाएं। सरकार में सबकी भागीदार हो। कुछ नई ऊर्जा के लोग आएं, ताकि उसके जो काम अधूरे हैं, पूरे हो जाएं। लेकिन अब समय काफी कम बचा है। ऐसे में काम करने में मुश्किलें आएंगी। नए चेहरों को कुछ वक्त तो अपने विभाग को समझने में ही निकल जाएगा।

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