मर्डर मिस्ट्री सीरीज-6 …. कहानी रंगा-बिल्ला की, जिन्होंने नेवी अफसर के बेटे-बेटी की हत्या की, फांसी के बाद 2 घंटे तक जिंदा था रंगा

कहानी शुरू होती है मुंबई से
बात 1975 के आसपास की है। कुलजीत सिंह उर्फ रंगा खुद पहले ट्रक चलाता था, मन नहीं लगा तो मुंबई में टैक्सी चलाने लगा। मन यहां भी नहीं लग रहा था। रंगा ने शाम सिंह नाम के आदमी से कुछ अलग करने बात कही। शाम ने जसबीर सिंह के बारे में बताना शुरू कर दिया। जसबीर ऐसा है। जसबीर वैसा है। दो विदेशियों की हत्या कर चुका है। बहुत पैसा कमाता है। रंगा ने कहा, मिलवाओ। शाम सिंह ने जसबीर सिंह उर्फ बिल्ला से मुलाकात करवा दी। अब बन गई रंगा-बिल्ला की जोड़ी।

रंगा और बिल्ला पहले मुंबई में छोटी मोटी चोरियां करते थे। धीरे धीरे वह बड़े किडनैपर बनते चले गए।
रंगा और बिल्ला पहले मुंबई में छोटी मोटी चोरियां करते थे। धीरे धीरे वह बड़े किडनैपर बनते चले गए।

रंगा-बिल्ला ने किडपैनिंग और कार चोरी को ही अपना काम मान लिया
रंगा और बिल्ला मुंबई में कार चोरी करते और फिर उसे बेच देते। बच्चों को किडनैप करते और वसूली लेकर छोड़ देते। एक बार बिल्ला पकड़ा गया। पुलिस ने पकड़ा और ठाणे की जेल में बंद कर दिया। कुछ दिन बाद बिल्ला जेल से ही भाग गया। इसके बाद दोनों ने मुंबई के बजाय दिल्ली और आसपास के हिस्सों में अपराध करना शुरू किया। 1978 के जून महीने में अशोक शर्मा की कार अशोका होटल के सामने से रंगा-बिल्ला ने चोरी कर ली। इसी गाड़ी से उन्होंने सबसे बड़ा अपराध अंजाम दे दिया।

गीता और संजय सड़क किनारे खड़े थे तभी रंगा-बिल्ला की कार आ गई
नौसेना के अधिकारी मदन मोहन चोपड़ा धौलाकुआं की अफसर कॉलोनी में रहते थे। दो बच्चे थे। सोलह साल की गीता चोपड़ा। 14 साल का संजय चोपड़ा। गीता जीसस एंड मैरी कॉलेज में कॉमर्स की पढ़ाई करती थी। संजय मॉडर्न स्कूल में 10वीं की पढ़ाई के साथ बॉक्सिंग की प्रैक्टिस करता था। गीता को एक बार ऑल इंडिया रेडियो से एक ऑफर आ गया। उन्हें 26 अगस्त 1978 को वेस्टर्न सॉन्गस के एक इन द ग्रूव प्रोग्राम में हिस्सा लेना था। वह उसी रात 8 बजे ऑन एयर होना था।

रेडियो पर गीता की आवाज नहीं आई तो डर गए घर वाले
प्रोग्राम में भाग गीता को लेना था, लेकिन उनके साथ भाई संजय भी जाने के लिए तैयार हो गया। दोनों घर से निकले तो कॉलोनी के ही एक व्यक्ति ने लिफ्ट दी और गोल डाकखाना छोड़ दिया। यहां से आकाशवाणी केंद्र थोड़ी ही दूर पर था। गीता और संजय टैक्सी के इंतजार में सड़क किनारे खड़े हो गए। तभी रंगा-बिल्ला पीले रंग की फिएट कार लेकर आए और लिफ्ट देने के बहाने दोनों को बैठा लिया। इधर, घर में बैठी मां रोमा चोपड़ा ने 8 बजे रेडियो खोला तो वहां गीता को छोड़कर सभी की आवाज आ रही थी। उन्हें लगा कि शायद प्रोग्राम कैंसिल हो गया।

