जिस देश के मर्दों को विमेन स्‍टडीज की पढ़ाई से दिक्‍कत है, उस देश में औरतों की लड़ाई कितनी मुश्किल होगी

तीन साल पहले कुवैत केे इतिहास में पहली बार यूनिवर्सिटी में एक विमेन एंड जेंडर स्‍टडीज डिपार्टमेंट खुला और वहां के मर्द बुद्धिजीवियों, वैचारिक मार्गदर्शकों और धार्मिक गुरुओं को उससे भी दिक्‍कत होने लगी. उनके विरोध की आवाज संसद तक पहुंच गई और संसद विभाग से ऐसे जवा-तलब कर रही है, जैसे पुलिस चोर से करती है.

कुवैत यूनिवर्सिटी के कॉलेज ऑफ आर्ट्स में तीन साल पहले विमेन एंड जेंडर स्‍टडीज डिपार्टमेंट खुला था. यह डिपार्टमेंट अलग से पूरा एक विभाग न होकर हिस्‍ट्री डिपार्टमेंट की ही एक नई यूनिट के रूप में खोला गया. वह इस देश का पहला ऐसा डिपार्टमेंट था, जहां औरतों की जिंदगी, उनके इवोल्‍यूशन (विकासवाद) के सिद्धांत और उनकी सामाजिक स्थिति के बारे में पढ़ाया जाना था.

लेकिन देश के बुद्धिजीवियों, वैचारिक मार्गदर्शकों और धार्मिक गुरुओं को उस डिपार्टमेंट और वहां पढ़ाई जा रही चीजों से बहुत दिक्‍कत हो रही थी. उन्‍हें लग रहा था कि पढ़कर, अपने इतिहास की चेतना हासिल करके कुवैती औरतें इस्‍लाम के रास्‍ते से भटक जाएंगी.

उस विभाग को लेकर लोगों के इस विरोध की आवाज कुछ दिन पहले कुवैत की पार्लियामेंट तक भी पहुंच गई. पार्लियामेंट के एक सदस्‍य फयाज अल जम्‍हूर ने संसद में विमेन एंड जेंडर स्‍टडीज डिपार्टमेंट की गतिविधियों पर सवाल उठाया. उन्‍होंने एक नोटिस जारी करते हुए उस विभाग से तमाम तरह के सवाल पूछे. जैसेकि-

  • 1. हम जानना चाहते हैं कि इतिहास का विमेन और जेंडर स्‍टडीज के साथ क्‍या संबंध है. इतिहास विभाग की यूनिट के रूप में जेंडर और विमेन स्‍टडीज विभाग क्‍यों खोला गया?
  • 2. इस विभाग में क्‍या और किस तरह की चीजें पढ़ाई जाती हैं?
  • 3. विभाग द्वारा आयोजित सभी प्रकार के सेमिनार, लेक्‍चर, कोर्स और किताबों आदि की डीटेल जानकारी उपलब्‍ध करवाई जाए.
  • 4. उस विभाग में कौन-कौन से लोग पढ़ाते हैं, उनका अकादमिक रिकॉर्ड, एजूकेशन क्‍या है, उन्‍होंने कौन-कौन से लेक्‍चर और सेमिनार में क्‍या-क्‍या कहा है, इसकी पूरी डीटेल सरकार को उपलब्‍ध करवाई जाए.
Women And Islam

कुवैत में विमेन एंड जेंडर स्‍टडीज डिपार्टमेंट पर मर्दों में तकरार. प्रतीकात्‍मक तस्‍वीर (Photo: Pixabay)

इसके जवाब में कुवैत यूनिवर्सिटी के विमेन एंड जेंडर स्‍टडीज डिपार्टमेंट ने सरकार को डीटेल जवाब दिया है. हालांकि वहां के शिक्षक, प्रोफेसर और विभाग से जुड़े अन्‍य लोग बार-बार यह कहने की कोशिश कर रहे हैं कि महिलाओं के बौद्धिक और सामाजिक विकास को ध्‍यान में रखकर खोले गए इस विभाग की कोई भी गतिविधि इस्‍लाम विरोधी नहीं है. हम औरतों को उनके धर्म के खिलाफ भड़काने की कोशिश नहीं कर रहे हैं. हम सिर्फ उन्‍हें उनके अधिकारों और बौद्धिक विकास की जरूरत को समझने और उसके प्रति जागरूक होने को कह रहे हैं. उन्‍होंने यह भी कहा कि हमारी किसी खास विचारधारा के प्रति कोई प्रतिबद्धता नहीं है. यह विभाग समाज के हर व्‍यक्ति और हर तबके के लिए खुला हुआ है. कोई भी यहां आकर पढ़ सकता है और इस विषय को समझने का प्रयास कर सकता है.

