यूपी की 4 दलित बस्तियों से ग्राउंड रिपोर्ट …. 20 साल से सरकारी नौकरी नहीं मिली, नल से नाले का पानी आता तो कहीं बरसात में टपकती रहती छत
“चुनाव आते ही नेताओं को दलित याद आने लगते हैं, पर जीतने के बाद हमारी तरफ मुड़कर भी नहीं देखते” ये खुद यूपी के दलितों ने हमसे कहा। दरअसल, हमारी टीम उत्तर प्रदेश की चार दलित बस्तियों में पहुंची। गोरखपुर की चंदौली खुर्द, चित्रकूट की राघोपुर, आजमगढ़ की मस्जिदिया और वाराणसी की कांशीराम बस्ती। वहां के लोगों ने हमसे अपने बिगड़ते हालातों के बारे में बताया। कुछ बातें हम नीचे लिख रहे हैं। पूरी स्टोरी जानने के लिए ऊपर लगा वीडियो देखें।
दलित बस्ती 1: चंदौली खुर्द बस्ती, गोरखपुर
गोरखपुर सिटी से 20 किलोमीटर दूर बांसगांव। पक्की सड़क से दाहिने तरफ टूटे-फूटे रास्ते पर 2 किलोमीटर पैदल चलने के बाद हम पहुंचे चंदौली खुर्द। बस्ती में करीब 100 दलित परिवार रहते हैं। टूटे बाथरूम, बजबजाती नालियां, घरों के जर्जर हालात यहां के विकास की कहानी पहले ही कह रहे थे। पर बस्ती के लोगों से बात करने पर इनसे ज्यादा बड़ी समस्याएं हमें पता चलीं…
सड़क, पानी, शौचालय के हाल बेहाल…बस यही है इस गांव के विकास की कहानी
विकास के सवाल पर अल्पना ने बताया, “हम लोग 2 किलोमीटर पैदल चलकर जाते हैं तब जाकर साधन मिलता हैं। बरसात में पानी घुटनों तक भर जाता है। हमारे गांव की गलियां रामगढ़ ताल बन जाती हैं। उसी गन्दगी से निकलकर हम पढ़ने जाते हैं। पर विकास के नाम पर ये हालात किसी को भी नजर नहीं आते।”
वो बताती हैं, “पार्टी कार्यकर्ता इलेक्शन के समय नजर आते हैं। उनको अपनी दिक्कतें बताओ तो बस एक ही जवाब, हमारी सरकार बनेगी तो हम सब ठीक कर देंगे। लेकिन जब सत्ता में आ जाते हैं तो बस्ती में झांककर भी नहीं देखते। हमारे विधायक तो ऐसे हैं जिनकी पूरे गांव ने आजतक शक्ल भी नहीं देखी, काम करवाने की बात तो बहुत दूर है।”
राशन के नाम पर खानापूर्ती, नमक में कांच और प्लास्टिक की मिलावट
बस्ती के लोग बताते हैं, “जब राशन कोटे पर तौलते हैं तो 20 किलो होता है, घर आकर तौलो तो 16-17 किलो ही निकलता है। कई बात शिकायत की गई लेकिन कोई सुनवाई नहीं होती।” राशन की क्वालिटी पर लोगों ने कहा, “फ्री का राशन देकर सरकार हमारी जिंदगियों के साथ खिलवाड़ कर रही हैं। जो नमक हमें मिला है उसमें कांच और प्लास्टिक मिला हुआ है। उसे खाकर कई लोगों की तबीयत बिगड़ गई। अब गांव का एक भी इंसान उस नमक का इस्तेमाल नहीं करता है।”
युवाओं ने कहा, “ वैसे भी 7-8 लोगों के परिवार में मात्र 5 किलो ही राशन मिलता है। सरकार चाहे तो वो भी ना दे। लेकिन रोजगार का समाधान करे, भर्तियां निकाले। राशन हम खुद खरीद लेंगे।”
थाने में सब बड़ी जाति के लोग हैं, इसलिए हम जैसे छोटे जाति के लोगों की सुनवाई नहीं होती
बस्ती के दसवीं में पढ़ने वाले स्टूडेंट्स बताते हैं, “हम छोटी जाति के हैं, इसलिए स्कूल के टीचर हमसे बदतमीजी से बात करते हैं।” वो प्राइमरी स्कूल के एक टीचर से जुड़ी दो साल पहले की एक घटना बातते हैं। वो टीचर छोटी जाति की लड़कियों पर भद्दे कमेंट करते थे। उनके साथ गलत व्यवहार करते थे।
हम लोग जब अपनी शिकायत लेकर पुलिस के पास गए तो उन्होंने एफआईआर लिखने से मना कर दिया। बस इसलिए क्योंकि वो टीचर ऊंची जाति के थे। उसके बाद टीचर की बदतमीजी बढ़ती गई तो सभी बस्ती वालों ने मिलकर चक्काजाम किया। अपनी आवाज उठाई तब जाकर एफआईआर हुई। टीचर को सस्पेंड कर दिया गया।
दलित बस्ती 2: राघोपुर दलित बस्ती, चित्रकूट
