उत्तर प्रदेश में क्यों बेअसर हो रहे हैं ध्रुवीकरण के मुद्दे?
माना जा रहा है कि योगी ने शरीयत और गजवा-ए-हिंद जैसे मुद्दे उठा कर असदुद्दीन ओवैसी को जवाब दिया है. ओवैसी ने भी शुक्रवार को हिजाब का मुद्दा उठाते हुए चुनावी रैली में कहा था कि हिजाब पहनना मुस्लिम महिलाओं का हक है और एक दिन इस देश में हिजाब पहनने वाली लड़की प्रधानमंत्री बनेगी.
उत्तर प्रदेश में पहले दो चरण का मतदान ( UP assembly election 2nd phase) हो चुका है. इस दौरान चुनाव में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण करने की पुरजोर कोशिशें हुईं लेकिन ये कोशिशें कामयाब होती नहीं दिख रहीं. दूसरे चरण के मतदान से एक दिन पहले यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने गज़वा-ए-हिंद (Ghazwa e Hind), तालिबानी सोच और शरीयत जैसे मुद्दों को उठाकर सांप्रदायिक ध्रुवीकरण करने की कोशिश की. मतदान के दिन तमाम टीवी चैनलों पर उनका इंटरव्यू चला जिसमें उन्होंने ‘अस्सी बनाम बीस’ की लड़ाई वाले अपने पुराने बयान पर सफाई भी पेश की. इन तमाम कोशिशों के बावजूद मतदान पर इन मुद्दों का कोई असर नहीं दिखा.
दरअसल पहले दो चरणों का मतदान बीजेपी के लिए अपनी सत्ता बचाने के हिसाब से बहुत महत्वपूर्ण था. पहले और दूसरे चरण में कुल 113 विधानसभा सीटों पर मतदान हुआ है. पिछले चुनाव में बीजेपी ने में से 91 सीटें जीती थीं. यानि पूरे प्रदेश में जीती हुई कुल 312 सीटों का लगभग एक तिहाई हिस्सा वो इन दो चरणों में होने वाले चुनाव में उसने जीत लिया था. दो चरणों में जिन 20 जिलों में मतदान हुआ है उनमें से ज्यादातर जिले मुस्लिम बहुल हैं. इन इलाकों में वो ज़िले भी जहां जाट और मुसलमानों का समीकरण बहुत मजबूत है. किसान आंदोलन की वजह से यह समीकरण फिर से जिताऊ हो गया है. बीजेपी सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के ज़रिए इस समीकरण को तोड़ना चाहती थी उसे इसमें कामयाबी मिलती नहीं दिख रही.
क्या कहा योगी आदित्यनाथ ने?
दूसरे चरण के मतदान से एक दिन पहले योगी आदित्यनाथ ने ध्रुवीकरण करने की एक आख़िरी कोशिश करते हुए गजवा-ए-हिंद और शरीयत का मुद्दा उठाया. रविवार की शाम को उन्होंने ट्विटर पर लिखा, “गजवा-ए-हिन्द’ का सपना देखने वाले ‘तालिबानी सोच’ के ‘मजहबी उन्मादी’ यह बात गांठ बांध लें… वो रहें या न रहें…भारत शरीयत के हिसाब से नहीं, संविधान के हिसाब से ही चलेगा. जय श्री राम!” सोमवार को सुबह अपने इंटरव्यू में योगी आदित्यनाथ ने एक बार फिर अस्सी बनाम बीस प्रतिशत की लड़ाई का मुद्दा उठाया. लेकिन इस बार वो सफाई देते दिखे. उन्होंने कहा था कि चुनाव में उनकी सरकार के कामकाज को पसंद करने वाली प्रदेश की अस्सी प्रतिशत जनता उनके साथ है और उन्हें वोट देगी. इनमें सब जाति और धर्मों के लोग शामिल हैं. हर मामले में विरोध करने वाले बीस प्रतिशत लोग हमेशा उनके खिलाफ रहते हैं वो उनके उनके खिलाफ ही वोट करेंगे.
