सड़कें बनाने उजाड़ दी हरियाली, साइड प्लांटेशन के नाम पर सु-बबूल
– वन विभाग को पौधों के नेट प्रजेंट वैल्यू, पौधे लगाने के लिए राशि देकर पल्ला झाड़ लेती हैं सड़क निर्माण एजेंसियां
– साइड प्लांटेशन से बचने के लिए कंपनियां इंजीनियरों और जिम्मेदार अधिकारियों को साथ लेती हैं
सड़क निर्माण एजेंसियों को सड़कों की जद में आने वाले पौधों के बदले दोगुने पौधे लगाने की शर्तों पर सड़क बनाने की अनुमतियां दी जाती हैं। इन शर्तो को निर्माण एजेंसियां मान भी लेती हैं, लेकिन ये सिर्फ पौधे काटने के बदले पौधे लगाने के लिए पैसे और नेट प्रजेंट वैल्यू की राशि केन्द्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय को देकर अपना पल्ला झाड़ लेती हैं। जबकि उन्हें सड़कों के दोनों तरफ पौधरोपण करना भी अनिवार्य होता है, जिससे वाहनों के निकालने वाले कार्बन के प्रभाव को ये पौधे कम कर सकें। इसके अलावा सड़कों से जो भी पौधे काटे गए हैं, उसके अनुसार इन सड़कों के किनारे आने वाले पांच से सात सालों में हरियाली बनी रहे। लेकिन यह हरियाली पौधों की नहीं बल्कि फूलों अथवा स्थानीय पौधों के झाडिय़ों की होती हैं, जिसे जानवर और मवेशी नहीं खाते हैं।
पेनाल्टी में ही सरकार खुश
पौधरोपण के संबंध में शिकवा शिकायत होने पर सरकार ठेकेदारों को सामन्य पेनाल्टी लगाकर मामले को रफा दफा कर लेती है। इसके बाद उन्हें पौधरोपण से भी मुक्त कर देती है। जबकि सरकार को इस मामले में पेनाल्टी तो लगाना ही चहिए, लेकिन पौधरोपण से उन्हें मुक्त नहीं करना चाहिए। सरकार का मानना है कि पौधे अपने आप उग आते हैं, जो इन सड़कों के किनारे भी देर सबेर उग जाएंगे। इससे रोड साइड में पौधरोपण को बहुत ज्यादा गंभीरता से नहीं लिया जाता है।
खेत में तब्दील हो जाती है रोड साइड
पौधरोपण नहीं होने और रोड के दोनों तरफ फैंसिंग नहीं होने से रोड साइड खेत में तब्दील हो जाती है। किसान प्रति वर्ष अपने खेत की सीमाएं सड़कों की तरफ बढ़ाते ही रहते हैं। इसके साथ ही मवेशी बांधना शुरू कर देते हैं। इसके अलावा लोगों पौधरोपण की जगह पर अतिक्रमण कर घर, दुकान और ठेला जमा लेते हैं।