तीन साल पहले यूनिवर्सिटी के इतिहास विभाग ने विमेन स्‍टडीज की नई यूनिट खोलने का फैसला किया तो अपने मुख्‍य वक्‍तत्‍व में उन्‍होंने कहा था कि जेंडर बराबरी और घर की चारदीवारी से बाहर समाज में महिलाओं की बराबरी की हिस्‍सेदारी और भूमिका आज के समय की जरूरत है. आज की तारीख में हमारे समाज में औरतें तमाम तरह की सामाजिक, राजनीतिक और सांस्‍कृतिक संकट झेल रही हैं. यह परेशानियां तब तक दूर नहीं हो सकतीं, जब तक इसे लेकर हमारे समाज में जागरूकता न आए. जब तक कि युवा लड़के और लड़‍कियां जेंडर गैरबराबरी के इतिहास और कारणों को न समझें. जब तक जेंडर बराबरी की जरूरत के प्रति जागरूक न हों.

विभाग शुरू करने वालों का कहना था कि पढ़ाई का यह स्‍ट्रीम दरअसल एक सामाजिक जरूरत है. देश के विकास के लिए यह जरूरी है कि ऐसे विषयों को गंभीरता से लिया जाए और उसका प्रसार किया जाए.

Women And Islam

कुवैत में विमेन एंड जेंडर स्‍टडीज डिपार्टमेंट पर मर्दों में तकरार. प्रतीकात्‍मक तस्‍वीर (Photo: Pixabay)

उस विभाग में असिस्‍टेंट प्रोफेसर और रिसर्चर हैं दलाल अलफेरास. वह शिक्षा, शोध और संस्‍कृति पर वृहत्‍तर रिपोर्टिंग करने वाले मीडिया पोर्टल अल फंसार से कहती हैं कि शिक्षा औेर समाज, हर क्षेत्र में महिलाएं सदियों से हाशिए पर पड़ी हुई हैं. यह‍ स्थिति तब तक नहीं बदल सकती, जब तक कि महिलाएं ज्ञान और शिक्षा हासिल न करें. इस विभाग का मकसद शिक्षा और अकादमिक एक्‍सेलेंस के जरिए हर क्षेत्र में महिलाओं को आगे बढ़ाना, उनकी बराबरी को सुनिश्चित करना है.

यहां कुछ भी ऐसा नहीं है, जो इस्‍लाम के खिलाफ हो. इस्‍लाम खुद भी महिलाओं के समान अधिकारों की वकालत करता है.

दरअसल यहां दिक्‍कत इस्‍लाम की नहीं, उसके संकीर्ण, स्‍वार्थी और मर्दवादी विश्‍लेषण की है. कुछ समय पहले पूरे मिडिल ईस्‍ट में हुए एक सर्वे में यह खुलासा हुआ था कि महिलाओं के मामले में सबसे संकीर्ण कुवैती ही हैं. हालांकि बाकी मुल्‍कों के हालत कोई बहुत सुनहरे नहीं, लेकिन कुवैत में महज 10 फीसदी मर्द ही महिलाओं के राजनी‍ति में ऊंचे जिम्‍मेदार पद संभालने के पक्ष में हैं. 90 फीसदी मर्दों को आज भी यही लगता है कि महिलाओं की सही जगह घर के भीतर है.

आश्‍चर्य नहीं कि उस मुल्‍क में एक महिला अध्‍ययन विभाग खुलने भर से मर्दों को मियादी बुखार ने जकड़ लिया है. हालांकि उस देश में महिलाएं वोट देने और संसद के चुनाव में खड़े होने का अधिकार रखती हैं, लेकिन कुवैत के अब तक के इतिहास में सिर्फ एक महिला ही वहां की संसद तक पहुंच पाई है. 2012 और 2016 में सफा अल हाशेम को यह गौरव हासिल हुआ था, लेकिन 2020 में वह चुनाव हार गईं. आज की तारीख में कुवैत की संसद में एक भी महिला नहीं है.

जिस देश की हर यूनिवर्सिटी, हर कॉलेज, हर स्‍कूल में एक जेंडर स्‍टडी विभाग होना चाहिए था, वहां पहले और इकलौते विभाग के प्रति संसद और राजनीतिकका जो रवैया है, उसे देखकर लगता तो नहीं कि उस देश में अपने हक-हुकूक की औरतों की लड़ाई आसान होने वाली है. राह अभी लंबी है और कांटों से भरी, लेकिन औरतें लड़ाई से पीछे नहीं हट रही. वो संसद में पूछे गए हरेक सवाल का जवाब पूरी ताकत और भरोसे के साथ दे रही हैं. आज उनके पूछे सवाल कल को आने वाली पीढि़यों का जवाब होंगे.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *