10 मार्च को EVM से कैसे गिने जाएंगे वोट; जानिए 14-14 मेजों पर ही क्यों होती वोटों की गिनती?
यूपी, पंजाब, उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर में विधानसभा चुनाव अब पूरा हो चुका है। अब सभी को 10 मार्च को आने वाले नतीजों का इंतजार है।
जीत-हार के बीच एक सवाल हमारे-आपके मन में उठता है कि आखिर बूथ पर जिस इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन यानी EVM के जरिए वोटर अपना वोट देते हैं, उसकी काउंटिंग होती कैसे है? EVM से वोटों की गिनती के कुछ खास नियम भी हैं। जैसे जिस हॉल में वोट गिने जाते हैं उसमें एक बांस-बल्लियों की एक बाढ़-बंदी के पीछे 14-14 मेज ही लगाई जाती हैं। आपके मन में सवाल उठ रहा होगा कि ऐसा क्यों?
तो आज हम आपको बताएंगे कि EVM क्या होती है? कैसे इनके जरिए काउंटिंग होती है? काउंटिंग के क्या-क्या नियम हैं और क्यों हैं?
सबसे पहले EVM से काउंटिंग की पूरी प्रक्रिया को जानते हैं
- काउंटिंग से पहले EVM को मतगणना केंद्र पर स्ट्रॉन्ग रूम से कड़ी सुरक्षा के बीच लाया जाता है। स्ट्रॉन्ग रूम वो जगह होती है जहां वोटिंग के बाद EVM को रखा जाता है।
- मतगणना स्थल पर रिटर्निंग ऑफिसर यानी RO के अलावा कैंडिडेट, इलेक्शन एजेंट, काउंटिंग एजेंट समेत कई अन्य अधिकारी रहते हैं। कैमरे से पूरी प्रक्रिया की वीडियो रिकॉर्डिंग होती है।
- काउंटिंग एजेंट और कैंडिडेट्स के एजेंटों के बीच तारों की एक बाड़ लगी होती है। काउंटिंग हॉल में मोबाइल पर बैन होता है।
- पूरी काउंटिंग राउंड्स यानी चरणों में होती है। हर राउंड में 14 EVM खोली जाती हैं।
- आमतौर पर एक बूथ पर एक EVM होती है और हर बूथ को करीब 1200 वोटर के लिए बनाया जाता है। 60% से 70% वोटिंग के हिसाब से हर बूथ पर 750 से 850 वोट पड़ते हैं।
- इस हिसाब से हर राउंड में करीब 10 हजार से लेकर 12 हजार वोट गिने जाते हैं। वोट की इसी संख्या को सुविधाजनक मानते हुए चुनाव आयोग ने हर राउंड में 14 EVM के वोट गिनने की पॉलिसी बनाई है।
- यही वजह है काउंटिंग हॉल में एक बाड़बंदी के भीतर 14-14 टेबल लगे होते हैं। हर टेबल पर एक EVM के वोट गिने जाते हैं।
- इस बाड़बंदी में एक तरफ ब्लैक बोर्ड होता है। हर राउंड की गिनती के बाद सभी प्रत्याशियों को मिले वोटों को इसी ब्लैक बोर्ड पर लिखा जाता है।
- एक बूथ की EVM मशीन को एक टेबल पर रखा जाता है। किस टेबल पर किस बूथ की मशीन रखी जाएगी, इसके लिए पहले से चार्ट तैयार कर लिया जाता है।
- 8 बजे से मतगणना शुरू होती है। पहले पोस्टल बैलेट की गिनती की जाती है। इसके 30 मिनट बाद EVM की गिनती होती है।
- EVM मशीन में मौजूद रिजल्ट वन को दबाया जाता है, जिसके बाद पता चलता है कि किस कैंडिडेट को कितने वोट मिले। इसके लिए 2-3 मिनट का समय मिलता है।
- इसे डिस्प्ले बोर्ड पर फ्लैश किया जाता है। ताकि, सभी 14 टेबल पर बैठे चुनाव कर्मी और उम्मीदवार के एजेंट देख लें। इसी को हम रुझान कहते हैं।
- सभी 14 टेबल पर मौजूद मतगणना कर्मी हर राउंड में फॉर्म 17-C भरकर एजेंट से हस्ताक्षर के बाद RO को देते हैं।
