भारत के डिफेंस बजट से ज्यादा पैसे लोग जुआ में उड़ा रहे हैं, जानिए सट्टेबाजी के बारे में सबकुछ
टी-20 वर्ल्ड कप खत्म होते-होते हमारे देश के सट्टा बाजार में 5 लाख करोड़ रुपए लग चुके थे। एक ऑकवर्ड सा फैक्ट बताऊं कि इस साल हमारे देश का जो डिफेंस बजट 4 लाख 78 हजार करोड़ रुपए था। यानी सरकार हमारी सुरक्षा पर जितने पैसे खर्च करती है, उससे ज्यादा पैसे लोग सट्टेबाजी यानी जुआ में लगा रहे हैं, लेकिन ये लोग इतने धड़ल्ले से जुआ खेल कैसे रहे हैं? कानून क्या है और सरकार को इसमें क्या फायदा हो रहा है? ये जानना जरूरी है-
भारत में जुए का इतिहास 5000 साल पुराना
ये कहानी शुरू होती है 5000 साल पहले से। जी हां, भारत में जुए का ताल्लुक है महाभारत से। उसने सिखाया कि जुआ खेलने वाले, जमीन-जायदाद और पत्नी तक हार जाते हैं। यही एक बात भारत में जुए को गलत ठहराती है। नहीं तो भारत की किसी सरकार ने आज तक जुए पर कोई कानून नहीं बनाया है।
फिर आप कहेंगे कि अच्छा, ये जो पुलिस जुआ खेलने वालों को उठाती है, वो कैसे? जी हां तो इसका जवाब है- कि आज 150 साल पहले अंग्रेजों ने कहा अगर भारत पर राज करना है तो पहले इन्हें खेलने से रोको, क्योंकि जुए के चलते एक रात में कोई राजा भिखारी हो जाता था तो कोई भिखारी राजा बन जाता था। वो समझ नहीं पाते थे किसके साथ रिश्ते मजबूत करें।
आज भी 150 साल पुराना कानून, ऑनलाइन पर कोई नियम नहीं
इसलिए उन्होंने The Public Gambling Act 1867 बनाया और जुआ बैन कर दिया।आज तक हम उसी नियम को मानते आ रहे हैं। आजाद भारत की किसी सरकार ने इस नियम को अपडेट करने तक की हिम्मत नहीं दिखाई है। इसमें भी एक पेंच है। दरअसल, 1867 में ऑनलाइन जैसी कोई चीज थी नहीं, ना मोबाइल ऐप थे। इसलिए इस कानून में इंटरनेट पर खेले जा रहे जुए पर कोई नियम नहीं है।
इसीलिए ऑनलाइन दुनिया में सट्टेबाजी का बाजार फलने-फूलने लगा। संसद ने जब 2000 में आईटी एक्ट बनाया तो भी सट्टेबाजी के लिए कोई नियम नहीं बनाया। इससे हुआ क्या? भारत की कुल सट्टेबाजी में 80% जुआ ऑनलाइन खेला जाने लगा। 2019 तक सट्टा बाजार 3 लाख करोड़ का हो गया था।
सट्टेबाजी को सुप्रीम कोर्ट ने 2 कैटेगरी में बांटा
इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया गया। सुप्रीम कोर्ट ने 6 मार्च 2020 को एक लैंडमार्क डिसीजन इस प्रपोजल को पास कर दिया कि जुए के दो रूप हैं। पहला – गेम ऑफ स्किल। यानी अपनी जानकारी और नॉलेज के हिसाब पैसे दांव पर लगाना। इसे अपराध नहीं कहा जाएगा।
ड्रीम 11 गेम ऑफ स्किल वाले नियम से चलता है
ड्रीम 11, फैंटसी 11, माय सर्कल और रमी जैसे ऑनलाइन सट्टेबाजी वाले ऐप सुप्रीम कोर्ट के गेम ऑफ स्किल के तहत जमकर धंधा कर रहे हैं। जो फैंटेसी स्पोर्ट्स 2019 में 920 करोड़ रुपए का था, वही 2020 में 24000 करोड़ रुपए तक पहुंच गया था। इस साल के आंकड़े अभी आए नहीं हैं, लेकिन जिस तरह का प्रचार टी-20 में किया गया है, एक्सपर्ट्स कहते हैं इस बार इनकी कमाई इतनी हुई है जितनी हम सोच नहीं सकते।
गेम ऑफ चांस अपराध मगर अंतिम फैसला राज्यों के हाथ में, 3 ने किया लीगल
सुप्रीम कोर्ट ने दूसरी बात कहीं गेम ऑफ चांस, यानी सिर्फ लक आजमाकर जुआ खेलना। ये ठीक नहीं है, लेकिन राज्य के पास ये अधिकार होगा कि वो अपने स्टेट में चाहे तो इस तरह के जुए को भी लीगल कर सकता है। जैसे गोवा, सिक्कम और दमन ने यहां जुआ लीगल कर रखा है। दूसरे राज्यों में उसी 150 साल पुराने कानून के साथ इस पर बैन है।
भारत में सट्टेबाजी लीगल हुई तो सरकार को 19 हजार करोड़ रुपए तक मिल सकते हैं
फिलहाल सबसे ज्यादा सट्टेबाजी क्रिकेट पर हो रही है। 2013 में IPL में स्पॉट फिक्सिंग के बाद लोढ़ा पैनल बना। 38 राउंड की बैठकों के बाद इस पैनल ने सिफारिश की थी कि क्रिकेट में बेटिंग को लीगल कर देना चाहिए, क्योंकि सट्टेबाजों पर पूरी तरह से लगाम लगा पाना मुश्किल है। अगर लीगल करते हैं तो सरकार को रेवेन्यू मिलने लगेगा।
फिक्की की एक रिपोर्ट ने कहा कि क्रिकेट में बेटिंग लीगल कर दें तो सरकार को हर साल 12 से 19 हजार करोड़ रुपए मिलने लगेंगे।
सट्टेबाजी से 1 लाख करोड़ रुपए तक कमाती है कनाडा की सरकार
फिलहाल इंग्लैंड, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा और यूरोप कुछ देशों में सट्टेबाजी लीगल है। 2019 में जब डाटा आया तो ऑस्ट्रेलिया को बेटिंग से 11 अरब डॉलर, यानी 81 हजार करोड़ और कनाडा को करीब 15 अरब डॉलर, यानी 1 लाख 11 हजार करोड़ रुपए का फायदा हुआ था।
आज जानना जरूरी में इतना ही। फिलहाल हम ये आपसे भी जानना चाहते हैं कि क्या सट्टेबाजी भारत में लीगल होने चाहिए या नहीं। भास्कर ऐप में जहां ये स्टोरी खत्म होगी वहां सुझाव बॉक्स दिखेगा, उसमें आप अपनी राय रख सकते हैं।