पत्रिका की पहल पर मुहर: जंक फूड पर FoPL चेतावनी के पक्ष में उतरे सांसद

विशेषज्ञों ने कहा, वैज्ञानिक रूप से तय न्यूट्रिएंट प्रोफाइल मॉडल पर आधारित हो Front of Pack warning labels (FoPL) चेतावनी

वसा, नमक या चीनी की अधिकता (HFSS) वाली पैकेटबंद चीजों पर “सिगरेट के पैकेट की तर्ज पर चेतावनी दी जानी चाहिए। जैसे सिगरेट के पैकेट पर लिखा होता है- ‘धूम्रपान स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है’ इससे लोगों को स्वस्थ और सुरक्षित विकल्प चुनने में मदद मिलेगी।” -सुशील मोदी, भाजपा सांसद और बिहार के पूर्व उप मुख्यमंत्री

पत्रिका की पहल पर मुहर: जंक फूड पर FoPL चेतावनी के पक्ष में उतरे सांसद

सांसद दीपक प्रकाश, महेश पोद्दार, सुशील मोदी, लेफ्टिनेंट जनरल (सेवानिवृत्त) डॉ. डीपी वत्स, राम कुमार वर्मा, संजय सेठ (सामने की ओर बाएं से दाएं), सत्यप्रताप शुक्ला (पीछे की पंक्ति में बाएं से तीसरे) और एम्स, नई दिल्ली के प्रोफेसर नवल किशोर विक्रम (पीछे की ओर बाएं से दूसरे) नई दिल्ली के कंस्टीट्यूशन क्लब में IGPP की ओर से आयोजित चर्चा में भाग लेते हुए।

”ज्यादा मात्रा वाले नमक, चीनी और वसा वाली डिब्बाबंद खाने-पीने की चीजों पर सरलता से सच्चाई बताने वाली चेतावनी लेबल से लोगों को स्वस्थ विकल्प चुनने और इन अस्वास्थ्यकर खाद्य पदार्थों की खपत को कम करने में मदद मिलेगी। इनसे कई गैर संक्रमक रोग होते हैं।” -प्रो डॉ नवल के. विक्रम, नई दिल्ली एम्स में मेडिसिन के प्रोफेसर

सेहत के लिए नुकसानदेह पैकेटंबद खाने-पीने की चीजों के पैकेट पर ऊपर की ओर स्पष्ट व अनिवार्य चेतावनी छापने की व्यवस्था का अब सांसदों और विशेषज्ञों ने भी समर्थन किया है। इनका कहना है कि इस व्यवस्था से लोगों को स्वस्थ और सुरक्षित चीजें खरीदने में मदद मिलेगी। देश में डायबिटीज़ समेत सभी गैर संक्रामक रोगों का खतरा बहुत तेजी से बढ़ रहा है जो स्वास्थ्य तंत्र पर गंभीर बोझ डाल रहा है।

बिहार के पूर्व उप मुख्यमंत्री और राज्य सभा सांसद सुशील मोदी ने कहा कि वसा, नमक या चीनी की अधिकता (HFSS) वाली पैकेटबंद चीजों पर “सिगरेट के पैकेट की तर्ज पर चेतावनी दी जानी चाहिए। जैसे सिगरेट के पैकेट पर लिखा होता है- ‘धूम्रपान स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है’ इससे लोगों को स्वस्थ और सुरक्षित विकल्प चुनने में मदद मिलेगी।”

इसी तरह आर्म्ड फोर्सेज मेडिकल कॉलेज के निदेशक रहे राज्य सभा सांसद लेफ्टिनेंट जनरल (सेवानिवृत्त) डॉ डीपी वत्स ने कहा कि ऐसे पैकेटबंद खाने-पीने की चीजों ने देश के स्वास्थ्य ही नहीं अर्थव्यवस्था के लिए भी बड़ी चुनौती खड़ी कर दी है।

एक और वरिष्ठ राज्यसभा सांसद दीपक प्रकाश ने विशेषकर ग्रामीण भारत में एफओपीएल के लिए एक गहन जागरूकता अभियान शुरू करने का आह्वान किया। गांवों में भी डिब्बाबंद खाद्य पदार्थ तेजी से लोकप्रिय हो रहे हैं जो खतरे की घंटी है। इस चर्चा में उपरोक्त सदस्यों के अलावा राज्यसभा सांसद शिव प्रताप शुक्ला, महेश पोद्दार, राम कुमार वर्मा, दीपक प्रकाश और लोकसभा सदस्य संजय सेठ शामिल थे। सांसदों ने यह बात इंस्टिट्यूट फॉर गवर्नेंस, पॉलिसीज एंड पॉलिटिक्स की ओर से आयोजित एक बैठक में कही। सांसदों की ये बैठक ऐसे समय में हो रही है जब भारत डिब्बाबंद खाद्य और पेय पदार्थों पर सामने की ओर चेतावनी व्यवस्था ‘एफओपीएल’ अपनाने पर विचार कर रहा है।

अभी नियमों के अभाव में वसा, नमक और चीनी की अधिकता वाले डिब्बांद पदार्थ जम कर बेचे जा रहे हैं जिससे एनसीडी के मामले खूब बढ़ रहे हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन का भी कहा है कि ऐसे सभी डिब्बाबंद उत्पादों पर वास्तविक खतरे को समझाने वाली, सरल और आसानी से दिखाई देने वाली चेतावनी हो जो विशेषज्ञों की ओर से तैयार न्यूट्रिएंट प्रोफाइल मॉडल द्वारा निर्देशित हो।

अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स), नई दिल्ली के मेडिसिन विभाग में प्रोफेसर और दिग्गज मधुमेह रोग विशेषज्ञ प्रो डॉ नवल के. विक्रम ने रेखांकित किया कि चिली जैसे विकासशील देशों ने पैकेट के ऊपर की ओर चेतावनी (एफओपीएल) को अनिवार्य बनाकर चीनी युक्त पेय पदार्थों की खपत और बिक्री को काफी कम किया है। इससे उसके सार्वजनिक स्वास्थ्य पर सकारात्मक प्रभाव डालना शुरू कर दिया है। उन्होंने बताया कि चिली ने सबसे बेहतर माने जाने वाली उस चेतावनी व्यवस्था को अनिवार्य बनाया जिसमें पैकेट पर एक काले रंग का अष्टभुजाकार घेरा बना कर उसमें साफ लिखा जाता है कि इसमें चीनी, नमक या वसा ज्यादा है।

आईजीपीपी के सीनियर फेलो डॉ मनीष तिवारी ने कहा कि भारत में लगभग 1.5 करोड़ बच्चे बचपन के मोटापे से पीड़ित हैं। यदि एफओपीएल को अनिवार्य बनाने जैसे उचित कदम नहीं उठाए गए तो भारत जल्द ही बचपन के मोटापे के मामले में दुनिया की राजधानी बन जाएगा।

विशेषज्ञ कहते हैं कि जहां कई देश ऐसी व्यवस्था तेजी से लागू कर रहे हैं, भारत का शीर्ष खाद्य नियामक भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआई) 2013 से इस मुद्दे पर विचार-विमर्श ही कर रहा है।

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