भद्र राजनीति के शिखर पुरुष मनमोहन जी

भद्र राजनीति के शिखर पुरुष मनमोहन जी

भारतीय राजनीति में आजकल अदावत का युग चल रहा है ,ऐसे में देश के पूर्व प्रधानमंत्री डॉ मन मोहन सिंह का सक्रिय राजनीति से विदा होना एक भावुक क्षण है। देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू के बाद डॉ मन मोहन सिंह उन प्रधानमंत्रियों में से दूसरे हैं जो लगातार एक दशक प्रधानमंत्री रहे ,वो भी बिना किसी बकलोल के,बिना किसी जुमलेबाजी के। ऐसे पूर्व प्रधानमंत्री को नमन।
डॉ मन मोहन सिंह जन्मजात राजनीतिज्ञ नहीं हैं। वे मूलत: अर्थशास्त्री हैं और उनकी यही विशेषता राजनीति में कांग्रेस के और देश के काम आयी। डॉ मन मोहन सिंह जनता के सामने लच्छेदार भाषण नहीं दे सकते थे,इसलिए वे कभी लोकसभा का चुनाव नहीं जीते । उन्हें कांग्रेस ने हमेशा राजयसभा भेजकर राजनीति में टिकाये रखा। आप यूं भी कह सकते हैं कि कांग्रेस डॉ मन मोहन सिंह की वजह से सत्ता में बनी रही। लगातार तीन दशक तक देश की सेवा करने वाले डॉ मन मोहन सिंह 2अप्रेल 2024 को राजयसभा के साथ ही देश की सक्रिय राजनीति से भी विदाई डाल गए । डॉ सिंह की उम्र अब 92 साल है।
मैंने अपने पत्रकारिता के लम्बे कार्यकाल में डॉ मन मोहन सिंह जैसा दूसरा कोईनेता नहीं देखा । मै उनसे एक वित्त मंत्री के रूप में भी मिला और एक प्र्धानमंत्री के रूप में भी । दोनों भूमिकाओं में वे केवल और केवल डॉ मन मोहन सिंह ही रहे। उनके चेहरे पर सदैव एक स्निग्ध मुस्कान मौजूद रही । उनके संवाद में स्वर सधे हुए रह। न कोई उतार न कोई चढ़ा । न कोई नाटकीयता और न कोई बुनावट। वे स्थितप्रज्ञ राजनीतिज्ञ है। उन्होंने अपने ऊपर कटु से कटु प्रहार सहे किन्तु कभी विचलित नहीं हुये । उनका विचलन उनकी आँखों में ही झलकता रह गया । उत्तेजना उनकी राजनीति का अंग कभी नहीं बन पायी। भले ही उन्हें उत्तेजित और अपमानित करने की कोशिश विपक्ष ने की हो या उनके अपने दल के नेताओं ने।
विपक्ष और आज के प्रधानमंत्री माननीय नरेंद्र मोदी जी ने डॉ मन मोहन सिंह के बारे में संसद के बाहर और भीतर क्या कुछ नहीं कहा ? कांग्रेस के नेता राहुल गाँधी ने डॉ मन मोहन सिंह के सामने क्या कुछ उच्छश्रृंखलता नहीं की ? लेकिन डॉ मन मोहन सिंह खामोश रहे। विपक्ष उन्हें डॉ मौन सिंह कहकर अपमानित करता रहा किन्तु उनका काम हमेशा बोलता रहा। मुझे लगता है कि मौन ही डॉ मन मोहन सिंह की असली ताकत है। आज के नेताओं को उनके स्वभाव और आचरण से सीखना चाहिए। लेकिन डॉ मन मोहन सिंह बनकर काम करना ,देशसेवा करना आसान काम नहीं। गाल बजाना और मौन रहना दो अलग-अलग विधाएँ हैं।
डॉ मन मोहन सिंह के बारे में गूगल देव मुझसे ज्यादा सूचनाएँ रखते हैं ,लेकिन मै अपनी जानकारी और अनुभव से कहता हूँ कि डॉ मन मोहन सिंह होना आसान नहीं। डॉ मन मोहन सिंह देश के पहले ऐसे प्रधानमंत्री हैं जिनकी उपाधियों को किसी अदालत में चुनौती नहीं दी गयी। वे चाय बेचते हुए राजनीती में शीर्ष तक नहीं पहुंचे । उन्होंने पंजाब विश्वविद्यालय से स्नातक तथा स्नातकोत्तर स्तर की पढ़ाई पूरी की। वे कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय गये। जहाँ से उन्होंने पीएच. डी. की उपाधि हासिल की । डॉ सिंह ने आक्सफोर्ड विश्वविद्यालय से डी. फिल. भी किया। उनकी पुस्तक इंडियाज़ एक्सपोर्ट ट्रेंड्स एंड प्रोस्पेक्ट्स फॉर सेल्फ सस्टेंड ग्रोथ भारत की अन्तर्मुखी व्यापार नीति की पहली और सटीक आलोचना मानी जाती है।
