भोपाल के सिनेमाघर में छेड़छाड़; 28% लड़कियों को थिएटर में लगता है डर, चाहती हैं चेयर के साथ ‘खतरे वाला बटन’
मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल के एक सिनेमाघर में युवती के साथ छेड़छाड़ के बाद युवक की मारपीट का मामला सामने आया। ये कोई पहला केस नहीं, बल्कि नोएडा के एक मल्टीप्लेक्स में कुछ मनचलों ने युवतियों से छेड़खानी और विरोध पर गाली-गलौज की थी। ‘सेव द चिल्ड्रन, इंडिया’ की रिपोर्ट ‘विंग्स 2018: वर्ल्ड ऑफ इंडियाज गर्ल्स’ की मानें तो बड़े शहरों की 28% युवा महिलाएं सिनेमा हॉल में असुरक्षित महसूस करती हैं। इन घटनाओं को लगभग रोज ही झेलती युवतियां क्या मूवी थिएटर जाने से तौबा कर रही हैं? ट्रेंड समझने के लिए दैनिक भास्कर की वुमन टीम ने फिल्में देखने की शौकीन कुछ महिलाओं से बात की।
मजबूरन मुझे सीट बदलनी पड़ी…
दिल्ली की रहने वाली 29 साल की खुशबू बिश्नोई बताती हैं, ‘मुझे बचपन से ही मूवीज का शौक है और हॉल में फिल्म देखने में ज्यादा मजा आता है। फिल्म चाहे कॉमेडी हो या फिर हॉरर, अगर मुझे कभी देखने का मन है तो मैं मूवी हॉल अकेली ही निकल जाती हूं। हालांकि, मूवी की टिकट बुक करने से पहले इस बात का खास ध्यान रखती हूं कि हॉल खाली न हो। जब कम लोग मूवी हॉल में होते है तो मैं सेफ महसूस नहीं करती। ऐसे में कई बार फिल्म बीच में छोड़कर जाना पड़ता है।’
हमेशा मार्निंग शो ही प्रेफर करती हूं…
वे कहती हैं, आज भी मुझे याद है कि मूवी हॉल में मेरी रो में कुछ लड़के बैठे थे, इंटरवल होने पर मैं जब बाहर से वापस लौटी तो लाइट्स बंद हो चुकी थी। उसी रो से सीट की तरफ जाने के दौरान अंधेरे का फायदा उठाकर एक लड़ने ने इंटेशनली अपना पैर आगे कर लिया। मैं वहीं गिर गई। उन लड़कों का पूरा ग्रुप जोर-जोर से हंसने लगा, पर मैं अकेली थी तो कुछ बोल भी न पाई। इससे पहले भी कई वाकये हो चुके हैं। ऐसा होने पर मैं अपनी सीट बदल देती हूं। और अब मैं हमेशा मार्निंग शो देखना ही प्रेफर करती हूं।
खुशबू बताती हैं कि मूवी के दौरान लोग बदतमीजी से बात करने से बाज नहीं आते। कुछ के लिए यही अनोखी बात हो जाती हैं कि मैं अकेले मूवी देखने आई हूं। लेकिन ये मेरा शौक है। ऐसे में मुझे हमेशा महसूस होता है कि सिनेमाघरों में महिलाओं की सुरक्षा के लिए अलग से पिंक एरिया हो, टॉर्च लिए गार्ड वहां मौजूद रहे, साथ ही बीच-बीच में आकर देखें, ताकि टिकट बुक करने से पहले किसी लड़की को सुरक्षा के बारे में न सोचना पड़े।
नोएडा की अदिती शर्मा कहती हैं, मुझे हमेशा से ही अकेले फिल्में देखने का शौक रहा। अभी तक सैकड़ों फिल्में अकेले जाकर देख चुकी हूं। पर हमेशा एक बात महसूस हुई, पर्दे पर चल रहे रोमांटिक सीन के दौरान लड़के जोर-जोर से शोर मचाना शुरू करते हैं। तब गुस्से को कंट्रोल करने सिवाय कोई दूसरा ऑप्शन नहीं होता।
अंधेरे में लड़के अक्सर हाथ-पैर मारने की कोशिश करते हैं
अदिती कहती हैं, मूवी हॉल में वुमन सेफ्टी के लिए सीसीटीवी कैमरे तक नहीं होते हैं। इस बात पर भी शायद ही किसी का ध्यान गया है कि हॉल के बाहर लगे कैमरे ठीक से काम कर रहे हैं या नहीं। छोटे कस्बों से लेकर बड़े शहरों तक, न जाने कितने सिनेमाघर जा चुकी हूं, लेकिन कहीं भी मुझे महिलाओं की सुरक्षा के लिए कोई खास इंतजाम नहीं दिखा।
दर्शकों की भीड़ के बीच भी डर मन में रहता है। अंधेरे में लड़के अक्सर हाथ-पैर मारने की कोशिश करते हैं। वो कहती हैं ‘काश हर सिनेमाघर या मल्टीप्लेक्स में कुर्सी के बगल में एक ऐसा ट्रिगर बटन हो, जिसे बजाते ही सुरक्षा गार्ड को भनक लग जाए कि इस सीट की महिला सेफ नहीं।
कितने अनसेफ हैं सिनेमाहॉल?
