सदियों तक औरतें नागरिक की बजाय पालतू बिल्ली बनी रहीं, जिनका काम पति का मनोरंजन और वंश बढ़ाना रहा
साल 1912 की बात है, जब टाइटेनिक नाम का जादू ब्रिटेन से अमेरिका की ओर निकला। 50 हजार टन वजनी उस जहाज के बारे में दावा था कि वो डूब नहीं सकता। समंदर की लहरों पर जलपरी की तरह थिरकता हुआ जहाज बीच रास्ते में बर्फीली चट्टान से टकरा गया। टाइटेनिक डूब रहा था। 2 हजार से ज्यादा सवारियों वाले जहाज पर कुल जमा 20 लाइफबोट। कौन बचे, कौन मरे- के बीच जवान औरतें और बच्चे बोट में बिठाए जाने लगे, वहीं मर्द अटलांटिक के बर्फीले पानी में समा गए। डूबते जहाज से सही-सलामत लौट आई इन औरतों को किसी ने भींचकर गले नहीं लगाया, बल्कि वे गाली बन गईं। महिलाओं के वोट के हक की बात चली तो ब्रिटेन से लेकर अमेरिका तक के अखबार जनाना-डर और स्वार्थ की दुहाई देने लगे।
अमेरिकी शिक्षाविद जोसेफिन ज्वेल डॉज ने ‘लेसन दैट केम फ्रॉम द सी’ नाम से एक सीरीज में तमाम तर्क बुने कि महिलाएं क्यों वोटिंग राइट के लायक नहीं। ‘डूबते जहाज से भागती औरतें कमजोर और कायर हैं। ऐसे में देश की सरकार चुनने जैसा जिम्मेदार काम उन्हें क्यों मिले!’
दलील पके हुए केले जितनी नर्म थी, लिहाजा पॉलिसी बनाने वालों के गले में फट से उतर गई। इसके बाद सालों तक औरतें किसी भी मुल्क की नागरिक होने की बजाए घरेलू बिल्ली बनी रहीं, जिनका काम वंश बढ़ाना और गृह-स्वामी का मनोरंजन था। किश्त-किश्त करके उन्हें वोट का अधिकार मिला। ब्रितानिया सल्तनत से आजादी के बाद भारतीय औरतें भी सरकार चुनने के लिए आजाद हो गईं, हालांकि लड़ाई अब भी बाकी है। वो वोटर तो हैं, लेकिन हैसियत में पालतू बिल्ली से कुछ ज्यादा नहीं।
कटोरे में गुनगुना दूध भरकर या फिर गले में टुन-टुन करती जंजीर डालकर ‘इस’ बिल्ली को पुचकारना आजमाया हुआ राजनैतिक टोटका रहा। हाल ही में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने दूध के ऐसे ही भगौने का लालच दिया। दरअसल आगामी विधानसभा चुनावों के बीच केजरीवाल ने वादा किया कि अगर पंजाब में उनकी पार्टी आ जाए तो 18 साल से ऊपर की हर महिला के खाते में 1000-1000 रुपये डाले जाएंगे।
जनसभा में ये भी कहा गया कि हर महीने पैसे आना महिलाओं को मजबूती देगा। महिलाओं को ताकतवर बनाने का ये अपनी तरह का अनोखा वादा है, जिसपर हमेशा की तरह सोशल मीडिया के बहसखोर तर्क-वितर्क कर रहे हैं। इन्हीं तर्कों में एक ये भी है कि क्या महिलाओं की मजबूती के लिए उन्हें पैसे देना काफी है! क्या 1000 रुपए खाते में आने से वो शाम को सीना चौड़ा करके सड़क पर निकल सकेगी, या फिर सुनसान रास्ता पार करके स्कूल जा सकेगी?
