कच्चा तेल 2014 के बाद सबसे महंगा, फिर भी 83 दिनों से नहीं बढ़े दाम, समझिए 7 मार्च तक क्यों चलेगा ये खेल?
देश में पेट्रोल और डीजल की बढ़ती कीमतों को लेकर अक्सर सवाल उठते हैं। लेकिन आपको ये जानकर हैरानी होगी कि पिछले लगातार 83 दिनों से देश में पेट्रोल और डीजल की कीमतों में बढ़ोतरी नहीं हुई है। पिछले साल दिवाली पर मोदी सरकार ने पेट्रोल और डीजल पर एक्साइज ड्यूटी घटाई थी, जिससे पेट्रोल और डीजल की कीमतों में कमी आई थी, तब से अब तक पेट्रोल-डीजल की कीमत लगभग स्थिर बनी हुई है।
देश में पेट्रोल-डीजल की कीमतों में बढ़ोतरी नहीं होने की वजह उत्तर प्रदेश और पंजाब समेत पांच राज्यों में होने वाले आगामी विधानसभा चुनावों को माना जा रहा है।
चलिए समझते हैं कि आखिर क्यों ढाई महीने से देश में नहीं बढ़ी है पेट्रोल-डीजल की कीमत? कैसे चुनावों के दौरान देश में पेट्रोल-डीजल की कीमतों की बढ़ोतरी पर लग जाता है ब्रेक?
पिछले ढाई महीने से देश में नहीं बढ़ी हैं पेट्रोल-डीजल की कीमतें
पिछले साल दिवाली से एक दिन पहले (3 नवंबर 2021) केंद्र सरकार ने पेट्रोल, डीजल की एक्साइज ड्यूटी में क्रमश: 10 रुपए/लीटर और 5 रुपए/लीटर की कटौती का ऐलान किया था। जिसका असर तुरंत ही पेट्रोल और डीजल की कीमतों में कमी के रूप में सामने आया था।
उस समय तेल की कीमत अपने उच्चतम स्तर पर पहुंच चुकी थी और पेट्रोल 100 रुपये/लीटर को पार कर गया था और डीजल 100 रुपये/लीटर के करीब पहुंच गया था।
देश में 04 नवंबर 2021 के बाद से अब तक (करीब पिछले 83 दिनों से) पेट्रोल-डीजल की कीमतों में बढ़ोतरी नहीं हुई है। यानी करीब ढाई महीने से पेट्रोल और डीजल की कीमत दिवाली की कीमतों के आसपास ही ठहरी हुई हैं।
इंटरनेशनल मार्केट में कीमत रिकॉर्ड ऊंचाई पर, देश में फिर भी बढ़ोतरी नहीं
इस साल जनवरी में इंटरनेशनल मार्केट में कच्चे तेल की कीमत करीब 30% बढ़कर 88 डॉलर/बैरल तक पहुंच गई हैं, जोकि 2014 के बाद से कच्चे तेल की सर्वाधिक कीमत है। एक्सपर्ट का मानना है कि यूएई के तेल ठिकानों पर हौती विद्रोहियों के हमले से उपजे विवाद और रूस-यूक्रेन विवाद के चलते कच्चे तेल की कीमत आने वाले महीनों में 100 डॉलर/बैरल तक जा सकती है।
भारत अपनी जरूरत का करीब 84% पेट्रोलियम प्रोडक्ट आयात करता है, ऐसे में इंटरनेशनल मार्केट में कच्चे तेल की कीमत से ही देश में पेट्रोल-डीजल की कीमत तय होती है। लेकिन कच्चे तेल के महंगे होने के बावजूद देश में पेट्रोल-डीजल की कीमत ढाई महीने से ज्यादा समय से स्थिर बनी हुई हैं।
इसकी वजह पांच राज्यों में फरवरी-मार्च में होने वाले विधानसभा चुनावों को माना जा रहा है। यूपी में आखिरी चरण की वोटिंग 7 मार्च को होनी है, जबकि नतीजे 10 मार्च को आएंगे, ऐसे में चुनाव खत्म होते ही तेल की कीमतों का बढ़ना लगभग तय माना जा रहा है।