प्रोग्राम में गीता को जाना था, लेकिन संजय भी चला गया। रास्ते में टैक्सी के इंतजार में खड़े थे, तभी रंगा-बिल्ला गाड़ी लेकर आ गए।
प्रोग्राम में गीता को जाना था, लेकिन संजय भी चला गया। रास्ते में टैक्सी के इंतजार में खड़े थे, तभी रंगा-बिल्ला गाड़ी लेकर आ गए।

गीता ने रंगा से कहा, कहां ले जा रहे हो
पहले दो मिनट में रंगा और बिल्ला की आपस में नजर मिली और आंखों-आंखों में ही इशारा हो गया। गाड़ी आकाशवाणी के बजाय दूसरे रास्ते पर मोड़ दी गई। गीता ने कहा, “कहां ले जा रहे हो? आकाशवाणी तो दूसरे रास्ते पर है।” दोनों ने कुछ नहीं बोला। गीता और संजय समझ गए कि फंस गए हैं। उन्होंने गाड़ी को रुकवाने की कोशिश की। बिल्ला ने धारदार हथियार से संजय के कंधे और हाथ पर हमला कर दिया।

लड़के की पूरी शर्ट खून से भीग गई, गीता रंगा का बाल खींच रही थी
संजय की पूरी शर्ट खून से भीग गई। दूसरी तरफ गीता गाड़ी चला रहे रंगा के बाल जोर से पकड़कर खींचने लगी। रंगा हाथ छुड़ाने की पूरी कोशिश कर रहा था। वह एक साथ से गाड़ी चला रहा दूसरे हाथ से गीता के हाथों पर जोर-जोर से वार कर रहा था। गाड़ी आगे जाकर शंकर रोड के भीड़ वाले इलाके में रुकी। संजय ने शीशे से मुंह सटाकर जोर-जोर से चिल्लाना शुरू कर दिया।

संजय की आवाज भगवान दास ने सुनी। वह बंगला साहब गुरुद्वारे से नॉर्थ एवेन्यू की ओर स्कूटर से जा रहे थे। बच्चे को चिल्लाते देखा तो उसे रोकने की कोशिश की। एक अन्य व्यक्ति गाड़ी से लटक गया, लेकिन रंगा ने गाड़ी नहीं रोकी। भगवान दास ने तुरंत पुलिस को सूचना दे दी। उन्होंने बताया कि गाड़ी में दो बच्चे बंद हैं, गाड़ी का नंबर MRK-8930 है।

डीडीए के जूनियर इंजीनियर इंदरजीत ने भी उस गाड़ी को देखा। उन्होंने बताया कि लोहिया अस्पताल के पास गाड़ी तेज रफ्तार से गुजरी और आगे जाकर धीमी हुई तो मैंने देखा कि गाड़ी में दो बच्चे चीख रहे हैं। मैने गाड़ी रोकने की कोशिश की, लेकिन ड्राइवर सिग्नल तोड़ते हुए भाग गया। उन्होंने गाड़ी का नंबर HRK-8930 बताया।

रंगा और बिल्ला तेज रफ्तार से गाड़ी भगाते हुए जा रहे थे। रास्ते में जिसने भी देखा, उसे शक हुआ कि गाड़ी में कुछ गड़बड़ है।
रंगा और बिल्ला तेज रफ्तार से गाड़ी भगाते हुए जा रहे थे। रास्ते में जिसने भी देखा, उसे शक हुआ कि गाड़ी में कुछ गड़बड़ है।

संजय की हत्या करने के बाद गीता के साथ रेप किया
रंगा और बिल्ला गाड़ी भगाते हुए रिज इलाके में पहुंच गए। यहां गाड़ी रोकी और सबसे पहले संजय की हत्या कर दी। इसके बाद दोनों ने मिलकर गीता के साथ रेप किया। रेप के बाद रंगा गीता को उसके भाई की लाश की तरफ ले जा रहा था, तभी पीछे से बिल्ला ने तलवार निकाली और गीता की गर्दन पर वार कर दिया। गीता मौके पर ही मर गई। उसकी लाश को उठाया और सड़क के किनारे फेंककर भाग गए।