- RO हर राउंड में मतों की गिनती दर्ज करते हैं। इस नतीजे को हर राउंड के बाद ब्लैक बोर्ड पर लिखा जाता और लॉउडस्पीकर की मदद से घोषणा की जाती है।
- पहले चरण की गिनती पूरी होने के बाद चुनाव अधिकारी 2 मिनट का इंतजार करता है ताकि किसी उम्मीदवार को कोई आपत्ति हो तो वो दर्ज करा सके।
- ये रिटर्निंग ऑफिसर पर निर्भर करता है कि वो फिर से वोटों की गिनती करवाना चाहता है या उस उम्मीदवार को आश्वस्त करता है कि कोई गड़बड़ी नहीं हुई है।
- हर राउंड के बाद रिजल्ट के बारे में राज्य के मुख्य निर्वाचन अधिकारी को रिटर्निंग ऑफिसर सूचना देता है।
यदि लोकसभा और विधानसभा चुनाव साथ में होते हैं तो क्या होगी प्रक्रिया
- ऐसा होने पर 14 टेबल को दो हिस्सों में बांटा जाता है। 7 टेबल को विधानसभा चुनाव के लिए और 7 अन्य टेबल को लोकसभा चुनाव के लिए रखा जाता है।
- यदि किसी निर्वाचन क्षेत्र में उम्मीदवारों की संख्या ज्यादा है तो वहां चुनाव आयोग की अनुमति से टेबल और काउंटिंग हॉल की संख्या बढ़ाई जा सकती है।
अब भारत में EVM से वोटिंग की कहानी जानिए
- चुनाव आयोग ने पहली बार 1977 में EVM से चुनाव कराने पर चर्चा की थी। इसके लिए इलेक्ट्रॉनिक्स कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड यानी ECIL को डिजाइन बनाने के लिए कहा गया।
- 1979 में EVM का एक मॉडल तैयार किया गया और चुनाव आयोग ने 6 अगस्त 1980 को राजनीतिक दलों के सामने इसे प्रदर्शित किया। इसके बाद EVM को बनाने का काम ECIL और भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड यानी BEL को दिया गया। ये दोनों कंपनियां सरकारी हैं।
- मई 1982 में केरल में आम चुनाव के दौरान पहली बार EVM का इस्तेमाल किया गया। हालांकि EVM से चुनाव कराने का कोई कानून नहीं था। जिसके बाद 1989 में संसद में चुनावों में EVM के उपयोग के लिए कानून बनाया गया और रिप्रेजेंटेशन ऑफ द पीपुल एक्ट 1951 में संशोधन किया गया।
- EVM से चुनाव कराने पर आम सहमति 1998 में बनी। इसके बाद प्रयोग के तौर पर मध्य प्रदेश, राजस्थान और दिल्ली की 25 विधानसभा सीटों पर EVM से चुनाव कराए गए।
- 1999 में 45 लोकसभा सीटों पर और फिर फरवरी 2000 में हरियाणा विधानसभा चुनाव में 45 विधानसभा सीटों पर EVM से चुनाव हुए।
- 2001 में पहली बार तमिलनाडु, केरल, पुडुचेरी और पश्चिम बंगाल में सभी विधानसभा सीटों पर EVM से चुनाव कराए गए।
- इसके बाद से सभी चुनाव के लिए EVM का प्रयोग हो रहा है। 2004 के लोकसभा चुनाव में देश की सभी 543 सीटों पर EVM से चुनाव हुए थे। EVM की संख्या 10 लाख से अधिक थी।
एक EVM में 14 कैंडिडेट के साथ एक NOTA का ऑप्शन
- EVM में दो यूनिट होती है। एक वोटिंग रूम में और दूसरा चुनाव अधिकारी के पास। इसे हम बैलेट यूनिट और कंट्रोल यूनिट के नाम से जानते हैं।
- बैलट यूनिट यानी BU एक तार के जरिए कंट्रोल यूनिट यानी CU से जुड़ी होती हैं। कंट्रोल यूनिट में वोटिंग से जुड़ा कोई डेटा जमा नहीं होता है।
- बैलेट यूनिट पर ज्यादा-से-ज्यादा 16 बटन होते हैं। यदि किसी सीट पर 15 से ज्यादा कैंडिडेट हैं तो दूसरी बैलेट यूनिट जोड़ी जाती है। 16वां बटन NOTA का होता है।