साफ-सुथरे कपड़े पहने दैनिक भास्कर का माइक लिए जब हम चित्रकूट जिले की दलित बस्ती राघोपुर पहुंचे, तो वहां के लोगों को लगा जैसे कोई मसीहा आ गया हो। उन्होंने हमें इस उम्मीद के साथ घेर लिया कि अब सारी समस्याएं दूर हो जाएंगी। हम उनसे उनके हालत पूछते, उससे पहले ही हमें सब कुछ साफ-साफ नजर आ गया…
सरकारी नल से निकलता नाले का पानी, टूटी-फूटी झोपड़ी के बाहर खाना पकाती टूटे पैरों वाली अम्मा
हम अभी बस्ती में घुसे ही थे कि सबसे पहले छोटू वर्मा अपनी टूटी-फूटी झोंपड़ी के बाहर खड़े मिले। हमने पूछा आपको पक्का मकान नहीं मिला, जवाब आया, “हमको काहे मिलेगा, हम करोड़पति हैं ना।”
पास में ही छोटू का पूरा परिवार था। अम्मा से बात की तो बोलीं, “15 साल से अपाहिज हूं, कोई सरकारी इलाज नहीं मिला है, न वृद्धा पेंशन मिलती है।”
साथ ही अम्मा का दूसरा बेटा बैठा था जो पहले गाड़ी चलाता था, अब रामघाट पर भीख मांगता है। फिर छोटू के पिता ने बताया, “हमारा 11 लोगों का परिवार इसी टूटे-फूटे घर में रहने को मजबूर है।” इसके बाद उन्होंने हमें अपनी झोपड़ी के बगल से बहता हुआ गन्दा नाला दिखाया। जिससे बहुत बदबू आ रही थी।
थोड़ा आगे बढ़े तो एक नल दिखाई दिया। पीछे से एक महिला की जोर से आवाज आती है, “भईया इस नल से नाले का गन्दा पानी निकलता है। बस्ती में करीब 400 परिवार रहते हैं, जिनमें से 200 लोग इसी नल पर निर्भर हैं।”
यहां जो कराया मायावती ने कराया, भाजपा में घूसखोरी बढ़ी
चुनावी माहौल के बारे में जानने की कोशिश की तो बस्ती के कुछ बुजुर्गों ने कहा, “जिसके नसीब में होगा वो जीत जाएगा। किसी की भी सरकार आ जाए हमारा जीवन तो ऐसे ही कटना है।” फिर हमने पूछा कि किस सरकार का काम आपको अच्छा लगा तो पीछे से उर्मिला बोली, “यहां जो कुछ भी हुआ है, सब मायावती का करवाया हुआ है। ये सड़क, ये बिजली और ये नल सब मायावती की देन है। मायावती ने हमको बोलना सिखाया है।”
बगल में खड़े शिवम रैदास ने बताया, “योगी सरकार में पुलिस भी हमारी नहीं सुनती। मायावती की सरकार में सब अधिकारी टाइट रहते थे, अब तो खूब भ्रष्ट्राचार होता है।” तभी वहां मौजूद अशोक कुमार सोनकर ने बताया, “पक्का मकान बनवाने के लिए मैंने भी घूस दी है। मुझसे JE राजेश कुमार ने 10,000 रुपये मांगे थे, मैंने दिए तभी मकान बना।” फिर राजकरण ने कहा, “मैंने पैसे नहीं दिया तो मेरी कॉलोनी अब तक नहीं आई।”
अवैध शराब बनती है, युवा नशे की चपेट में, महिलाएं असुरक्षित
वहां का सबसे पढ़ा लिखा युवा शिवम 12वीं पास था। उसने बताया, “बस्ती में ही थोड़ा आगे चलकर अवैध कच्ची शराब बनती है। सोनकर और जोशी बनाते हैं। शाम को लोग कच्ची शराब पीकर गली में बहन-बेटियों को गलियां देते हुए निकलते हैं।”
तभी उर्मिला की बेटी ने बताया, “ यहां महिलाएं और बेटियां सुरक्षित नही हैं। इसी गली से लोग शराब पीकर निकलते हैं। हम लोगों को गलियां बकते हैं। कई लड़कियों से छेड़खानी भी करते हैं। पुलिस को सब पता है, सब कमीशनबाजी से चल रहा है।”
दलित बस्ती 3: आजमगढ़ के निजामाबाद इलाके की मस्जिदिया बस्ती
आजमगढ़ के निजामाबाद इलाके की मस्जिदिया बस्ती में करीब 50-60 घर हैं। यहां की महिलाओं की जिंदगी बस खाना बनाने, बच्चे पालने और पति की गाली सुनने तक ही सीमित है। पैसों की इतनी किल्लत है उसके बावजूद उनकी जाति की वजह से उन्हें नौकरी नहीं मिलती। उन्होंने ऐसी तमाम परेशानियां और दिक्कतें हमसे बताई…
हर 50 में से 45 महिलाएं घरेलू हिंसा की शिकार
