बाहुबलियों की कहानी-10 …. यूपी का वो नेता जो लव-सेक्स और मर्डर में जेल गया, सबूत बना गर्भवती के पेट में मरे बच्चे का DNA टेस्ट
तारीख-9 मई 2003, जगह-पेपर मिल कॉलोनी लखनऊ, समय-सुबह के 10.30 बजे, मशहूर कवयित्री मधुमिता शुक्ला के घर का दरवाजा किसी ने खटखटाया। 7 महीने की गर्भवती मधुमिता ने दरवाजा खोला तो सामने संतोष राय और प्रकाश पांडे खड़े थे। मधुमिता ने अंदर बुलाकर नौकर देशराज को चाय बनाने को कहा। देशराज किचन में चला गया। अभी चाय उबली भी नहीं थी अंदर से गोली चलने की आवाज आई। देशराज भागते हुए कमरे में पहुंचा तो देखा कि मधुमिता खून में सनी तड़प रही हैं। वो कुछ कर पाता इससे पहले उनकी सांसें रुक गईं।
इस हत्याकांड से कहानी की शुरुआत का मतलब समझते हैं? असल में ये वही घटना है जिसने आज के बाहुबलियों की कहानी के बाहुबली अमरमणि त्रिपाठी की जिंदगी पलट दी थी। फिलहाल अमरमणि और उसकी पत्नी जेल में हैं। बेटा अमनमणि गोरखपुर जिले की नौतनवा सीट से चुनाव लड़ रहा है। लेकिन ये सब कैसे हुआ कि 4 बार का विधायक, अलग-अलग सरकार में मंत्री रहा नेता आज राजनीतिक पार्टियों के लिए ‘अछूत’ बन गया? आइये जानते हैं…
हरिशंकर तिवारी का उत्तराधिकारी बनकर राजनीति में एंट्री
1970 के दशक में गोरखपुर में छात्र राजनीति पूरे उफान पर थी। इसमें भी दो गुट थे। ब्राह्मणों के गुट का मसीहा हरिशंकर तिवारी और ठाकुरों के गुट का मसीहा वीरेंद्र प्रताप शाही था। दोनों गुटों में हर महीने फायरिंग होती। लोगों की मौत होती। वजह बस वर्चस्व स्थापित करना, ठेके हासिल करना था। उस वक्त सारे प्रभावशाली लोगों ने अपना एक पक्ष चुन लिया था। तब अमरमणि त्रिपाठी सीन में आए और हरिशंकर तिवारी के खास बन गए।
पहले दो चुनाव हार गए अमरमणि
हरिशंकर तिवारी ने अमरमणि त्रिपाठी को 1980 में अपने सबसे बड़े दुश्मन वीरेंद्र प्रताप शाही के खिलाफ लक्ष्मीपुर सीट से चुनाव मैदान में उतारा। साल 2008 के परिसीमन के बाद से इस सीट का नाम नौतनवा है। अमरमणि को कम्युनिस्ट पार्टी का समर्थन था, लेकिन वीरेंद्र को नहीं हरा सके। 1985 में अमरमणि फिर से चुनाव में उतरे, लेकिन नतीजा नहीं बदला। इस हार के बाद उन्होंने पार्टी बदल ली। कांग्रेस ज्वॉइन की।1989 में इसका फायदा हुआ और अमरमणि पहली बार विधायक बन गए।
अमरमणि बन गए राजनीतिक पार्टियों की जरूरत
1991 और 1993 के विधानसभा चुनाव में अमरमणि को कुंवर अखिलेश प्रताप सिंह ने हरा दिया। लेकिन 1996 में स्थिति पलट गई। अमरमणि दूसरी बार कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीत गए। प्रदेश में भाजपा-बसपा गठबंधन की सरकार बनी तो उन्होंने कांग्रेस छोड़ दी। भाजपा ने उन्हें न सिर्फ पार्टी में शामिल किया बल्कि मंत्रालय भी सौंप दिया।
बच्चा किडनैपिंग में आया नाम तो बर्खास्त हुए
साल 2001, बस्ती जिले के एक बड़े कारोबारी के 15 साल के बेटे राहुल मदेसिया का अपहरण हो गया। मामला इतना हाई प्रोफाइल था कि लखनऊ से दिल्ली पहुंच गया। प्रदेश की भाजपा सरकार ने पुलिस को जल्द बच्चा खोज निकालने का आदेश दिया। पुलिस ने तेजी दिखाते हुए राहुल को खोज निकाला। जांच हुई तो पता चला राहुल को अमरमणि त्रिपाठी के बंगले पर रखा गया था। बीजेपी सरकार की बेइज्जती होने लगी तो उस वक्त के सीएम राजनाथ सिंह ने अमरमणि त्रिपाठी को मंत्रिमंडल से बर्खास्त कर दिया।
चर्चित मधुमिता हत्याकांड
