बच्चों को उग्र बना रहे आर्टिफिशियल फूड कलर …… इन्हें बंद करने पर व्यवहार में सुधार हुआ, तो अमेरिका में डाई-फ्री डाइट मुहिम शुरू
पहली क्लास में पढ़ने वाले इवान की शैतानियां बढ़ती जा रही थीं। वह जरा सी बात पर गुस्सा हो जाता था। माता-पिता समझाते तो उग्र हो जाता। उताह के रॉय शहर में रहने वाला स्नो परिवार सबसे छोटे बेटे इवान के चलते कोई आयोजन भी नहीं कर पाता था। उसके दोस्त भी नहीं बनते थे। मां एमिली ने तो इनाम रख दिया था कि जिस दिन इवान अच्छे से रहेगा, उसे पसंदीदा रेड कैंडी मिलेगी।
हालांकि वो कभी भी इनाम ले नहीं पाया। पर पिछले कुछ वक्त में उसके व्यवहार में आश्चर्यजनक बदलाव आया है। उसे दवा और वीकली थेरेपी की जरूरत भी नहीं पड़ती। यह संभव हुआ है आर्टिफिशियल कलर वाले खानपान पर पाबंदी से। एमिली बताती हैं, कई तरह के न्यूरोसाइकोलॉजिकल टेस्ट और हजारों डॉलर के खर्च के बावजूद वो नतीजे नहीं मिल पाए, जो उसकी डाइट में बदलाव से सिर्फ चार हफ्तों में ही मिले।
सोशल मीडिया पर बड़ी संख्या में डाई-फ्री डाइट ग्रुप बने
स्नो परिवार अकेला नहीं है, पूरे अमेरिका में अब लोग बच्चों के खाने से आर्टिफिशियल कलर्स हटाने का समर्थन करने लगे हैं। सोशल मीडिया पर बड़ी संख्या में डाई-फ्री डाइट ग्रुप बन गए हैं। कई में 10 हजार सदस्य हैं। कैलिफोर्निया से डेमोक्रेटिक पार्टी के सांसद बॉब वीकोवस्की एक बिल लेकर आए हैं, जिसमें खाने की चीजों पर चेतावनी देने की सिफारिश की है। 2023 से इसके लागू होने की उम्मीद है।
उन्होंने अमेरिकी एन्वार्यनमेंटल हेल्थ हजार्ड असेसमेंट ऑफिस की स्टडी के आधार पर दावा किया है कि फूड कलर्स बच्चों को प्रभावित करते हैं। इसलिए माता-पिता को जानकारी जरूर दी जानी चाहिए। यह स्टडी 1970 से बड़े पैमाने पर जारी थी। विश्लेषण से यह पता चला कि खाने के रंगों व बच्चों के व्यवहार में संबंध हैं। दरअसल अमेरिकी बच्चों व किशोरों में एडीएचडी (अटेंशन डेफिसिट हाइपर एक्टिविटी सिंड्रोम) के मामले 1997 में 6.1% से बढ़कर 2016 में 10.2% हो गए हैं। इसी को समझने के लिए स्टडी की गई।
यूरोप में बच्चों की गतिविधियों व अटेंशन स्पान पर असर डालने वाले रंग युक्त उत्पादों पर स्पष्ट लेबलिंग का नियम है। इसके चलते निर्माता खाने की चीजों में सिंथेटिक रंगों के बजाय प्राकृतिक रंग जैसे ब्लैककरंट और स्पिरुलिना कंसंट्रेट इस्तेमाल करने लगे हैं। अमेरिका में भी खाद्य सुरक्षा समूह ऐसा ही चाहते हैं। इसलिए वो एफडीए से रंगों को बैन करने या खतरों से आगाह करने वाली नीति बनाने पर दबाव डाल रहे हैं।
ये कॉस्मेटिक्स हैं, बच्चों को आकर्षित करने के लिए इस्तेमाल हो रहे: एक्सपर्ट
सिएटल चिल्ड्रन रिसर्च इंस्टिट्यूट में पीडियाट्रिक्स और एन्वार्यनमेंट की प्रोफेसर डॉ. शीला सत्यनारायण बताती हैं, आर्टिफिशियल रंगों वाले फूड आइटम्स में एडिटिव और बड़ी मात्रा में शुगर होती है, जो बच्चों के व्यवहार पर असर डालती है। अमेरिकी सेंटर फॉर साइंस इन द पब्लिक इंट्रेस्ट में वरिष्ठ वैज्ञानिक और कैलिफोर्निया के बिल की सह- प्रस्तावक लिसा लैफर्ट्स के मुताबिक ये विटामिंस या पोषक तत्व नहीं हैं।
सिर्फ कॉस्मेटिक्स हैं, इनका इस्तेमाल बच्चों को आकर्षित करने के लिए होता है। इसलिए वह वर्षों से एफडीए से इन पर रोक लगाने की वकालत कर रही हैं।