बीजेपी ने खेला चुनावों के पहले बड़ा दांव
कई एक्सपर्ट इसे बीजेपी की यूपी, पंजाब समेत पांच राज्यों के आगामी विधानसभा चुनावों को देखते हुए चला गया दांव मान रहे हैं।
एक अनुमान के मुताबिक, इस फैसले से सरकार को फाइनेंशियल ईयर 2021-22 के बाकी बचे महीनों में 45 हजार करोड़ और सालाना आधार पर करीब एक लाख करोड़ रुपए का नुकसान होने का अनुमान है। लेकिन इसके बावजूद मोदी सरकार ने चुनावों को देखते हुए इतना बड़ा रिस्क लिया है।
पिछले कुछ वर्षों में मोदी सरकार विधानसभा चुनावों से ठीक पहले पेट्रोल-डीजल की कीमतों में बढ़ोतरी से बचती रही है। हालांकि चुनाव खत्म होते ही वह कीमतों को बढ़ाने में देर नहीं करती है। नवंबर 2021 से पहले तक कोरोना काल के दौरान केंद्र सरकार ने पेट्रोल और डीजल पर एक्साइज ड्यूटी कई गुना बढ़ा दी थी।
चुनाव आते ही लग जाता है पेट्रोल-डीजल की कीमतों पर ब्रेक
ये पहली बार नहीं है जब चुनाव के पहले पेट्रोल-डीजल की कीमतों में ठहराव आया है। पिछले कुछ सालों के ट्रेंड को देखें तो ये साफ नजर आता है कि कैसे सरकार चुनावों से ठीक पहले पेट्रोल-डीजल की कीमतों पर ब्रेक लगाती है और चुनाव खत्म होते ही कीमत फिर से बढ़ने लगती हैं।
चलिए देखें कि कैसे चुनावों और पेट्रोल-डीजल की कीमतों के बीच है एक गहरा रिश्ता:
जनवरी-अप्रैल 2017: इससे पहले जनवरी 2017 और अप्रैल 2017 के बीच भी करीब तीन महीने तक पेट्रोल और डीजल की कीमतों में ठहराव रहा था। उस दौरान उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, गोवा और मणिपुर समेत 5 राज्यों में विधानसभा चुनाव हुए थे।
दिसंबर 2017: तेल कंपनियों ने दिसंबर 2017 में गुजरात में विधानसभा चुनावों से पहले लगातार 14 दिनों तक तेल की कीमतों में संशोधन नहीं किया था। इन चुनावों से कुछ महीने पहले से ही पेट्रोल-डीजल की कीमतों में कमी आई थी। उस दौरान अक्टूबर-नवंबर के दौरान इंटरनेशनल मार्केट में कच्चे तेल की कीमत10% बढ़ी थीं, लेकिन देश में पेट्रोल की कीमतों में केवल 2% बढ़ोतरी हुई थी। दिसंबर महीने में भी पेट्रोल की कीमतों में केवल 1% बढ़ोतरी हुई थी।
मई 2018: ऐसा ही ट्रेंड कर्नाटक विधानसभा चुनावों के पहले मई 2020 में दिखा था। तब लगातार 20 दिनों तक पेट्रोल-डीजल की कीमतों में कोई बदलाव नहीं हुआ था, जबकि उस दौरान कच्चे तेल की कीमत करीब 5 डॉलर/बैरल तक बढ़ गई थी। 12 मई को वोटिंग खत्म होने के बाद पेट्रोल-डीजल की कीमतों में महज 15 दिनों के अंदर ही करीब 4 रुपए/लीटर तक की बढ़ोतरी कर दी गई थी।
मई 2019: लोकसभा चुनाव 2019 के दौरान हालांकि फ्यूल प्राइसेज में ठहराव तो नहीं आया लेकिन तेल कंपनियों ने कच्चे तेल की कीमतों का भार घरेलू उपभोक्ताओं पर डालने की गति बहुत धीमी रखी। मार्च में इंटरनेशनल कच्चे तेल की कीमतों में 10% बढ़ोतरी हुई लेकिन देश में पेट्रोल की कीमत केवल 1% ही बढ़ी। 19 मई को आखिरी चरण की वोटिंग खत्म होते ही 20 मई से 30 मई के बीच पेट्रोल-डीजल की कीमत में 70-80 पैसे/लीटर तक बढ़ोतरी हो गई।