मधुमिता शुक्ला लखीमपुर जिले की कवयित्री थी। मंचों पर वीर रस की कविताएं पढ़ती थीं। अमरमणि के संपर्क में आईं तो उनका नाम बड़ा हो गया। मंच से मिली शोहरत और सत्ता से नजदीकी ने उन्हें पावरफुल बना दिया। अमरमणि त्रिपाठी से उनका रिश्ता प्रेम में बदल गया। दोनों के बीच शारीरिक संबंध स्थापित हो गए। मधुमिता प्रेग्नेंट हो गई। उन पर गर्भपात करवाने का दबाव बढ़ा पर उन्होंने नहीं करवाया।
9 मई 2003 को 7 महीने की गर्भवती मधुमिता शुक्ला की गोली मारकर हत्या कर दी गई। संतोष राय और पवन पांडे के साथ अमरमणि त्रिपाठी, उनकी पत्नी मधुमणि त्रिपाठी और भतीजे रोहितमणि त्रिपाठी को आरोपी बनाया गया। प्रदेश में बसपा सरकार थी और अमरमणि त्रिपाठी मंत्री थे। सीबीसीआईडी ने 20 दिन की जांच के बाद मामला सीबीआई को सौंपा। गवाहों से पूछताछ हुई तो दो गवाह पलट गए।
मधुमिता की बहन सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई। उन्होंने याचिका दायर करते हुए केस को लखनऊ से दिल्ली या तमिलनाडु ट्रांसफर करने की अपील की। कोर्ट ने 2005 में केस उत्तराखंड ट्रांसफर कर दिया। 24 अक्टूबर 2007 को देहरादून सेशन कोर्ट ने पांचों लोगों को उम्रकैद की सजा सुनाई। अमरमणि त्रिपाठी नैनीताल हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट गए लेकिन सजा बरकरार रही।
मधुमिता का पत्र जो बना निर्णायक
दिसंबर 2002 में मधुमिता ने एक पत्र लिखा जो उनकी मौत के बाद उनके कमरे से मिला। उसमें उन्होंने लिखा था, ‘4 महीने से मैं मां बनने का सपना देखती रही हूं, तुम इस बच्चे को स्वीकार करने से मना कर सकते हो पर मैं नहीं कर सकती, क्या मैं महीनों इसे अपनी कोख में रखकर हत्या कर दूं? क्या तुम्हें मेरे दर्द का अंदाजा नहीं है, तुमने मुझे सिर्फ एक उपभोग की वस्तु समझा है।’ मधुमिता का यह पत्र जांच टीम के लिए निर्णायक साबित हुआ। हत्या के बाद मधुमिता की कोख में मर चुके बच्चे का डीएनए टेस्ट किया गया। उसका मिलान अमरमणि त्रिपाठी के डीएनए से हुआ तो दोनों एक मिले।
खत्म हो गया राजनीतिक करियर
मधुमिता हत्याकांड में नाम आते ही अमरमणि के राजनीतिक करियर का ढलान शुरू हो गया। मायावती ने मंत्रिमंडल से बाहर कर दिया तो सपा में चले गए। 2007 में जेल के अंदर से चुनाव लड़ा और लक्ष्मीपुर सीट से जीत गए। लेकिन सात महीने बाद ही मधुमिता हत्याकांड में उम्रकैद की सजा मिली और पूरा राजनीतिक करियर खत्म हो गया।
चुनाव मैदान में बेटे को उतारा
2012 के चुनाव में सपा ने अमरमणि त्रिपाठी के बेटे अमनमणि को प्रत्याशी बनाया। लेकिन कौशल किशोर ने उन्हें 7,837 वोटों से हरा दिया। 2017 के चुनाव में सपा ने अमनमणि को टिकट नहीं दिया तो वह निर्दलीय उतर गए और कौशल किशोर को 32,256 वोटों से हराकर पहली बार विधायक बन गए। इस बार अमन बसपा के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं।
पिता की तरह बेटे पर ही हत्या का आरोप
जुलाई 2015 में अमनमणि स्विफ्ट डिजायर कार से नौतनवा से दिल्ली जा रहे थे, फिरोजाबाद में कार दुर्घटनाग्रस्त हो गई और पत्नी सारा की मौत हो गई। जबकि गाड़ी में ही बैठे अमनमणि को एक खरोंच तक नहीं आई। सारा की मां ने हत्या का आरोप लगाते हुए सीबीआई जांच की मांग की। सीबीआई मामले की जांच करते हुए अमनमणि त्रिपाठी के खिलाफ चार्जशीट दायर कर चुकी है।
इस वक्त क्या हाल
हत्याओं में नाम आने के बावजूद महराजगंज जिले के नौतनवा में त्रिपाठी परिवार का प्रभाव कम नहीं हुआ। अमरमणि और मधुमणि जेल में हैं। अमनमणि जमानत पर बाहर हैं। अमरमणि की दोनों बेटियां तनुश्री और अलंकृता ने क्षेत्र में निकलकर प्रचार किया। 3 मार्च को वोट पड़ चुके हैं। 10 मार्च को नतीजे आएंगे। जनता यह तो मानती है कि अमरमणि अपराधी हैं लेकिन फिर भी वोट देती है।