राजनीति में प्रवेश करने से पहले वे अर्थशास्त्री ही बने रहे। डॉ॰ सिंह ने अर्थशास्त्र के यशस्वी अध्यापक रहे । वे पंजाब विश्वविद्यालय और बाद में प्रतिष्ठित दिल्ली स्कूल ऑफ इकनामिक्स में प्राध्यापक रहे। इसी बीच वे संयुक्त राष्ट्र व्यापार और विकास सम्मेलन सचिवालय में सलाहकार भी रहे और 1987 तथा 1990 में जेनेवा में साउथ कमीशन में सचिव भी रहे। 1971 में तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गाँधी ने डॉ॰ सिंह की प्रतिभा को पहचाना और उन्हें वाणिज्य एवं उद्योग मन्त्रालय में आर्थिक सलाहकार के तौर पर नियुक्त किया । इसके तुरन्त बाद 1972 में उन्हें वित्त मंत्रालय में मुख्य आर्थिक सलाहकार बनाया गया।
डॉ मन मोहन सिंह अपनी प्रतिभा के बल पर ही भारतीय रिजर्ब बैंक के 15 वे गवर्नर बनाये गए। इंदिरा गाँधी ने ही उन्होंने योजना आयोग के उपाध्यक्ष, रिजर्व बैंक के गवर्नर, प्रधानमन्त्री के आर्थिक सलाहकार और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के अध्यक्ष के रूप में देश की अविस्मरणीय सेवा की । भारत के आर्थिक इतिहास में हाल के वर्षों में सबसे महत्वपूर्ण मोड़ तब आया जब डॉ॰ सिंह 1991 से 1996 तक भारत के वित्त मन्त्री रहे। उन्हें भारत के आर्थिक सुधारों का प्रणेता माना गया है। आम जनमानस में ये साल निश्चित रूप से डॉ॰ सिंह के व्यक्तित्व के इर्द-गिर्द घूमता रहा है।
कोई 20 साल पहले जब डॉ मन मोहन सिंह को देश का तेरहवां प्रधानमंत्री बनाया गया ,तब उनकी उम्र 72 साल की थी ।उनके पास राजनीती की की विरासत नहीं थी। वे न नेहरू थे और न गाँधी। मनमोहन सिंह ने 22 मई 2004 से प्रधानमंत्री पद सम्हाला और अप्रैल 2009 में सफलता के साथ पूर्ण हुआ। लोकसभा के चुनाव में भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस की अगुवाई वाला संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन पुन: विजयी हुआ और सिंह दोबारा प्रधानमंत्री पद पर आसीन हुए। प्रधानमंत्री सिंह ने वित्तमंत्री के रूप में पी. चिदम्बरम को अर्थव्यवस्था का दायित्व सौंपा था, जिसे उन्होंने कुशलता के साथ निभाया। लेकिन 2009 की विश्वव्यापी आर्थिक मंदी का प्रभाव भारत में भी देखने को मिला। परन्तु भारत की बैंकिंग व्यवस्था का आधार मज़बूत होने के कारण उसे उतना नुक़सान नहीं उठाना पड़ा, जितना अमेरिका और अन्य देशों को उठाना पड़ा है। भारतीय रिजर्व बैंक की 90 वीं सालगिरह के मौके पर आज के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी को भी इस बात की सराहना करना पड़ी।
डॉ मन मोहन सिंह केवल प्रधानमंत्री के रूप में ही नहीं बल्कि प्रतिपक्ष के नेता के रूप में भी हमेशा याद किये जायेंगे । वे 1998 और 2004 में लोकसभा में प्रतिपक्ष के नेता रहे ,जो शालीनता का सबसे महत्वपूर्ण काल था। डॉ मन मोहन सिंह को देश -विदेश के अनेक सम्मान और पुरस्कार मिल चुके हैं। भारत ने भी उन्हें पदम् विभूषण सम्मान दिया ,हालाँकि वे वे भारतरत्न है। बहरहाल देश डॉ मन मोहन सिंह को जब भी याद करेगा तब एक शालीन चेहरा उसके सामने होगा । डॉ मन मोहन सिंह सदा स्वस्थ्य और शतायु हों। देश की शुभकामनाएं उनके साथ हैं

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