अक्टूबर-नवंबर 2020: बिहार विधानसभा के चुनावों को देखते हुए अक्टूबर से नवंबर 2020 तक पेट्रोल-डीजल के दामों में चेंज नहीं हुआ था। बिहार में 28 अक्टूबर से 7 नवंबर तक चुनाव थे और 10 नवंबर को परिणाम आया था। इस दौरान 23 सितंबर से 19 नवंबर तक डीजल और 2 अक्टूबर से 19 नवंबर 2020 तक पेट्रोल की कीमत में बदलाव नहीं हुआ, लेकिन 20 नवंबर के बाद इन दोनों की कीमत बढ़ने लगी थी।
मई 2021: पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, असम, केरल, पुडुचेरी में 6 अप्रैल से 29 अप्रैल तक चुनाव हुए थे। इन चुनावों को देखते हुए 23 फरवरी के बाद से पेट्रोल-डीजल की कीमतों पर ब्रेक लग गया था, जो 2 मई को विधानसभा चुनाव के नतीजों के आने तक जारी रहा। 4 मई से फिर से पेट्रोल-डीजल की कीमत बढ़ना शुरू हो गई थी।
पेट्रोल-डीजल पर लगातार बढ़ता गया केंद्र का टैक्स
पेट्रोल-डीजल की कीमतों के बढ़ने में सबसे बड़ा रोल केंद्र और राज्य सरकार के टैक्स का होता है। पेट्रोल-डीजल पर लगने वाले टैक्स से केंद्र और राज्य दोनों को जमकर कमाई होती है। हालांकि पिछले 7 सालों के दौरान इन टैक्स से राज्यों की तुलना में केंद्र की कमाई कई गुना बढ़ी है।
- 2014 में केंद्र सरकार पेट्रोल पर 9.48 रुपये/लीटर एक्साइज ड्यूटी लेती थी, जो नवंबर 2021 में बढ़कर 32.90 रुपये हो गया, फिलहाल ये 27.90 रुपये/लीटर है। वहीं 2014 में डीजल पर केंद्र सरकार 3.56 रुपये/लीटर एक्साइज ड्यूटी लगाती थी, जो नवंबर 2021 में बढ़कर 31.80 रुपये हो गया था और फिलहाल 21.80 रुपये है।
- 2014-15 में पेट्रोल-डीजल की एक्साइज ड्यूटी से केंद्र ने 1.15 लाख करोड़ रुपये कमाए थे, जबकि राज्यों ने फ्यूल पर टैक्स से 1.37 लाख करोड़ कमाए थे। वहीं 2020-21 तक केंद्र की कमाई बढ़कर 3.84 लाख करोड़ और राज्यों की कमाई 2.03 लाख करोड़ रही।
- खासतौर पर कोरोना काल शुरू होने के बाद से केंद्र ने पेट्रोल-डीजल पर एक्साइज ड्यूटी में काफी बढ़ोतरी की। अकेले फरवरी 2020 से मई 2020 तक ही केंद्र ने पेट्रोल और डीजल पर एक्साइज ड्यूटी में क्रमश: 13 रुपए/लीटर और 16 रुपए/लीटर तक की बढ़ोतरी की थी।
- नवंबर 2021 में इन दोनों पर एक्साइज ड्यूटी घटाने से पहले मई 2020 से अक्टूबर 2021 तक पेट्रोल की कीमत में 38.85/लीटर और डीजल की कीमत में 29.35 रुपए/लीटर तक की बढ़ोतरी हुई थी।
- यानी भले ही मोदी सरकार ने पिछले कुछ सालों से राज्यों के चुनावों से ठीक पहले दौरान पेट्रोल-डीजल की कीमतों को बढ़ाने से बचती रही है, लेकिन चुनावों के बाद इनकी कीमतों को बढ़ाने में जरा भी हिचकिचाहट नहीं दिखाई है।