ओवैसी को योगी का जवाब
माना जा रहा है कि योगी ने शरीयत और गजवा-ए-हिंद जैसे मुद्दे उठा कर असदुद्दीन ओवैसी को जवाब दिया है. ओवैसी ने भी शुक्रवार को हिजाब का मुद्दा उठाते हुए चुनावी रैली में कहा था कि हिजाब पहनना मुस्लिम महिलाओं का हक है और एक दिन इस देश में हिजाब पहनने वाली लड़की प्रधानमंत्री बनेगी. बाद में उन्होंने अपने भाषण की ये क्लिप ट्वीटर पर साझा करते हुए लिखा था, ‘इंशाल्लाह.’ अपने भाषण में ओवैसी कहते दिख रहे हैं, “एक बच्ची अगर यह फैसला करती है कि मैं हिजाब पहनूंगी तो अब्बा-अम्मी भी बोलेंगे, बेटा पहन तुझे कौन रोकता है. देखेंगे इंशा अल्लाह. हिजाब पहनेंगे, कॉलेज जाएंगे, डॉक्टर भी बनेंगे, कलेक्टर भी बनेंगे, एसडीएम भी बनेंगे, बिजनेसमैन भी बनेंगे और एक दिन याद रखना… शायद मैं जिंदा नहीं रहूंगा. एक दिन देखना एक बच्ची हिजाब पहनकर प्रधानमंत्री बनेगी.”
ओवैसी और बीजेपी की जुगलबंदी
इस बयान के के ज़रिए ओवैसी मुसलमानों को शरीयत के मुताबिक जीने के संवैधानिक हक़ की बात कह रहे हैं. साथ उन्होंने हिजाबी लड़की के प्रधानमंत्री बनने की भविष्यवाणी करके ये बताने और जताने की कोशिश की है कि एक दिन भारत पर मुसलमानों का शासन होगा. ओवैसी यूपी में एक साल से मुसलमानों को एकजुट होकर अपने वोट की ताकत से उपमुख्यमंत्री और मुख्यमंत्री का पद हासिल करने का सब्ज़बाग दिखा रहे हैं. अब उन्होंने हिजाब पहनने वाली एक लड़की के प्रधानमंत्री बनने का बात की है. कुछ दिन पहले गृहमंत्री अमित शाह ने अपने कोर वोटर्स को अपने साथ जोड़े रखने के लिए सपा की सरकार बनने की स्थिति में लखनऊ के सचिवालय पर आज़म खान के कब्ज़े का डर दिखाया था. अब मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा है कि अखिलेश यादव आज़म खान को जेल से बाहर आने देना चाहते. उन्हें डर है कि कहीं वो उनकी पार्टी पर क़ब्जा न कर लें. ओवैसी का प्रधानमंत्री पद पर हिजाबी लड़की को बैठाना वाला बयान भला योगी कैसे बर्दाश्त कर सकते हैं? ओवैसी और बीजेपी की ये जुगलबंदी चुनाव में ध्रुवीकरण की ही कोशिश है.
योगी ने पहले भी की थी कोशिश
पहले चरण के मतदान से पहले मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कैराना से सपा-आरएलडी गठबंधन के उम्मीदवार नाहिद हसन को लेकर ‘गर्मी निकालने’ और ‘मई-जून में यूपी को शिमला बनाने’ जैसे बयान दिए थे. लेकिन जयंत चौधरी ने इसका जवाब दिया था कि हम जाट तो पैदा ही गरम होते हैं, हमारी गर्मी आप क्या निकालोगे. आप तो ठंड से बचने के लिए कंबल लपेटकर अपने मठ में शरण ले लो. योगी का मकसद मुससलमानों को उकसाने का था. लेकिन मुसलमानों की तरफ फेंका गया तीर जंयत और अखिलेश ने अपने सीने पर ले लिया. अखिलेश ने इसका जवाब दिया कि वो सत्ता में आए तो निकालेंगे और हम सत्ता में आने पर भर्ती निकालेंगे. अब अखिलेश हर रैली में गर्मी निकालने के बदले भर्ती निकालने की बात कर रहे हैं. ये मुद्दा बेरोजगारी से परेशान नौजवानों को खूब लुभ रहा है.
