सलाखों के पीछे से आखिर कैसे लड़ते हैं चुनाव …
जेल से 17 साल से चल रही मुख्तार की हुकूमत; इस बार भी विधानसभा चुनाव में किस्मत आजमा रहे कई बाहुबली…..
मऊ सदर विधानसभा से बाहुबली विधायक मुख्तार अंसारी साल 2005 से जेल में बंद हैं और विधानसभा के 3 चुनाव वह सलाखों के पीछे से जीत चुके हैं। बाहुबली एमएलसी बृजेश सिंह जेल में बंद रह कर साल 2016 का विधान परिषद का चुनाव जीते। अभी भी वह जेल में हैं और इस बार फिर एमएलसी चुनाव में दमखम दिखाने की तैयारी में हैं। इसी तरह से बाहुबली विधायक विजय मिश्रा, आजम खान, नाहिद हसन जैसे कई और भी नाम हैं जो सलाखों के पीछे कैद हैं लेकिन इस बार का विधानसभा चुनाव जीतने के लिए पूरा जोर लगाए हुए हैं।
हालांकि यह सभी मतदान नहीं कर पाएंगे, लेकिन चुनाव लड़ेंगे या लड़ाएंगे। यदि खुद जीत जाएंगे तो अदालत की अनुमति से विधानसभा की कार्यवाही में भी शामिल होंगे। आइए, समझते हैं कि जेल की सलाखों के पीछे से बंदी आखिरकार माननीय कैसे बनते हैं…।
लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम से मिला है अधिकार
वाराणसी निवासी वरिष्ठ अधिवक्ता और दी सेंट्रल बार एसोसिएशन के पूर्व चेयरमैन विवेक शंकर तिवारी ने बताया कि लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम के तहत जेल में निरुद्ध रहने वाले व्यक्ति को भी चुनाव लड़ने का अधिकार मिला हुआ है। फर्क सिर्फ इतना ही होता है कि सामान्य प्रत्याशियों की तरह चुनाव लड़ने वाले बंदी को मतदान और जनसंपर्क करने की अनुमति नहीं मिलती है। बंदी के चुनाव लड़ने के लिए यह शर्तें हैं :-
- चुनाव लड़ने के इच्छुक बंदी को अदालत ने किसी प्रकरण में दोषी न ठहराया हो।
- बंदी का मुकदमा अदालत में विचाराधीन होना चाहिए।
- बंदी को भारत का नागरिक होना चाहिए।
- बंदी 25 साल की आयु पूरी कर चुका हो।
- बंदी का नाम प्रदेश के किसी भी विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र की मतदाता सूची में जरूर दर्ज होना चाहिए।
बंदी के लिए चुनाव लड़ने की यह है प्रक्रिया
अधिवक्ता विवेक शंकर तिवारी ने बताया कि बंदी जिस विधानसभा से चुनाव लड़ना चाहेगा, उसी निर्वाचन क्षेत्र का प्रस्तावक उसका नामांकन पत्र खरीदेगा। नामांकन पत्र में मांगी गई जानकारियों को सही तरीके से भरकर प्रस्तावक जेल जाएगा और बंदी से हस्ताक्षर कराएगा या उसका अंगूठा लगवाएगा। बंदी चुनाव लड़ने के संबंध में अपनी शपथ जेल अधीक्षक के सामने लेगा। इसके बाद प्रस्तावक नामांकन और शपथ संबंधी प्रपत्र लाकर कलेक्ट्रेट में निर्धारित जगह जमा करेगा। नामांकन पत्र की जांच होगी और उसमें यदि कोई त्रुटि नहीं मिलेगी तो फिर जेल में बंद बंदी अन्य प्रत्याशियों की तरह ही चुनाव लड़ सकेगा।
अधिवक्ता विवेक शंकर तिवारी ने बताया कि कई बार ऐसा भी होता है कि बंदी के प्रार्थना पत्र पर अदालत विचार कर उसे स्वत: कलेक्ट्रेट जाकर पर्चा दाखिल करने की अनुमति भी देती है। हालांकि यह बंदी के अपराध की प्रकृति और अदालत के आदेश पर निर्भर करता है। यदि बंदी चुनाव जीत जाता है तो फिर उसे बताना होता है कि उसके विधानसभा क्षेत्र में कौन उसका प्रतिनिधि होगा। फिर वही प्रतिनिधि ही बंदी की जगह सरकारी बैठकों में शामिल होने से लेकर अन्य कामकाज विधिक रूप से करता है।
9 साल पहले सुप्रीम कोर्ट ने लगाया था प्रतिबंध
अधिवक्ता विवेक शंकर तिवारी ने बताया कि जेल में निरुद्ध बंदियों के चुनाव लड़ने पर सुप्रीम कोर्ट ने वर्ष 2013 में प्रतिबंध लगा दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि जेल में बंद व्यक्ति न मतदाता रहेगा और न चुनाव लड़ सकेगा। हालांकि उसी वर्ष संसद ने मानसून सत्र में लोक प्रतिनिधित्व कानून में संशोधन कर जेल में बंद विचाराधीन बंदियों के चुनाव लड़ने का रास्ता साफ कर दिया था। तब से अब तक बंदियों के चुनाव लड़ने के संबंध में यही व्यवस्था चली आ रही है।