140 पुलिसवाले 30 अलग-अलग गाड़ियों से ढूंढ रहे थे
9 बजे पिता आकशवाणी के कार्यालय पहुंचे। अंदर गए तो पता चला गीता और संजय यहां आए ही नहीं। मदन चोपड़ा हैरान हो गए। भागकर धौलाकुंआ थाने पहुंचे। पुलिस से शिकायत की, पुलिस के पास पहले ही दो बच्चों की किडनैपिंग की शिकायत पहुंच चुकी थी। उस वक्त के एसएचओ गंगा स्वरूप ने कोई कार्रवाई नहीं की। चोपड़ा से थाने के ही हरभजन सिंह ने कह दिया कि ये मामला हमारे थाना क्षेत्र के अंतर्गत नहीं बल्कि मंदिर मार्ग पुलिस स्टेशन में आता है, इसलिए वहां शिकायत करें।

मदन चोपड़ा के ही समर्थन में नौसेना के कई और अधिकारी थाने पहुंच गए। पुलिस ने किडनैपिंग का मामला दर्ज किया और तलाश शुरू की। करीब 140 पुलिस वाले 30 अलग-अलग गाड़ियों से दिल्ली के अलग-अलग हिस्सों में बच्चों को खोज रहे थे। जब कहीं नहीं मिले तो पुलिस ने जंगलों में जांच शुरू की। पूरा दिन पानी बरसा था, इसलिए घुप्प अंधेरे में चलना मुश्किल हो रहा था। पुलिस नहीं खोज पाई।

छह राज्यों की पुलिस खोज रही थी, तब 2000 रुपए का इनाम था
27 अगस्त को हरियाणा और यूपी पुलिस ने भी जांच शुरू कर दी। उत्तराखंड, बिहार, मध्य प्रदेश के साथ राजस्थान की पुलिस भी गीता और संजय को खोजने में लग गई। हरियाणा पुलिस ने उस गाड़ी को खोजा, जिसे सबसे पहले भगवान दास ने देखा था। ट्रांसपोर्ट विभाग ने बताया कि HRK-8930 नंबर की गाड़ी के मालिक रविंदर गुप्ता हैं, लेकिन वह गाड़ी फिएट नहीं थी। जो गाड़ी थी, उसकी हालत इतनी खराब थी कि दिल्ली तक जा ही नहीं सकती थी।

सड़क से मात्र 5 मीटर दूर दो दिन तक पड़ी रही गीता की लाश
29 अगस्त को एक चरवाहे को लाश दिखी। उसने पुलिस को सूचना दी। दिल्ली पुलिस तुरंत पहुंच गई। सड़क से महज 5 मीटर दूर पड़ी लाश को बाहर निकाला। आसपास सर्च शुरू किया तो 50 मीटर की दूरी पर एक और लाश मिली। पुलिस अधिकारी मदन चोपड़ा को लेकर वहां पहुंचे। मदन ने देखते ही पहचान लिया। सिर पर हाथ रखकर बैठ गए। मुंह से आवाज ही नहीं निकल रही थी। पुलिस वालों ने संभाला। पोस्टमार्टम रिपोर्ट आई तो पता चला गीता के शरीर में 5 और संजय के शरीर में 21 गहरे घाव थे।

लाश मिलने के बाद हंगामा हो गया। विदेश मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी प्रदर्शनकारियों को समझाने गए थे, तभी एक पत्थर उनके सिर में आकर लगा था।
लाश मिलने के बाद हंगामा हो गया। विदेश मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी प्रदर्शनकारियों को समझाने गए थे, तभी एक पत्थर उनके सिर में आकर लगा था।

विदेश मंत्री समझाने गए तो लोगों ने पत्थर मार दिया
लाश मिलने के बाद दिल्ली में हंगामा हो गया। लोकसभा के अंदर कांग्रेस के नेताओं ने जनता दल के खिलाफ हाय-हाय के नारे लगाए। उस वक्त के पीएम मोरारजी देसाई से इस्तीफे की मांग की गई। मोरारजी देसाई खुद पीड़ित के घर गए। उस वक्त के विदेश मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी दिल्ली में प्रदर्शन कर रहे लोगों से मिलने पहुंचे तो किसी ने पत्थर उछाल दिया। पत्थर अटल जी को लगा और उनका कुर्ता खून से लाल हो गया। सरकार की किरकिरी हुई तो पुलिस को अलर्ट किया गया।

