इंदौर विकास योजना-2021 का आज आखिरी दिन ….सड़क, बगीचे, खेल मैदान जैसे 12 जरूरी काम 12 साल में 12% भी पूरे नहीं हुए

इंदौर विकास योजना-2021 का शुक्रवार को आखिरी दिन है। साल 2008 में आए मास्टर प्लान-2021 में 12 ऐसे जरूरी काम थे, जो समय पर हो जाते तो शहर में रहने, आवागमन, मनोरंजन और पर्यावरण के साथ कई सुविधाएं आम आदमी को मिल जाती। बावजूद इन 12 सालों में ये 12 काम 12 प्रतिशत भी आगे नहीं बढ़े।

10% मेजर सड़कें ही बनी, हरियाली भी 15% ही बढ़ा पाए, लैंड बैंक पर 1% काम भी नहीं हुआ….

1. मेजर रोड : 12 साल पहले जहां थे वहीं हैं, 90% सड़कें बनना बाकी
19 75 के मास्टर प्लान में शहर की प्रमुख रोड को मेजर रोड के नाम से प्लान किया था। यह प्लानिंग ऐसी थी कि शहर का हर कोना जुड़ जाए। एमआर-1 (एबी रोड) से एमआर-12 (जो अभी बनी नहीं) की प्लानिंग की गई थी। अभी भी एमआर-11, एमआर-12 तो कागजों पर है। एमआर-3, 4, 5, 6, 8, 9 अधूरी है।

2. उद्यान : नए रीजनल पार्क के नाम पर सिर्फ सिटी फॉरेस्ट मिला
मास्टर प्लान में हरित क्षेत्र रखने के लिए रीजनल पार्क (क्षेत्रीय उद्यान) का प्रयोजन किया था। इसमें केसरबाग, पीपल्याराव, बिलावली, सिरपुर, माणिकबाग, बांक, लालबाग के पीछे का क्षेत्र शामिल था। नए रीजनल पार्क के नाम पर जिम्मेदार विभाग सिर्फ देवधरम टेकरी, सिटी फॉरेस्ट-बिचौली मर्दाना में ही विकसित कर सके।

3. लैंड बैंक : अब तक बनी ही नहीं, इसमें जीरो प्रतिशत रही ग्रोथ
प्रावधान था कि शहर के विकास से जुड़ी सार्वजनिक संस्थाओं व निजी संस्थाओं में विभिन्न योजनाओं के लिए जमीन रखी जाए। एक महत्वपूर्ण प्रावधान यह भी था कि मास्टर प्लान में जिनकी जमीन ग्रीन एरिया में आ रही है, उन्हें भी आवासीय या अन्य उपयोग क्षेत्र में जमीनें दी जा सके। इस पर आज तक काम नहीं हुआ।

4. इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट फंड : अवैध कॉलोनी में सुविधाएं नहीं
मास्टर प्लान में प्रस्तावित नगर स्तर की अधोसंरचना विकसित करने के लिए एक विकास निधि का गठन किया जाना प्रस्तावित था। हालांकि अभी सभी विभाग अलग-अलग स्तर पर काम करते हैं। यही कारण है कि आज शहर में 400 से ज्यादा अवैध कॉलोनियों में सुविधाएं नहीं हैं।

5. जोनल प्लान : 15 में से सिर्फ दो प्लान बने, उन्हें भी मंजूरी नहीं मिली
शहर के मास्टर प्लान का जमीनी स्तर पर अमल हो, इसके लिए अलग-अलग 15 से ज्यादा जोनल प्लान बनने थे। नगर निगम अब तक मात्र दो जोनल प्लान बना पाया है। इनकी मंजूरी का प्रस्ताव पिछले कुछ सालों से टीएंडसीपी भोपाल में ही अटका हुआ है। किसी ने ध्यान ही नहीं दिया।

