राजस्थान: महिला की जान बचाने के लिए अशरफ खान ने तोड़ा रोजा, किया रक्तदान
सुजानगढ़: धर्म की आड़ लेकर मानवता को कलंकित करने वालों को लाडनू के अशरफ ने करारा सबक सिखाया है. सुजानगढ़ में प्रसव के दौरान जीवन की जंग लड़ रही एक प्रसूता सावित्री देवी को खून देने में जब रोजा आड़े आया तो अशरफ ने खुशी खुशी रोजा तोड़ा और महिला की जान बचा ली. अशरफ खान, नागौर जिले के लाडनू के बड़ा बास निवासी जमाल खान के पुत्र हैं और पेशे से पत्रकार हैं.
रमजान के इस पाक महीने में अशरफ ने इंसानियत और भाईचारे की वाकई एक अनूठी मिसाल पेश की है. उन्होंने ये साबित करके दिखा दिया कि इंसानियत से बढ़कर कोई धर्म नहीं होता है. अशरफ ने बताया कि हर रोज की तरह शनिवार सुबह, उन्होंने व्हाट्सएप्प चेक किया. व्हाट्सएप्प पर एक ग्रुप में मोहम्मद आवेश की एक पोस्ट में लिखा था कि सुजानगढ़ के रहने वाले सांवरमल जाट के भाई की पत्नी सावित्री देवी, जिनका ब्लड ग्रुप बी नेगेटिव है, को प्रसव के दौरान रक्त की जरूरत है और इस ग्रुप का खून आस पास के ब्लड बैंक में भी नहीं मिल रहा है.
मोहम्मद अशरफ का ब्लड ग्रुप बी नेगेटिव ही है. वह आम तौर पर रक्तदान करते रहते हैं. सोशल मीडिया पर मैसेज पढ़कर उन्होंने दिए गए नम्बर पर सम्पर्क किया और ब्लड देने की इच्छा जताई. इसके बाद वह लाडनू से सुजानगढ़ पहुंचे जहां अस्पताल के डॉक्टरों ने बताया कि खून देने से पहले, उन्हें कुछ खाना पड़ेगा, तभी उनका खून लिया जा सकेगा यानी उन्हें रोजा तोड़कर, नाश्ता करना होगा. पत्रकार मोहम्मद अशरफ ने इस मौके पर एक पल भी ना सोचा और इंसानियत की खातिर रोजे को तोड़ते हुए नाश्ता किया और खून देकर सावित्री देवी की जान बचा ली.
मोहम्मद अशरफ खान का मानव सेवा का यह भाव उन लोगों के लिए बड़ा सबक है जो धर्म के नाम पर मानवता को पीछे धकेल देना चाहते हैं. लाडनू, सुजानगढ़ क्षेत्र में सभी वर्गों के लोग अशरफ की सराहना कर रहे हैं. लोगों का कहना है कि रक्तदान सबसे बड़ा दान होता है. अशरफ से और लोगों को भी सीख लेनी चाहिए. अशरफ खान ने बताया कि सबसे बड़ा मानव धर्म होता है. यदि मेरे एक रोजा तोड़ने से एक व्यक्ति की जान बच सकती है तो यह मेरा सौभाग्य है. यही मेरे लिए सबसे बड़ा पुण्य होगा. मानव सेवा का यह सौभाग्य हर किसी को प्राप्त नहीं होता.आज पूरे इलाके में इस अनोखे भाईचारे की चर्चा हो रही है जबकि सावित्री देवी की जान बचाने वाले अशरफ खान ने इसे नेकी का काम बताया और इसे किसी एहसान का दर्जा देने से साफ इंकार कर दिया.