बस्ती में 90% औरतें घरेलू हिंसा की शिकार हैं। वहां रहने वाली एक महिला बताती हैं कि उनके पति 400 रुपए तक कमाते हैं जिसमें से 100 रुपए की दारू पी जाते हैं। दारू पीने के बाद मारते पीटते हैं। गालीगलौज करते हैं। घर में खाना बने ना बने, मर्दों को हर रोज दारू चाहिए। इतने पैसे भी नहीं बच पाते कि बच्चों को दूध या फल खिला पाएं।
पहले हाथ जोड़ते, जीतने के बाद कोई झांकने भी नहीं आता
बरसात में घरों के अंदर पानी आ जाता है। टीन की छत है जिसमें छेद से लगातार पानी टपकता रहता है। उठने-बैठने तक की दिक्कत हो जाती है। ये सब किसी नेता को दिखाई नहीं देता। जैसे ही इलेक्शन आता है, 10 लोग दौड़कर आते हैं। वोट मांगने के लिए हाथ जोड़ते हैं। पर जीतने के बाद कोई बस्ती की तरफ मुड़कर भी नहीं देखता।
पैसे की दिक्कत की वजह से पढ़ाई बंद करा दी जाती
गांव के 50 घरों में से सिर्फ 4 लोग हायर एजुकेशन ले पाए हैं। इन चार में से मात्र 1 के पास नौकरी है। हालात इतने खराब है कि पैसों की दिक्कत की वजह से बच्चों की पढ़ाई पूरी नहीं हो पाती। बीटीसी पास लक्ष्मी भारती बताती है, उन्हें बीटीसी करने के लिए दिल्ली में एक साल नौकरी करनी पड़ी। उसी पैसों से 2017 में बीटीसी पास किया। वो सरकारी जॉब की तैयारी के साथ-साथ सिलाई भी करती हैं।
दलित बस्ती 4: कांशीराम कालोनी, वाराणसी
वाराणसी शहर के चमकते हुए घाटों और इमारतों से गुजरते हुए हम कांशीराम गरीब आवास कालोनी पहुंचे। कालोनी के ठीक सामने शराब के ठेके पर बैठे लोगों की भीड़ थी। बच्चे तंग गलियों में खेल रहे थे। हर घर के दरवाजे पर बसपा का पोस्टर चिपका था। महिलाएं घरों के बाहर बैठी बातें कर रही थी। सुबह 9 से 11 बजे तक हम बारी-बारी कालोनी की सभी 17 गलियों से गुजरे और लोगों से बात की।
शराब का ठेका खुलने के बाद कालोनी में बढ़ी घरेलू हिंसा
कालोनी की तीसरी गली के पहले मकान के बाहर बैठी मटर छील रही रानी देवी ने बताया, “सरकार हमारा हाल पूछती नहीं है, उल्टा शराब का ठेका खुलवा दिया है। लोगों को कालोनी में ही दारू मिल जाती है। जाके दारू पी लिए। फिर घर में बीवी बच्चों से मारपीट करते हैं। इससे दिक्कतें केवल घर की औरतों को ही होती हैं।” रानी कहती हैं, “पुलिस थाने पर शिकायत लेकर जाओ तो दरोगा मजाक करते हैं। बोलते हैं तुम्हारे घर के झगड़े निपटाने के लिए यहां नहीं बैठे हैं।’’
कोई सरकारी नौकरी नहीं करता… लड़कियों के लिए माहौल ठीक नहीं
कालोनी में रह रही लड़कियों की सुरक्षा को लेकर 82 साल की कुसमा देवी ने बताया, “यहां कोई सरकारी नौकरी नहीं करता है। ज्यादातर लोग फेरी लगाने वाले, मजदूर और बेरोजगार हैं। दिन भर कमाते हैं। शाम को दारू पीते हैं। इसलिए लड़कियां और महिलाएं उधर कम ही जाती हैं। मायावती के समय यहां पुलिस राउंड लगाने आती थी। अब कौन क्या कर रहा है, कोई फर्क नहीं पड़ता।”
भाजपा और सपा की सरकारों में कोई हाल पूछने नहीं आया
कैमरे पर न आने की शर्त पर कांशीराम कालोनी के केयरटेकर ने बताया, “ जब तक बहन जी थी यहां के लोगों के राशन कार्ड, अंत्योदय कार्ड और निवास प्रमाण पत्र बनाने अधिकारी आते थे। लेकिन 2012 से आज 10 साल हो गए हैं। योगी और अखिलेश सरकार की एक भी योजना का लाभ यहां के लोगों को नहीं दिया गया।’’
वो आगे कहते हैं, “कालोनी में न तो सफाईकर्मी आता है और न ही कूड़ा उठाने वाली गाड़ी। यहां सरकारी राशन की दुकान पर भी समय से अनाज नहीं आता है। दीवाली से अभी तक केवल दो बार ही चीनी मिली है।’’
बनारस की रिपोर्ट हमारे साथी …… ने की है।