वही भाजपा, वही यूपी-गुजरात और दोहराया गया वही 20 साल पुराना इतिहास!
देश का प्रधानमंत्री उत्तर प्रदेश से और देश का गृह मंत्री गुजरात से. जो बीजेपी की वाजपेयी-आडवाणी की जोड़ी ने किया था, वही अब मोदी-शाह की जोड़ी ने दोहराया है.
कहते हैं कि इतिहास अपने आप को जरूर दोहराता है. समय का पहिया जरूर घूमता है. 2 सांसदों वाली भारतीय जनता पार्टी आज 300 से ज्यादा सांसदों के साथ सत्ता के शिखर पर है. इसी की ताकत है कि एक बार फिर सत्ता के शीर्ष पर कुछ ऐसा देखने को मिला है जो दो दशक पहले भी देखने को मिला था. देश का प्रधानमंत्री उत्तर प्रदेश से और देश का गृह मंत्री गुजरात से. जो बीजेपी की वाजपेयी-आडवाणी की जोड़ी ने किया था, वही अब मोदी-शाह की जोड़ी ने दोहराया है.
…जब वाजपेयी और आडवाणी बने थे PM-HM
अटल बिहारी वाजपेयी की अगुवाई में जब भारतीय जनता पार्टी सत्ता में आई तो उनकी और लालकृष्ण आडवाणी की जोड़ी के चर्चे थे. दोनों ने भाजपा को फर्श से अर्श पर ले जाने का काम किया. 1998 में जब उत्तर प्रदेश के लखनऊ से चुनकर आए अटल बिहारी वाजपेयी देश के प्रधानमंत्री बने तो उस सरकार में दूसरे नंबर पर लालकृष्ण आडवाणी ही रहे. आडवाणी गुजरात के गांधीनगर से सांसद चुने गए, पहले वह गृहमंत्री बने और बाद में उप प्रधानमंत्री.
मोदी-शाह ने फिर दोहराया इतिहास
अब करीब दो दशक के बाद एक बार फिर इतिहास ने करवट ली है. भारतीय जनता पार्टी लगातार दूसरी बार पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में है, नरेंद्र मोदी फिर एक बार प्रधानमंत्री हैं. पीएम का संसदीय क्षेत्र उत्तर प्रदेश का वाराणसी है. अपने दूसरे कार्यकाल में नरेंद्र मोदी ने अपने सबसे खास अमित शाह को गृह मंत्री बनाया. जो गुजरात की गांधीनगर सीट से चुनकर आए हैं. ऐसे में केंद्र में एक बार फिर वही PM-HM का फॉर्मूला अपनाया गया है, जो वाजपेयी-आडवाणी के समय में दोहराया गया था.
गौरतलब है कि इस बार भारतीय जनता पार्टी के लौह पुरुष कहे जाने वाले लालकृष्ण आडवाणी को टिकट नहीं मिला था. 1991 से वह गांधीनगर से ही सांसद बन रहे थे, उनकी जगह इस बार अमित शाह ने ली. बतौर पार्टी अध्यक्ष वह वहां से चुनाव लड़े थे और रिकॉर्ड मतों से जीते.
खास बात ये भी है कि इससे पहले नरेंद्र मोदी जब गुजरात के मुख्यमंत्री थे, तो भी उन्होंने अपने जोड़ीदार अमित शाह को राज्य का गृहमंत्री बनाया था.
बतौर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के जिम्मे इस बार कई ऐसे मुद्दे हैं जो देश में हमेशा चर्चा में रहते हैं. फिर चाहे वह जम्मू-कश्मीर से जुड़ा धारा 370, अनुच्छेद 35A का मसला हो या फिर पूर्वोत्तर में लागू किया जा रहा NRC का मुद्दा. मोदी सरकार के पिछले कार्यकाल में भी इन मुद्दों पर काफी विवाद हुआ था.