नाकाम रहीं ओवैसी की कोशिशें
चुनाव में ध्रुवीकरण के सहारे मुसलमानों को वोट पाने की ओवैसी की कोशिशें भी नाकाम ही दिख रही हैं. पहले चरण के मतदान से ठीक पहले ओवैसी पहले उत्तर प्रदेश में हिजाब का मुद्दा उठा कर इसे खूब भुनाने की कोशिश की थी. लेकिन उनकी तमाम कोशिशों के बावजूद मुस्लिम बहुल इलाकों में उनकी पार्टी के हक़ में वोट गिरता हुआ नहीं दिखा. अपनी कई सभाओं में असदुद्दीन ओवैसी ने हिजाब की हक़ की लड़ाई का प्रतीक बन चुकी मुस्कान खान से हुई उनकी टेलीफोन पर बातचीत का ख़ूब ज़िक्र किया. उन्होंने मुस्कान को शेरनी तक बताया. अब उन्होंने यहां तक कह दिया कि एक दिन हिजाब पहने वाली लड़की देश की प्रधानमंत्री बनेगी. बीजेपी को भी उम्मीद थी कि उत्तर प्रदेश में हिजाब का मुद्दा गर्माएग तो शायद इससे उसे फायदा होगा. लेकिन ऐसा होता हुआ नहीं दिख रहा. ओवैसी के फुलाए गुब्बारे की हवा निकल गई.
क्या है गजवा-ए-हिंद
गजवा-ए-हिंद पुराना शब्द है. इसमें ‘गजवा’ का मतलब उस जंग से था, जो इस्लाम के विस्तार के लिए लड़ी जाती थी. यानि, ‘गजवा-ए-हिन्द’ के मायने ऐसी जंग से हैं, जिसके जरिए भारतीय उपमहाद्वीप के लोगों को इस्लाम में शामिल किया जा सके. जानकार बताते हैं कि जब इस्लाम को भारत वर्ष में विस्तार देने की कोशिश हुई थी, तब इस शब्द का इस्तेमाल हुआ था. इसे लेकर कुछ हदीसे भी हैं. लेकिन वर्तमान में इसका कोई महत्व नहीं है. हैरानी की बात यह है कि उत्तर प्रदेश में या देश में कभी भी किसी मुस्लिम संगठन की तरफ से गजवा-ए-हिंद की बात नहीं की गई है. ऐसे में सवाल उठता है कि योगी ने का यह बयान कि लोगों को संबोधित है? दूसरे चरण में जिन सीटों पर मतदान होना है वहां के मतदाताओं ने इन बयानों को गंभीरता से नहीं लिया. लिहाज़ा इनका असर चुनाव पर नहीं पड़ा है.
क्या है शरीयत
अगर धर्मनिरपेक्ष देश है. यहां सरकार का कोई धर्म नहीं है लेकिन सरकार नागरिकों के साथ धर्म के आधार पर भेदभाव नहीं करती. देश के सभी नागरिकों को संविधान के मुताबिक अपनी अपनी धार्मिक आस्था और धार्मिक परंपराओं के मुताबिक ज़िंदगी गुजारने की की छूट है. योगी आदित्यनाथ का यह कहना किसी के गले नहीं उतर रहा कि देश शरीयत से नहीं बल्कि संविधान से चलेगा. लोग कह रहे हैं कि देश के संविधान से ही चल रहा है. शरीयत पर तो सिर्फ़ मुसलमान अमल करते हैं. ये अधिकार उन्हें संविधान ने दिया है. जैसे हिंदू अपने धार्मिक आस्था और मान्यताओं के हिसाब से चलते हैं. उसी तरह मुस्लिम समुदाय भी अपनी आस्था और परंपराओं के हिसाब से चलता है. 1937 में ब्रिटिश संसद में शरीयत एप्लीकेशन एक्ट पास हुआ था. उसके तहत मुसलमान शरीयत के हिसाब से अपनी जिंदगी गुजार सकते है. शादी, तलाक़, ख़ुला, विरासत यानि पैतृक संपत्ति का बंटवारा और बच्चा गोद लने जैसे मामलों में मुसलमान शरीयत पर अमल करते हैं.
कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि पहले और दूसरे चरण के मतदान में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की कोशिशें पूरी तरह नाकाम होती दिख रही हैं. तमाम टीवी चैनलों पर मतदाताओं से बात करते हुए रिपोर्टस बता रहे हैं कि लोग वोट बेहतर शिक्षा, बेहतर और सस्ती स्वास्थ्य सेवाओं, बेरोजगारी जैसे मुद्दों पर वोट डाल रहे हैं. रोजगार और सरकारी नौकरियों मे भर्ती एक बड़ा मुद्दा है. लोगों के लिए आम ज़िंगदी को बेहतर बनाने वाले मुद्दे हम हैं तो राजनीति दलों के लिए अपनी-अपनी जीत के लिए जातीय समीकरण अहम हैं. इस बार धार्मिक भावनात्मक मुद्दों का असर बेहद कम नज़र आता है.
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, आर्टिकल में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं.)