- एक कंट्रोल यूनिट से अधिकतम 4 बैलेट यूनिटों को जोड़ा जा सकता है।
- कंट्रोल यूनिट के ऑन होते ही उसमें तारीख और समय के साथ बैटरी का स्टेटस डिस्प्ले होता है। कंट्रोल यूनिट से चुनाव अधिकारी के बटन दबाते ही कंट्रोल यूनिट में लाल और बैलेट यूनिट में हरी बत्ती जल जाती है।
- इससे यह पता चलता है कि मशीन वोट डालने के लिए तैयार है। मतदाता के वोट डालते ही बीप की आवाज के साथ यह पता चलता है कि आपका वोट डल गया।
ऐसे काम करती है VVPAT मशीन
- साल 2013 में चुनाव में पारदर्शिता लाने के लिए वोटर वेरिफाइड पेपर ऑडिट ट्रेल यानी VVPAT को जोड़ा गया था। VVPAT को मतदान केंद्रों पर EVM मशीन के साथ जोड़ कर रखा जाता है।
- VVPAT कांच के शीशे से पूरी तरह से ढका होता है। शीशा पारदर्शी होता है। जब वोटर अपना वोट डालते हैं। तब इससे एक पर्ची निकलती है जो सिर्फ 7 सेकंड तक दिखाई देती है। इस पर कैंडिडेट का नाम और पार्टी का चुनाव चिन्ह छपा होता है। इसके बाद ये बॉक्स में गिर जाती है। पर्ची मतदाताओं को दी नहीं जाती है।
- इसी पर्ची से ही आप को पता चलता है कि आप ने जिस कैंडिडेट के सामने वाली बटन दबाई है वोट उसी को गया है या नहीं।
- यह व्यवस्था इसलिए है कि किसी तरह का विवाद होने पर EVM में पड़े वोट के साथ पर्ची का मिलान किया जा सके।
विपक्षी दलों की मांग के बाद EVM से VVPAT पर्चियों का मिलान होने लगा
- चुनाव से पहले हर समय EVM VVPAT के मिलान पर सवाल उठते रहे। 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान विपक्ष इस बात पर कायम रहा कि EVM VVPAT पर्चियों का मिलान हो ताकि यदि कोई गड़बड़ी हो तो पता चल सके।
- EVM और VVPAT मिलान के लिए विपक्षी पार्टियां चुनाव आयोग से भी मिली। इसके बाद यह मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा।
- 21 विपक्षी दलों ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी देकर मांग की थी कि प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र के 50 % वोटों को VVPAT के साथ मिलाया जाए। लेकिन चुनाव आयोग का कहना था कि 50% EVM और VVPAT को मैच करने में कम-से-कम पांच दिन लग जाएंगे। इससे नतीजे आने में देरी होगी।
- इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र में 5 EVM और VVPAT में डले वोटों की जांच की जाए।
- चुनाव आयोग ने फैसला किया कि प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र से पांच-पांच VVPAT का चयन रैंडमली यानी बिना किसी क्रम के किया जाएगा और EVM और VVPAT के नतीजों को मैच किया जाएगा।
- इस काम के लिए हर काउंटिंग हॉल में VVPAT बूथ बनाया गया। किसी तरह के विवाद या तकनीकी रुकावट की स्थिति में ये रिटर्निंग ऑफिसर पर जिम्मेदारी होती है कि वो चुनाव आयोग को इस बारे में तत्काल रिपोर्ट करे।
- पहले चुनाव आयोग की गाइडलाइन 16.6 के तहत, प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र में एक EVM से केवल एक VVPAT मशीन की पर्ची का मिलान किया जाता था।