रंगा-बिल्ला दिल्ली छोड़कर मुंबई भागे और फिर आगरा आ गए
8 सितंबर 1978 को रंगा-बिल्ला कालका मेल के उस डिब्बे में चढ़ गए जिसमें सारे फौजी भरे थे। उनसे सवाल जवाब किया तो धौंस दिखाने लगे। आर्मी के ही एक अफसर लांस नायक ए.वी शेट्टी ने पिछले दिनों इनकी फोटो अखबार में देखी थी, उन्होंने पहचान लिया। तुरंत पुलिस को सूचना दी और इन्हें गिरफ्तार करवा दिया। रंगा बिल्ला को गिरफ्तार करने के लिए स्टेशन पर करीब 100 पुलिसकर्मी सादी वर्दी में पहले से मौजूद थे।

बिल्ला बोला, मुझे रंगा ने फंसा दिया
गिरफ्तारी के बाद केस बहुत तेज चला। पुलिस ने दोनों से अलग-अलग पूछताछ की। डीएनए जांच हुई। सारे सबूत और डीएनए रंगा-बिल्ला से मैच कर गए। सेशन कोर्ट ने दोनों को फांसी की सजा सुनाई। रंगा-बिल्ला ने दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका दायर की। 26 नवंबर 1979 को हाईकोर्ट ने भी फांसी की सजा बरकरार रखी। रंगा ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की। सुप्रीम कोर्ट ने खारिज करते हुए कहा, फांसी से कम कोई सजा नहीं।

उस वक्त के राष्ट्रपति नीलम संजीव रेड्डी ने फांसी की सजा को माफ करने की अपील को तुरंत खारिज कर दिया।
उस वक्त के राष्ट्रपति नीलम संजीव रेड्डी ने फांसी की सजा को माफ करने की अपील को तुरंत खारिज कर दिया।

रंगा और बिल्ला के पास अब राष्ट्रपति को दया याचिका भेजने का विकल्प था। उन्होंने उस वक्त के राष्ट्रपति नीलम संजीव रेड्डी को याचिका भेज दी। राष्ट्रपति ने भी कोर्ट की तरह तत्काल इसे खारिज कर दी। अब बस फांसी की तारीख तय होना बाकी था। इस पूरी कार्रवाई के दौरान बिल्ला हमेशा उदास रहता और रोता रहता था। वह कहता कि वह निर्दोष है लेकिन उसे रंगा ने फंसा दिया। दूसरी तरफ रंगा कहता, “रब सब जानता है, मैंने कुछ किया ही नहीं।”

फांसी के लिए कालू और फकीरा जल्लाद को चुना गया
बचने के सारे विकल्प खत्म हुए तो फांसी की तारीख 31 जनवरी 1982 तय कर दी गई। फांसी देने के लिए मेरठ से कालू जल्लाद और फरीदकोट से फकीरा को बुलाया गया। फांसी के लिए रस्सी बिहार के बक्सर से आई। जेल प्रशासन ने दोनों जल्लादों को उस वक्त 150 रुपए में ओल्ड मोंक शराब मंगाकर पिलाई। जेल प्रशासन की मानें तो पूरे होश में रहने वाला व्यक्ति किसी की जान नहीं ले सकता।

तिहाड़ जेल प्रशासन ने दोनों को सुबह 5 बजे जगाया। रंगा नहाया, लेकिन बिल्ला ने नहाने से मना कर दिया। दोनों को फांसी के तख्त पर लाया गया। हाथ पीछे बांधा गया और चेहरे को काले कपड़े से बने थैले से ढक दिया गया। फांसी के तख्त पर पहुंचने पर रंगा ने जोर से नारा लगाया, “जो बोले सो निहाल, सत श्री अकाल।” तभी जेल के सुपरिंटेंडेंट आर्य भूषण शुक्ल ने लाल रुमाल हिलाया और दोनों जल्लादों ने लीवर खींच दिया।

फांसी के दो घंटे बाद भी चल रही थी रंगा की सांस
दो घंटे बाद जब डॉक्टरों ने चेक किया तो बिल्ला मर चुका था, लेकिन रंगा की नाड़ी चल रही थी। क्योंकि उसने फांसी के वक्त सांस रोक ली थी। एक कर्मचारी फांसी के तख्त से नीचे उतरा और उसने रंगा के पैर खींचे। बिल्ला और रंगा के घरवालों ने अंतिम संस्कार के लिए लाश लेने से मना कर दिया। जेल प्रशासन ने अपनी तरफ से उनका अंतिम संस्कार किया। न्याय का चक्र पूरा हो गया।

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