World Heart Day: जंक फूड बचपन से ही बना रहा दिल को बीमार, एक्सपर्ट बता रहे पैक वार्निंग की दरकार

भारत के कम से कम 14.4 लाख बच्चे मोटापे से पीड़ित हैं. विभिन्न अध्ययनों में बताया गया है कि ज्यादा वसा, नमक और चीनी (एचएफएसएस) वाले खाद्य पदार्थों के सेवन से मोटापा, मधुमेह और हृदय संबंधी बीमारियों में 10 प्रतिशत की वृद्धि हो सकती है.

कभी माना जाता था कि 40 साल की उम्र के बाद लोगों को अपने हृदय को लेकर सजग हो जाना चाहिए, लेकिन एक्सपर्ट बता रहे हैं कि युवावस्था में होने वाले हृदय रोगों के मामले में हम पश्चिमी देशों से भी ज्यादा आगे निकल गए हैं. इसकी एक बड़ी वजह बचपन से ही खान-पान में जंक फूड की बहुतायत है. विशेषज्ञों का कहना है कि अगर पैकेज्ड फूड पर सामने की ओर स्पष्ट चेतावनी (फ्रंट ऑफ पैकेज लेबलिंग या FOPL) छापने की व्यवस्था की गई तो इससे लोगों को सेहतमंद चीजों के चयन में काफी मदद मिलेगी.

दिल की सेहत पर खाने-पीने की चीजों के प्रभाव के बारे में पूछे जाने पर फोर्सिटस अस्पताल, गुरुग्राम के वरिष्ठ हृदय रोग विशेषज्ञ डॉक्टर रोहित गोयल बताते हैं कि दिल की बीमारियां धमनियों में आने वाली रुकावट की वजह से होती हैं. इन धमनियों की अंदरूनी दीवारों पर वसा जैसी चीजें जमा हो जाएं तो वे धमनियों से रक्त का प्रवाह बाधित कर देती हैं. इस तरह की बाधा पड़ने की शुरुआत कम उम्र से ही शुरू हो सकती है. ऐसे लोगों में युवावस्था तक पहुंचते-पहुंचते यह समस्या काफी बढ़ जाती है.

पैकेट पर चेतावनी से हो सुधार

हृदय रोगों सहित विभिन्न गैर संक्रामक रोगों के खतरे को कम करने की दिशा में पैकेट बंद चीजों पर ऊपर की ओर (फ्रंट ऑफ पैकेज लेबलिंग या FOPL) चेतावनी छापना काफी कारगर हो सकता है. चिली में नौ साल पहले ही इस तरह की व्यवस्था शुरू कर दी गई थी. इसकी वजह से वहां ऐसे पैकेट बंद उत्पादों का चलन घटा जिनमें वसा, नमक या चीनी की मात्रा अत्यधिक होती है. इसका विभिन्न बीमारियों को कम करने में भी काफी फायदा मिला.

वसा, नमक और चीनी का वार

भारत के कम से कम 14.4 लाख बच्चे मोटापे से पीड़ित हैं. विभिन्न अध्ययनों में बताया गया है कि ज्यादा वसा, नमक और चीनी (एचएफएसएस) वाले खाद्य पदार्थों के सेवन से मोटापा, मधुमेह और हृदय संबंधी बीमारियों में 10 प्रतिशत की वृद्धि हो सकती है. वहीं कुछ प्रकार के कैंसर में भी 10 प्रतिशत वृद्धि होने की संभावना जताई गई है.

कम उम्र में ज्यादा रोग

विभिन्न आकलन के मुताबिक, अगर जरूरी कदम नहीं उठाए गए तो वर्ष 2045 आने तक भारत बच्चों के मोटापे और डायबिटीज के लिहाज से दुनिया में पहले स्थान पर पहुंच चुका होगा. हृदय संबंधी रोग भारत में होने वाली मौतों का सबसे बड़ा कारण बन चुके हैं. भारत में युवावस्था में ही हृदय रोगों का खतरा पश्चिमी देशों के मुकाबले भी ज्यादा हो गया है.

इंडस्ट्री खड़ी कर रही दीवार

खाने-पीने की चीजों पर चेतावनी व्यवस्था को लागू करने में देरी के लिए डॉ. गोयल खाद्य उद्योग को जिम्मेदार ठहराते हैं. उन्होंने कहा कि लोगों के स्वास्थ्य की कीमत पर इस महत्वपूर्ण मुद्दे को कई कारणों से स्थगित कर दिया गया. डॉ. गोयल के मुताबिक, “खाद्य उद्योग जानता है कि यदि उसने अपने उत्पादों में मिलाए जाने वाले हानिकारक सामग्रियों का विवरण दिया, तो लोग जागरूक हो जाएंगे और ऐसे उत्पादों का इस्तेमाल नहीं करेंगे. लेकिन सरकार को एफओपीएल का पालन करने के लिए खाद्य उद्योग पर नहीं छोड़ना चाहिए और इसकी बजाय इसे अनिवार्य बनाना चाहिए.”

बच्चे जागे तो रोग भागें

बच्चों को ऐसे खाद्य उत्पादों के बारे में शुरुआती वर्षों में ही जागरुक करना चाहिए, ताकि वे इनके स्वास्थ्य पर पड़ने वाले खतरों के बारे में जान सकें और उस बारे में उचित निर्णय ले सकें. उन्होंने कहा, “इसका दीर्घकालिक प्रभाव होगा.” ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड द्वारा अपनाई जा रही फूड स्टार रेटिंग प्रणाली को डॉ. गोयल ने यह कहते हुए अस्वीकार कर दिया कि वे अस्वस्थकर उत्पादों को गलत तरीके से पेश करते हैं जिससे उपभोक्ता भ्रमित होते हैं. भ्रमित उपभोक्ताओं में यह सोचने की संभावना बढ़ जाती है कि अल्ट्रा-प्रोसेस्ड प्रॉडक्ट हेल्दी हैं.

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