भारतीय राजनीति में अपराधिक प्रवृत्ति के लोग कैसे आते हैं?

देश की सियासत में ऐसी कोई भी राजनीतिक पार्टियां नहीं, जो पूरी तरह से अपराध मुक्त छवि की हो | यानी उनके किसी भी एक नेता पर अपराध के मामले दर्ज नहीं हों | नैशनल क्राइम रेकॉर्ड्स ब्यूरो (एनसीआरबी) के अनुसार वर्ष 2014 में राजनीतिक हिंसा में 2400 जानें गईं जबकि सांप्रदायिक दंगों में 2000 मौतें हुईं। हम भारतीय लोकतंत्र पर भले ही गर्व करते हों, लेकिन सच्चाई यह है कि भारत के लोकतंत्र के ‘मंदिर’ में लगभग 44 फीसदी दागी सांसद बैठे हैं |

नेताओं में इतना आत्मविश्वास नहीं है कि वे समाज के व्यापक सवालों पर राजनीति करें। समाज को जोड़ने की सकारात्मक राजनीति अब हमारी व्यवस्था में एक दुर्लभ चीज हो गई है। विकास की बात करते हुए भी नेतागण जाति-धर्म का मोहरा चलते हैं। अब तो विधानसभाओं और संसद तक की कार्यवाही के दौरान हिंसा होने लगी है और इसमें पढ़े-लिखे सम्मानित नेता शामिल रहते हैं।

वे दिन गए, जब नेता अपने विरोधियों का भी सम्मान करते थे। उनकी बातों को धैर्यपूर्वक सुनते थे और उनसे सौहार्दपूर्ण संबंध रखते थे। आज राजनीती में असहिष्णुता बढ़ती जा रही है। कोई किसी को सुनने के लिए तैयार नहीं है। आक्रामकता इसका स्वभाव हो गई है। छोटी-छोटी बात पर राजनीतिक कार्यकर्ता उत्पात मचाने लगते हैं, सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाते हैं। मरने-मारने पर उतारू हो जाते हैं।

दरअसल पहले लोग देश सेवा के लिए अपने शानदार करियर छोड़कर राजनीति में आते थे, पर अब पॉलिटिक्स अपने आप में एक करियर है। यह एक लाभप्रद व्यवसाय के रूप में उभरी है। जन प्रतिनिधि बनते ही एक व्यक्ति की संपत्ति में असाधारण इजाफा होने लगता है। इस कारण राजनीति में आने और उसमें बने रहने के लिए एक गलाकाट प्रतियोगिता शुरू हो गई है। सत्ता पाने के लिए कोई व्यक्ति या उसके जरिए लाभान्वित होने वाला समूह किसी भी हद तक जा सकता है। वह अपने विरोधियों का मनोबल तोड़ने के लिए हिंसा तक का सहारा लेता है। हरेक पार्टी भले ही ऊपर से राजनीति के अपराधीकरण का विरोध करती हो, लेकिन प्राय: सभी दलों में बड़ी संख्या में आपराधिक प्रवृत्ति के लोग शामिल हैं। यही नहीं बड़े-बड़े लीडर भी समय-समय पर ऐसे बयान देते हैं जिससे समाज में जातीय या सांप्रदायिक गोलबंदी होती है और तनाव पैदा होता है।

सोचा जा सकता है कि उनके इस आचरण का साधारण कार्यकर्ताओं पर क्या असर पड़ता होगा। हमारे राजनीतिक तंत्र में व्यापक सुधार की जरूरत है। यदि उसे राजनीतिक पार्टियों का सहयोग नहीं मिलेगा, तो वह अपनी ज़िम्मेदारी पूरी तरह से नहीं निभा पाएगा। पर इसके लिये समाज को जागरूक होकर आगे आना होगा।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *