ई कॉमर्स कम्पनियों का कारोबार पूरी तरह अवैध है …

अपनी माटी अपने देश की पुकार पर अमेरिका छोड़ कैसे लिखी श्रीधर ने सफलता की कहानी….

ई कॉमर्स कम्पनियों का कारोबार पूरी तरह अवैध है : डॉ अश्विनी महाजन

ग्वालियर वेबडेस्क। ई कॉमर्स कम्पनियां देश में कानूनी प्रावधानों का उल्लंघन कर लाखों करोड़ का कारोबार कर  रही हे ,  देश के छोटे और स्थानीय बाजार इन कम्पनियों की मनमानी से सीधे प्रभावित हो रहे हैं अमेजन,फिल्पकार्ट,वालमार्ट जैसी वैशविक कम्पनियां भारत सहित दुनियां भर के छोटे कारोबारियों के लिए गंभीर खतरा हैं  अमरीका जैसे ताकतवर देश की सरकारें भी इनके विरुद्ध कारवाई नही कर पा रहीं हैं स्वदेशी जागरण मंच भारत में इन एकाधिकारवादी कम्पनियों के विरुद्ध अपनी भूमिका को प्रामाणिकता के साथ प्रामाणिकता के साथ निभा रहा है यह बात मंच के राष्ट्रीय सहसंयोजक औऱ ख्यात अर्थशास्त्री डॉ अश्वनी महाजन ने स्वदेश के साथ विशेष बातचीत में कही।

कारोबार नही कर सकतीं है कम्पनियां-

डॉ महाजन के अनुसार कानूनी रूप से ई कॉमर्स कम्पनियां केवल डिजिटल प्लेटफॉर्म संचालित कर सकतीं हैं क्योंकि इस क्षेत्र में एफडीआई की अनुमति नहीं है ऐसे में ई कॉमर्स कम्पनियों को खुले कारोबार की अनुमति नही दी जा सकती है विधिक प्रावधानों के हिसाब से ये कम्पनियां केवल उत्पादों सेवाओं को ऑनलाइन प्रदर्शित कर सकतीं है लेकिन सच्चाई यह है कि एमेजन,फ्लिपकार्ट खुद के ब्रांड चला रहे हैं उत्पादों पर भारी डिस्काउंट भी देते हैं।ये कम्पनियां खुद के भंडार गृह भी नही रख सकतीं है लेकिन भारत समेत दुनियां भर में ई कॉमर्स के नाम से यह सब किया जा रहा है।

9484 करोड़ की रिश्वत दी कम्पनियों ने- 

डॉ महाजन के अनुसार भारत में पिछले तीन बर्षों के दौरान इन ई कॉमर्स कम्पनियों ने 9484 करोड़ रुपयों की परोक्ष घूस अधिकारियों के स्तर पर दी है यह लीगल एवं प्रोफेशनल फीस के नाम पर इन कम्पनियों के दस्तावेजों में है।डॉ महाजन सवाल उठाते है कि इतनी बड़ी राशि आखिर किस विधिक सलाह के लिए दी गई है?

प्रवर्तन निकायों की समझ भी कटघरे में-

डॉ महाजन के अनुसार ई कॉमर्स कम्पनियां अपने विधिक प्रावधानों से परे जाकर लाखों करोड़ का कारोबार कर रही है . इसकी बुनियादी समझ और मान्यता के लिए रिजर्व बैंक,राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा आयोग,प्रवर्तन निदेशालय जैसे निकाय अभी भी तैयार नही है।2015 में स्वदेशी जागरण मंच ने पहली बार इस कारोबार के गैर कानूनी होने का सवाल उठाया था।2018 में फिल्पकार्ट औऱ अमेजन की डील को मंच ने साक्ष्यों के साथ अवैध बताते हुए सरकारी नियामक संस्थाओं के समक्ष प्रस्तुत किया।मंच की शिकायत के बाद इस मामले की जांच के लिए
के लिए आरबीआई,प्रतिस्पर्धा आयोग,ईडी औऱ आयकर को कहा गया है।

29 सेक्टर में ई कॉमर्स का दखल –

एमेजन,फिल्पकार्ट समेत अन्य कम्पनियां देश के 29 विभिन्न क्षेत्रों में हमारे लिए गंभीर चुनौती के रूप में खड़ी हैं।ऊबर टैक्सी सेवा का जिक्र करते हुए डॉ महाजन बताते है कि दिल्ली में पहले फ्री राइड के नाम पर ड्राइवरों के लिए 50 हजार से लेकर लाख रुपए तक कमाने का अवसर दिया गया लेकिन अब एकाधिकारवादी हालात निर्मित होने के बाद स्थिति पूरी तरह बदल गई है।ऐसे ही हालात अन्य सेवा क्षेत्रों में भी अवश्यंभावी है।

पस्त पड़ा अमेरिका ..

– ई कॉमर्स के आर्थिक साम्राज्यवाद के सामने अमेरिका जैसे शक्तिशाली देश की सरकारों ने भी समर्पण कर दिया है।मिसिसिपी राज्य के कोलंबस शहर का उदाहरण रखते हुए डॉ महाजन ने बताया कि इस शहर में कभी छह बड़े मॉल हुआ करते थे लेकिन ई कॉमर्स के दुष्प्रभावों का नतीजा है कि कोलंबस में अब केवल एक शॉपिंग मॉल ही अपना वजूद बमुश्किल बचा सका है।बेशक यह परिस्थिति अभी भारत में नही है लेकिन हम भविष्य की तस्वीर स्पष्ट देख रहे है और हर कीमत पर ई कॉमर्स के आर्थिक तंत्र को यहा स्थापित नही होने देंगे।

भारत में समय रहते सुधार की शुरुआत-

डॉ महाजन के अनुसार भारत में ई कॉमर्स कम्पनियों के आर्थिक साम्राज्यवाद के विरुद्ध स्वदेशी जागरण मंच समेत समाज के बड़े वर्ग ने उन चिंताओं से सरकार को अवगत कराया है नतीजतन राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा आयोग ने इन कम्पनियों पर शिंकजा कसना शुरू कर दिया है हाल ही में वालमार्ट पर दस हजार पांच सौ करोड़ का नोटिस जारी कर कारवाई संस्थित की गई है।
हमारे वाणिज्य मंत्री ने सार्वजनिक रूप से कहा है कि हमें इन कम्पनियों के 10 विलियन डॉलर निवेश की की आवश्यकता नही है अगर ये भारतीय कानूनों के अनुरूप नही चलती है। प्रधानमंत्री भी इस आशय की मंशा व्यक्त कर चुके हैं।लिहाजा इन कम्पनियों की माफियागिरी अमेरिका और अन्य देशों की तरह भारत में फलीभूत होनें की संभावना कम हुई है।

म ई कॉमर्स कम्पनियों के विरोधी नही –
डॉ महाजन ने साफ तौर पर दोहराया कि बुनियादी रूप से हम इन कम्पनियों के विरोधी नही है क्योंकि यह पहले से ही भारत में काम कर रही हैं लेकिन हम इतना चाहते है कि कम्पनियां अपने लिए निर्धारित कार्यक्षेत्र मे में ही काम करें।

 

 

 

 

 

 

 



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