चंडीगढ़ की श्रुति बिष्ट कहती हैं, कुछ लोगों के लिए भले ही यह बड़ी बात है पर मैं अपने समय के हिसाब से अकेले मूवी देखने चली जाती हूं। क्योंकि लड़कियों से आजादी छीनना हल नहीं है, बल्कि इससे हालात और खराब होते जाएंगे। मुझे लगता है कि महिलाओं की सुरक्षा को देखते हुए हर शॉपिंग मॉल और मल्टीप्लेक्स में महिला सुरक्षा गार्डों की ज्यादा तैनाती होनी चाहिए।
वहीं, जयपुर की नेहा गर्ग बताती हैं, मामला देश व प्रदेश में सुरक्षा का तो है ही, साथ में अपराधियों में बढ़ते हौसले व समाज के गिरते नैतिक स्तर का भी है। यही वजह है कि मैं फैमिली मेंबर्स के साथ ही मूवी देखने जाती हूं।
सिनेमाघरों में वुमन सेफ्टी के क्या इंतजाम?
Ficci-EY मीडिया और मनोरंजन उद्योग की साल 2020 की रिपोर्ट के अनुसार 2019 तक भारत में 6,327 सिंगल स्क्रीन और 3,200 मल्टीप्लेक्स थे। हालांकि, कोरोना के कारण 10-12% स्क्रीन बंद हो गई। नोएडा जीआईपी मॉल प्रबंधन के शमीन अनवर बताते हैं कि मॉल के प्रवेश द्वार पर मेटल डिटेक्टर लगा है, जहां सुरक्षाकर्मी होते हैं। इनमें महिला सुरक्षाकर्मी भी हैं। इसके अलावा अगर किसी को कोई परेशानी हो तो सीधा मैनेजमेंट से शिकायत कर सकते है। उसी आधार पर एक्शन लिया जाता है।
जयपुर के INOX जीटी सेंट्रल मॉल प्रबंधन के सोनू कुमावत ने बताया कि यहां कुल 7 स्क्रीन है। अलग-अलग हॉल में 232, 271, 64, 40 सीट्स के हिसाब से बैठने की व्यवस्था है। लोगों की सुरक्षा के लिए एंट्री और एग्जिट पर सीसीटीवी कैमरे लगाए गए है। प्राइवेसी के चलते किसी भी हॉल के अंदर कैमरा नहीं है। वहीं, मूवी हॉल में हर 40 मिनट्स के बाद गेटकीपर राउंड लगाता हैं। यदि कोई घटना हो या किसी महिला को शिकायत करनी हो तो वे मैनेजमेंट से संपर्क कर सकते हैं। मामले की पूरी जांच के बाद उचित कार्रवाई की जाती है। जब दैनिक भास्कर की टीम ने उनसे सीसीटीवी कैमरों की कुल संख्या के बारे में पूछा तो जवाब आया, इस बारे में मुझे मालूम नहीं।
भोपाल के संगीत सिनेप्लेक्स व रंग महल थिएटर के जनरल मैनेजर सुरेंद्र पाल सिंह कहते हैं कि रंग महल सिनेमा हॉल में अलग-अलग जगहों पर कुल 6 सीसीटीवी कैमरे लगे हैं। यहां 752 लोगों के बैठने की क्षमता है। गेट पर चेकिंग के बाद ही लोगों को एंट्री दी जाती है। हॉल की एंट्री पर गेटकीपर खड़ा रहता है, जो समय-समय पर अंदर राउंड लगाता है। हालांकि, मूवी हॉल के अंदर सीसीटीवी कैमरे लगाना प्रतिबंधित है।
अकेले सिनेमा हॉल जाने से पहले क्यों जरूरी है सतर्कता
- ऐसी जगहों पर कई बार चोरी का खतरा ज्यादा रहता है। जेबकतरे मौके की तलाश में रहते हैं इसलिए हमेशा सतर्क रहें।
- सिनेमाघर में किसी भी तरह के विवाद को संभालने के लिए पर्याप्त सुरक्षा व्यवस्था होना जरूरी है।
- सही तरीके से जांच नहीं होने के कारण खतरनाक चीजें हॉल तक जा सकती हैं।
- अक्सर शाम के मूवी शो में कई लोग नशे की हालत में भी पहुंचते हैं। ऐसे में कभी भी विवाद हो सकता है।