हजार रुपये न हुए, जेड प्लस सिक्योरिटी हो गई। इन पैसों को मुट्ठी में रखकर वे निकलेंगी और सड़क पर टोह लगाए मवाली छितरा जाएंगे। इन्हीं हजार रुपयों से वे पढ़ाई पूरी कर लेंगी। सैनिटरी पैड खरीद सकेंगी। और छोटा-मोटा बिजनेस भी खड़ा कर लेंगी। इसके अलावा भी अगर कोई काम बचता हो, तो हजार रुपये हैं न! महाभारत में द्रौपदी की बटलोई भी उसके खाने के बाद खाली हो जाती थी, लेकिन सरकारी वादे की ये बटलोई हरदम भरी रहने का वादा कर रही है। महिला वोटरों का यकीन पाने की बजाए, उन्हें लुभाने की कोशिश हमेशा दिखती रही। आम आदमी पार्टी का भी ये ‘एक हजारी वादा’ किसी इंतजार की तरह आएगा और वीकेंड की तरह खत्म हो जाएगा।
ये तो हुई सरकार चुनने में हिस्सा लेती औरतों की बात, लेकिन उन महिलाओं के साथ क्या होता है, जो खुद सरकार में होती हैं!
साल 2020 में यूरोपीय देश बेलारूस की सोशल वर्कर स्वेतलाना तिकेनोवेस्केया ने वहां के राष्ट्रपति एलेक्जेंडर लुकाशेन्को को चुनाव में कड़ी टक्कर दी। एलेक्जेंडर स्वेतलाना से लगभग दोगुनी उम्र के थे, और 26 सालों से राष्ट्रपति थे। इसके बाद भी वे इतना बौखला गए कि अपनी हर सभा में देश की बात भूलकर इस महिला की बात करने लगे। बता दें कि विदेशों में चुनाव से पहले राष्ट्रपति पद के दावेदारों के बीच टीवी पर लाइव बहस होती है।
एलेक्जेंडर इतना खकुआए हुए थे कि बहस से ऐन पहले उन्होंने कह दिया- स्वेतलाना अभी-अभी स्वादिष्ट कटलेट बनाकर घर से निकली हैं। यहां आने से पहले शायद उन्होंने बच्चों को भरपेट खिला भी दिया होगा। कटलेट पकाने तक तो ठीक है, लेकिन अब वे मुझसे मुकाबले की सोच रही हैं! स्वेतलाना चुनाव हार गईं क्योंकि बेलारूस ने उन्हें कटलेट बनाने तक ही सीमित कर दिया।
साल 2016 में नाइजीरिया के राष्ट्रपति मुहम्मदू बुहारी जर्मनी यात्रा पर गए। वे वहां की चांसलर एजेंला मर्केल के बगल में खड़े थे और काफी मजाकिया मूड में दिख रहे थे। इंटरव्यू के दौरान पत्नी का जिक्र आने पर उसी मूड के साथ बुहारी ने कहा- ‘मुझे नहीं पता कि मेरी बीवी किस पार्टी के साथ है, लेकिन मेरे लिए उसकी जगह रसोई में है, और लिविंग रूम में, और घर के बाकी कमरों में।’
ये स्टेटमेंट देते हुए बुहारी के चेहरे पर घरेलू किस्म की तसल्ली थी कि उन्होंने पत्नी के बहाने दुनिया की हर औरत को उसकी जगह दिखा दी। इस टीवी इंटरव्यू के तुरंत बाद सोशल मीडिया पर एक कैंपेन चला। #TheOtherRoom नाम से इस कैंपेन ने बुहारी को काफी दिनों तक चिढ़ाया, लेकिन जैसी कि रीत है, इससे राजनीति पर कोई फर्क नहीं पड़ा।
तीन महासागरों से घिरे मुल्क कनाडा में भी वैसे तो महिलाओं को खासी ‘छूट’ मिली हुई है, लेकिन महिला लीडर्स वहां भी चुटकुले की तरह ट्रीट होती हैं। वहां की सांसद मिशेल रेम्पेल को एक पुरुष सांसद ने कह दिया था कि जब वे या दूसरी महिला लीडर मुद्दों पर बहस करती हैं, तो उन्हें ‘उत्तेजना’ होती है।
कैंटीन की टेबल एकबारगी बेदाग दिख जाए, लेकिन मर्द-दिमाग का एक कोना सफाई से लगातार जी चुराता रहा। वो मान बैठा कि औरत की जगह रसोई और ‘दूसरे कमरे’ तक ही है। तो लड़कियों, अब तुम्हारा जिम्मा! झाड़ू-पोंछा उठाओ और शुरू कर दो सफाई। यकीन जानो, हर युद्ध में खून नहीं बहता। कुछ युद्ध अंधेरा मिटाने की तरफ भी जाते हैं।