75 रुपए में तैयार वैक्सीन पर 30 गुना तक मुनाफा कमा रहीं वैक्सीन कंपनियां, गरीब देशों को गिड़गिड़ाने पर भी नहीं दे रहीं

6 दिसंबर 2021 को यूएस सीनेटर बर्नी सैंडर्स ने एक ट्वीट में लिखा, ‘ये घृणित है। पिछले हफ्ते ओमिक्रॉन वैरिएंट के फैलने की खबर आते ही फाइजर और मॉडर्ना के 8 इन्वेस्टर्स ने 75 हजार करोड़ रुपए कमा लिए। ये वक्त है कि ऐसी फार्मा कंपनियां अपने लालच पर कंट्रोल करें और दुनिया के साथ वैक्सीन शेयर करें। अब बहुत हो गया!’

कोरोना से जान बचाने वाली वैक्सीन कंपनियों के लिए बर्नी सैंडर्स ने आखिर इतनी कड़वी बात क्यों कही? इसकी दो बड़ी वजहें हैं…

1. नए वैरिएंट और बूस्टर डोज को वैक्सीन कंपनियां कमाई का जरिया बना रही हैं।

2. कोरोना का डर दिखाकर दुनिया भर में वैक्सीन कंपनियों की मनमानी चल रही है।

माना जा रहा है कि सरकारें, डॉक्टर और साइंटिस्ट भले ही कोरोना महामारी को खत्म करने की कोशिश कर रहे हों, लेकिन बड़ी फार्मा कंपनियां ऐसा नहीं चाहती। भास्कर इंडेप्थ में आज वैक्सीन कंपनियों के इन्हीं मंसूबों को समझते हैं…

अमीर देशों से करार, गरीब देशों को इनकार

पीपुल्स वैक्सीनेशन अलायंस (PVA) के एक एनालिसिस के मुताबिक, वैक्सीन की तीन बड़ी कंपनियों फाइजर, मॉडर्ना और बायोएनटेक ने 2021 में हर सेकेंड 1 हजार डॉलर का मुनाफा कमाया। हैरानी की बात ये है कि इन कंपनियों ने अपने वर्चस्व का इस्तेमाल करके अमीर देशों की सरकारों से मुनाफे वाले कॉन्ट्रैक्ट किए। वहीं गरीब देशों की वैक्सीन की मांग को ठंडे बस्ते में डाल दिया। PVA के मुताबिक फाइजर और बायोएनटेक ने अपनी कुल वैक्सीन सप्लाई का महज 1% गरीब देशों को भेजा, वहीं मॉडर्ना ने सिर्फ 0.2% सप्लाई भेजी।

कैसे होगा कोरोना वायरस का खात्मा?

इस वक्त गरीब देशों की 98% आबादी पूरी तरह वैक्सीनेटेड नहीं है। ‘आवर वर्ल्ड इन डेटा’ के मुताबिक दक्षिण अमेरिका में 55% लोग कोविड वैक्सीन की पूरी खुराक ले चुके हैं। उत्तरी अमेरिका, यूरोप और ओशेनिया में भी आधे से ज्यादा लोगों को पूरी खुराक लग चुकी है।

एशिया में अभी 45% लोग ही कोविड वैक्सीन की पूरी खुराक ले पाए हैं, जबकि अफ्रीका में यह आंकड़ा महज 6% है। इजराइल जैसे देश चौथी डोज की तैयारी कर रहे हैं, वहीं गरीब देशों की 94% आबादी को पहला डोज ही नसीब नहीं हुआ। WHO का मानना है कि वैक्सीन में ऐसी असमानता बनी रही तो कोरोना महामारी जल्द खत्म नहीं होगी।