6. मेट्रोपोलिटन अथॉरिटी : सिर्फ नाम के लिए ही गठित हुई
बारह साल के मास्टर प्लान में 10 साल बाद राज्य सरकार ने इंदौर-पीथमपुर को मिलाकर मेट्रोपोलिटन अथॉरिटी की घोषणा तो कर दी, लेकिन इस पर आगे कोई काम नहीं हुआ। न ही इसकी आज तक कोई बैठक हुई न इसके स्वरूप पर कोई बात। कमेटी सिर्फ नाम के लिए ही गठित हुई।

7. मंडियों की शिफ्टिंग : 30 साल बाद 20 प्रतिशत काम ही हो सका
शहर में चल रही 10 से ज्यादा मंडियों को शहर से बाहर सुव्यवस्थित रूप से शिफ्ट किया जाना था। यह प्रावधान 1991 के प्लान में भी था। बावजूद इस पर मात्र 20 प्रतिशत काम हो पाया। शिफ्टिंग के नाम पर चाय-किराना व्यवसायियों को बाहर भेजा गया, लेकिन उन्होंने प्लॉट लेकर दूसरे उपयोग शुरू कर दिए, सियागंज आज भी शिफ्ट नहीं हुआ।

8. नए खेल मैदान : प्रस्तावित स्थानों पर नहीं बना कोई स्टेडियम
प्लान में कॉलोनियों में जोनल प्लान के माध्यम से खेल मैदान बढ़ाने का सुझाव था। वहीं पूर्वी रिंग रोड पर पीपल्याहाना के पास खेल मैदान की जमीन आरक्षित की गई थी। यहां सिर्फ इंटरनेशनल स्वीमिंग पूल का स्ट्रक्चर खड़ा हो पाया। इसी तरह आईडीए की स्कीम 172 में स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स रखा गया था, पर काम नहीं हुआ।

9. तीन नए ट्रेंचिंग ग्राउंड : न शिफ्टिंग हुई, न 3 नए स्थान ढूंढ़े
मास्टर प्लान में बढ़ते शहर को देखते हुए शहर के चारों कोनों पर एक-एक ट्रेंचिंग ग्राउंड प्रस्तावित था। आज भी देवगुराड़िया स्थित ग्राउंड का ही उपयोग हो रहा है। बड़े-बड़े कंटेनरों को शहर के एक कोने से दूसरे कोने तक ट्रांसपोर्ट खर्च के साथ वाहन खरीदी का लोड भी निगम पर है, बावजूद तीन दिशाओं में जमीन आरक्षित नहीं की गई।

10. टीडीआर : 12 साल में नियम बने, लेकिन कायदे बनना बाकी
शहर में वर्टिकल डेवलपमेंट को बढ़ावा देने और करोड़ों रुपए की बेशकीमती जमीन शहर के विकास में देने वालों को टीडीआर का लाभ देना प्लान में प्रस्तावित था। अब तक 7 हजार से ज्यादा लोगों की संपत्तियां तोड़ी गई, लेकिन टीडीआर के नियमों को ही सरकार अंतिम रूप नहीं दे पाई।

11. वर्टिकल डेवलपमेंट : लक्ष्य का 15 प्रतिशत काम ही हो सका
बढ़ते शहर का फैलाव रोकने के बजाय वर्टिकल डेवलपमेंट के लिए आज भी शहर में काम नहीं हुआ। मास्टर प्लान में वर्टिकल ग्रोथ का ही प्रस्ताव था। विभागीय नियमों के कारण ही आज भी 200 फीट चौड़ी सड़कों पर भी एफएआर 1.5 तक ही सीमित है। सुपर कॉरिडोर पर भी ऐसा कुछ नहीं हो सका।

12. कागज पर बढ़ा ग्रीनबेल्ट, मौके पर चारों ओर निर्माण हो गए
प्लान में पीपल्याराव, बिलावली, सिरपुर, बांक, लालबाग के अलावा भी कई स्थान छोड़े गए थे। यह चिंता भी जताई गई थी कि प्लान में जो ग्रीन बेल्ट दर्शाए हैं, वहां अवैध कॉलोनियां बन चुकी हैं। तालाबों के कैचमेंट एरिया में भी बहुत अतिक्रमण हो चुके हैं। ये न हटे न रोक लगी।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *