लखीमपुर कांड का सियासी असर:UP के पांच विश्लेषकों की राय- तस्वीर में कांग्रेस उभरी, लेकिन जमीन पर SP को फायदा; भाजपा ने चतुराई से किया डैमेज कंट्रोल

उत्तर प्रदेश में अगले 5-6 महीने बाद चुनाव होने वाले हैं, ऐसे में माना जा रहा है कि लखीमपुर खीरी की घटना का चुनाव पर भी असर होगा। ऐसे में हमने उत्तर प्रदेश की राजनीति को समझने वाले 5 दिग्गज पत्रकारों से बात की और लखीमपुर खीरी की घटना के आगामी विधानसभा चुनाव पर पड़ने वाले असर को समझने की कोशिश की है। 5 में से 3 जानकारों का कहना है कि- ‘बैटिंग भले ही कांग्रेस करती हुई दिख रही हो, लेकिन रन सपा के खाते में ही जाएंगे.’

शरत प्रधान, वरिष्ठ पत्रकार

लखीमपुर का मामला गंभीर है और चुनावी लिहाज से भी ये अहम साबित होगा। पहले सत्ता प्रतिष्ठान से जुड़े लोगों ने किसान आंदोलनकारियों को खालिस्तानी, आतंकी बोला और अब लखीमपुर में किसानों पर गाड़ी चढ़ाने के मामले में सीधे BJP के केंद्रीय मंत्री का नाम आ रहा है। इस घटना से देश के सबसे बड़े वोटर ग्रुप किसानों पर भी असर पड़ा है। पहले से ही किसानों के दिमाग में था कि कृषि कानून उनके खिलाफ हैं और अब तो उन तक ये मैसेज गया है कि विरोध करने पर जान भी जा सकती है।

इस घटना के पहले तक विपक्ष नजर नहीं आ रहा था, लेकिन इस घटना के बाद से विपक्षी पार्टियां समाजवादी पार्टी, कांग्रेस, BSP एकदम से एक्टिव हो गई हैं। विपक्षी पार्टियों में भी देखें तो सबसे ज्यादा फायदा कांग्रेस और उनकी नेता प्रियंका गांधी को मिलते हुए दिख रहा है, लेकिन चूंकि कांग्रेस का UP में संगठन उतना मजबूत नहीं है, इसलिए कुछ हद तक SP भी इसका लाभ उठाएगी। हालांकि, SP प्रमुख अखिलेश यादव अपने घर के बाहर ही बैठे रहे। उन्होंने लखीमपुर जाने की कोशिश तक नहीं की। जहां तक BSP का सवाल है तो लोग उनको विपक्ष के तौर पर मान ही नहीं रहे हैं, वो BJPकी B टीम के जैसा रवैया अपना रही है।

प्रियंका गांधी ने जिस तरह से उत्तर प्रदेश में सियासी सक्रियता बढ़ाई है, उसका असर दिख सकता है। हाथरस गैंगरेप केस, उन्नाव रेप केस, मिर्जापुर हत्याकांड और अब लखीमपुर में भी वो विपक्षी नेताओं में सबसे आगे दिखी हैं।

योगी सरकार ने जिस तरह से हाथरस और अब लखीमपुर खीरी में प्रशासनिक रवैया दिखाया है, साफ है कि ये अलोकतांत्रित है। अभी चुनाव 5-6 महीने दूर हैं, लखीमपुर का मुद्दा तब तक जिंदा रहेगा जब तक विपक्ष इस पर सक्रियता दिखाता रहेगा। अगर विपक्ष फिर से बिल में घुस गया तो लोग धीरे-धीरे भूल जाएंगे। इसलिए पूरी जिम्मेदारी विपक्ष पर है।

हर्षवर्धन त्रिपाठी, वरिष्ठ पत्रकार

लखीमपुरी खीरी की घटना बहुत बड़ी थी और इसका सीधा असर चुनाव पर पड़ने वाला था, लेकिन योगी आदित्यनाथ ने राकेश टिकैत से जिस तरह से डील की और सरकार-किसानों में झट से समझौता हो गया, इसने विपक्ष को चौंकाया है। अखिलेश यादव से लेकर प्रियंका गांधी तक अगर राकेश टिकैत से पहले पहुंच जाते तो शायद इस मामले को विपक्ष बेहतर तरीके से भुना पाता।

अगर राजनीतिक लाभ के नजरिए से देखें तो इसके दो पहलू हैं। लखीमपुर खीरी घटना के बाद कांग्रेस पार्टी ने सबसे ज्यादा माहौल (बज) बनाया है, लेकिन दिक्कत ये है इसे भुनाने के लिए उत्तर प्रदेश में कांग्रेस पार्टी के पास कैडर नहीं है। इसलिए चुनावी लिहाज से जमीन पर कितना फायदा होगा ये कहना कठिन है। दूसरी तरफ SP और BSP के पास कैडर तो है, लेकिन वो उस तरह से लखीमपुर की घटना को नहीं भुना पाईं। लखीमपुर खीरी का मुद्दा अभी चर्चा में है, लेकिन आने वाले 15-20 दिनों में ये घटना न्यूज स्पेस से बाहर हो जाएगी। इस घटना का आधार किसान आंदोलन है और मुझे लगता है कि किसान आंदोलन में कोई खास दम नहीं है।

रामकृपाल सिंह, वरिष्ठ पत्रकार

किसी भी चुनाव के पहले होने वाली हर घटना को इसी तरह आंका जाता है कि चुनाव पर इसका क्या असर पड़ेगा। मेरा मानना है कि जनता ये समझ रही है कि कुछ महीने बाद चुनाव हैं तो इस तरह की घटनाओं को चुनावी मुद्दा बनाया ही जाएगा।

लखीमपुर खीरी की घटना से अगर हम मान रहे हैं कि विपक्ष को मुद्दा मिल गया है, तो ये बात सही हो सकती है, लेकिन दिक्कत ये है कि विपक्ष में कोई एक पार्टी तो है नहीं जिसे सीधा फायदा मिलेगा। अगर लखीमपुर की घटना के बाद कुछ वोट प्रतिशत छिटकता भी है तो ये SP, BSP, कांग्रेस, आप, AIMIM में बंटेगा और वोट के इस बंटवारे का फायदा साफ तौर पर BJP को ही होगा।

विपक्षी पार्टियों में ही अगर तुलना करके देखें तो SP को सबसे ज्यादा फायदा मिलता दिख रहा है, इसकी सबसे बड़ी वजह ये है कि जमीन पर उनका कैडर है। वहीं इसके बाद BSP और फिर उसके बाद कांग्रेस को थोड़ा बहुत फायदा होगा, लेकिन ये मान लेना कि विपक्ष को इतना फायदा होगा कि वो BJP को हराने के बारे में सोचें, ये कहना ठीक नहीं होगा।

अभिज्ञान प्रकाश, राजनीतिक विश्लेषण

चुनाव के पहले ऐसी कई सारी घटनाएं होती हैं, जो उस इलाके के मूड को बदलने में निर्णायक साबित होती हैं। लखीमपुर की घटना निर्णायक साबित होगी या अभी ये साफ नहीं कहा जा सकता, लेकिन विपक्षी दलों ने इसे पूरी तरह से भुनाने की कोशिश की है। मिसाल के तौर पर 2017 में अखिलेश यादव और चाचा शिवपाल यादव के बीच विवाद सार्वजनिक हो गया और SPको इसका खामियाजा भी भुगतना पड़ा। ऐसे में लखीमपुर खीरी में जो घटना हुई है, चुनावी राजनीति पर उसका असर होना तो तय ही है, लेकिन अभी नहीं कहा जा सकता है कि किसे ज्यादा फायदा होगा और किसे कम।

एक तरफ विपक्षी नेताओं पर पॉलिटिक्ल टूरिज्म का आरोप लगाया जा रहा है, दूसरी तरफ कहा जा रहा है कि विपक्ष की वजह से ये मुद्दा बड़ा हुआ है। दोनों बातें सही नहीं हो सकतीं। उत्तर प्रदेश का इतिहास गवाह है कि कानून व्यवस्था और भ्रष्टाचार के मुद्दों पर वहां की सरकारें गिरी हैं। यहां पर ये अहम नहीं है किस विपक्षी पार्टी का ज्यादा फायदा होगा और किसका नुकसान। किसानों की जानें गई हैं और अब ये CM योगी आदित्यनाथ की जिम्मेदारी है कि वो इसकी जांच करवाएं और जिम्मेदारों पर कार्रवाई करें।

आलोक जोशी, वरिष्ठ पत्रकार​

लखीमपुर खीरी की घटना का चुनावों पर सीधा असर कितना पड़ेगा, ये कहना मुश्किल है, लेकिन एक बाद साफ है कि इस घटना के बाद जो राजनीतिक हलचल तेज हुई है, उसका जरूर असर हो रहा है। विपक्षी दलों में खासकर कांग्रेस और प्रियंका गांधी ने जो सक्रियता दिखाई है, उससे UPमें कांग्रेस पार्टी की छवि बदली है। अभी तक ये माना जा रहा था कि कांग्रेस पार्टी जमीन पर कहीं नहीं है, प्रियंका गांधी ने लखीमपुर के सहारे कांग्रेस में जान फूंकने में कामयाबी हासिल की है।

परंपरागत तरीके से समाजवादी पार्टी का उत्तर प्रदेश में मजबूत कैडर है, लेकिन लखीमपुर की घटना के बाद SP के नेता उस तरह से सक्रिय नहीं दिखे, जैसी सक्रियता कांग्रेस ने दिखाई है। कांग्रेस के लिए कैडर न होने का जो सवाल उठ रहा है, वो मेरे हिसाब से मुद्दा नहीं है। मुद्दे के साथ कैडर अपने आप खड़ा हो जाता है। प्रियंका गांधी ने जमीन पर पहुंचकर ये उम्मीद जता दी है कि वो खोई कांग्रेस की साख वापस लाने के लिए लड़ रही हैं।

उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने तेजी से किसानों से बात की, मुआवजे का ऐलान किया, लेकिन सरकार की तरफ से गड़बड़ी ये हुई है कि पूरी घटना में केंद्रीय मंत्री के बेटे मुख्य आरोपी हैं और उन्हें रस्म निभाने के लिए भी गिरफ्तार नहीं कर रहे हैं, उनसे पूछताछ भी नहीं हुई है। अगर कम से कम पूछताछ हुई होती तो ये मैसेज जाता कि सरकार कानून-व्यवस्था को लेकर गंभीर है। सरकार ने दूसरी सारी चीजें की हैं, लेकिन मुख्य आरोपी से अब तक न पूछताछ हुई है ना गिरफ्तार किया गया है। वहीं सरकार विपक्षी नेताओं को गिरफ्तार कर रही है। ये पॉलिटिकल ऑप्टिक्स के लिहाज से अच्छा नजारा नहीं है।

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