PVA के एनालिसिस के मुताबिक, वैक्सीन कंपनियों को अरबों डॉलर की सरकारी फंडिंग मिली है। इसके बावजूद उन्होंने दवा बनाने की तकनीक और अन्य जानकारियां गरीब देशों की कंपनियों से साझा करने से इनकार कर दिया। ऐसा करके लाखों जानें बचाई जा सकती थीं। वैक्सीन कंपनियां किसी भी कीमत पर पेटेंट अपने पास रखना चाहती हैं।

भारत इंटलेक्चुअल प्रॉपर्टी की लिस्ट से वैक्सीन को बाहर कराना चाहता था

ये बात 24 फरवरी 2021 की है। आपको ये महीना याद है? कोरोना दिन दूनी और रात चौगुनी रफ्तार से फैल रहा था। दुनिया वैक्सीन के लिए त्राहिमाम-त्राहिमाम कर रही थी। भारत और साउथ अफ्रीका के नेतृत्व में 100 से ज्यादा देश विश्व व्यापार संगठन, यानी WTO के पास एक प्रस्ताव लेकर गए। प्रस्ताव में मेडिकल की दुनिया के इंटलेक्चुअल प्रॉपर्टी वाले नियमों में थोड़ी ढील की मांग की गई, जिससे वैक्सीन प्रोडक्शन बढ़ाया जा सके।

भारत का प्रस्ताव पास न हो जाए इसलिए नेताओं की लॉबिंग में खर्च हुए अरबों रुपए

डाउन टु अर्थ में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक, इस प्रस्ताव को रोकने के लिए अमेरिकी फार्मा कंपनियों के संगठन ‘द फार्मास्यूटिकल रिसर्च एंड मैन्युफैक्चरिंग ऑफ अमेरिका’ ने महज कुछ दिनों में 50 मिलियन डॉलर, यानी करीब 3 हजार 700 करोड़ रुपए से अधिक नेताओं पर और लॉबिंग में खर्च कर दिए। यही नहीं दवा कंपनियों की मजबूत लॉबिंग की वजह से भारत का यह प्रस्ताव मंजूर नहीं हो पाया।

वैक्सीन की लागत से 30 गुना तक वसूलती हैं, कोई रोकने वाला नहीं

एक ब्रिटिश अखबार द गार्जियन की हालिया रिपोर्ट के मुताबिक, फाइजर को वैक्सीन का एक डोज तैयार करने में 1 डॉलर यानी करीब 75 रुपए खर्च आता है। इसे कंपनी 30 डॉलर में बेचती है। यूके जैसे देश 30 गुना ज्यादा कीमत देकर फाइजर की वैक्सीन खरीद रहे हैं।

मोनोपॉली का फायदा उठाकर फाइजर ने यूके गवर्नमेंट के साथ डील भी की है कि उनके बीच के सौदे सीक्रेट रहेंगे। Oxfam की रिपोर्ट के मुताबिक मॉडर्ना भी अपनी लागत से 15 गुना तक वैक्सीन की कीमत वसूलती है।

अंधाधुंध कमाई और गरीब देशों को वैक्सीन न देने पर कंपनियों के जवाब

फाइजर के अल्बर्ट बोरला का कहना है कि वैक्सीन डोज की कीमत बिल्कुल लॉजिकल है। इसकी कीमत हाई इनकम वाले देशों में भोजन की एक थाली के बराबर, मध्यम आय वाले देशों में भोजन की आधी थाली के बराबर और निम्न आय वाले देशों में वैक्सीन की लागत के बराबर है। जहां तक सभी को वैक्सीन देने की बात है, कंपनियां इसके लिए प्रतिबद्ध हैं।

जॉनसन एंड जॉनसन का दावा है कि उसने 100 करोड़ डोज गरीब देशों के लिए रखा है। फाइजर का कहना है कि वो 41% डोज मध्यम और निम्न आय वाले देशों को देगा। हालांकि गरीब और मध्यम आय वर्ग वाले देशों को वैक्सीन मिलने में देरी क्यों हो रही है, इसका ठीक-ठीक जवाब कोई नहीं दे रहा है।

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