आपको है बीपी, शुगर और अस्थमा जैसी बीमारियां? 11% महंगी हुईं इनकी दवाइयां, जानिए कहां मिलेंगी सस्ती
1 अप्रैल से बुखार, खांसी-जुकाम, शुगर, बीपी, अस्थमा,इन्फेक्शन, हाई ब्लड प्रेशर और एनीमिया के इलाज में इस्तेमाल होने वाली दवाइयां महंगी हो गई। पैरासिटामॉल, फेनोबार्बिटोन, फिनाइटोइन सोडियम, एजिथ्रोमाइसिन, सिप्रोफ्लोक्सासिन हाइड्रोक्लोराइड और मेट्रोनिडाजोल जैसी दवाओं की कीमतें भी बढ़ गईं। इस तरह से 800 दवाइयों के दाम 11% तक बढ़ गए।
नेशनल फार्मा प्राइसिंग अथॉरिटी (NPPA) ने शेड्यूल दवाओं में 10.9 प्रतिशत दाम बढ़ने की घोषणा की है। जिन दवाओं के दाम बढ़ने की घोषणा की गई है इन्हें जरूरी दवाओं की कैटेगरी में गिना जाता है। एंटीबायोटिक्स, एंटी-इंफ्लेमेट्री ड्रग्स, कान-नाक और गले की दवाएं, एंटीसेप्टिक्स, पेन किलर, गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल मेडिसिन और एंटी फंगल दवाएं शामिल हैं।
बढ़ती दवाइयों का रेट पता करने जब हम मेडिकल स्टोर पर गए तब हमारी मुलाकात दवाई लेने आए राम कृपाल से हुई। वो बताते हैं कि उन्हें शुगर और बीपी की समस्या है और उनकी पत्नी को न्यूरो की प्रॉब्लम है जिसके चक्कर में दवाई पर ज्यादा खर्च आता है। वो दस-दस दिन की दवाई लेते जो उन्हें 700 की पड़ती हैं और उनकी पत्नी की 900 की पड़ती हैं। इस हिसाब से देखें तो दोनों की दवाई का महीने का खर्च 4800 तक चला जाता है।
वे कहते हैं कि दवाई के रेट तो हमेशा कुछ न कुछ बढ़ते रहते हैं ऐसे में 11 प्रतिशत और बढ़े तो उनको घर खर्च चलाना मुश्किल होगा।
हर महीने जैसे ही सैलरी आती है उसका एक हिस्सा ज्यादातर परिवारों में दवाइयों के लिए रख दिया जाता है। ऐसे में दवाइयों की बढ़ती कीमत के बारे में पढ़कर आप अपने बजट को लेकर चिंतित होंगे। अगर आप भी इस महीने दवाई लेने जाएं तो राम कृपाल की तरह बढ़ते दाम की टेंशन न लें। हम यहां सॉल्यूशन दे रहे हैं उसे जरूर पढ़ें, यह आपके काम की है।
800 दवाओं में ये भी शामिल हैं-
- एजिथ्रोमाइसिन – ₹120
- सिप्रोफ्लोक्सासिन – ₹41
- मैट्रोनिडाजोल – ₹22
- पैरासिटामोल- (डोलो 650) – ₹31
- फेनोबार्बिटोन – ₹19.02
- फिनाइटोइन सोडियम – ₹16.90
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अब चलिए जानते हैं कि
सस्ती दवा कहां से मिलेगी?
- कुछ मेडिकल स्टोर वाले 15% से 20% तक छूट देते हैं तो ऐसी दुकान को चुनें जो आपको ज्यादा छूट दें।
- ऑनलाइन 1mg, NetMeds, PharmEasy, LifCare, MyraMed जैसी कई वेबसाइट हैं जो दवाइयां डिस्काउंट रेट पर देती हैं। आप वहां से खरीद सकते हैं। आप इन वेबसाइट पर सस्ते विकल्प देख सकते हैं।
- मोटे फायदे के लिए आजकल डॉक्टर अपना ही मेडिकल स्टोर खोल देते हैं और बिना किसी छूट के दवाई बेचते हैं तो ऐसे में वहां से दवाई लेने से बचें।
- सरकारी अस्पताल से सस्ती दवाई ले सकते हैं।
- मेडिकल स्टोर पर भी दो तरह की दवाइयां होती है एक ब्रांडेड दवाई होती है और एक सामान्य (जेनेरिक) दवाई होती है तो आप सामान्य दवाई ले सकते हैं।
- सरकार ने सस्ती दवा के लिए हर जिले में जन औषधि केंद्र खोले हैं जिससे आप सस्ती दवाई ले सकते हैं।
सस्ती दवाई लेने का ऑप्शन जानने के बाद आपके मन में यह सवाल आ रहा होगा कि जब हम ब्रांडेड की जगह जेनेरिक दवाई लेंगे तो क्या वह सही तरह से असर करेगी?
आपके दिमाग में आने वाले ऐसे की कुछ सवालों का जवाब देने के लिए हमने डॉ. बाल कृष्ण श्रीवास्तव से बात की।
सवाल: क्या होती हैं शेड्यूल दवाई? जिसका जिक्र बार-बार खबरों में किया जाता है।
डॉ. बालकृष्ण श्रीवास्तव: उन दवाइयों को शेड्यूल दवाई कहा जाता है जिसे आप डॉक्टर की सलाह और प्रेसक्रिप्शन के बिना खरीद नहीं सकते हैं। किस मात्रा में दवाई लेनी है यह डॉक्टर ही बताते हैं। इसकी कीमत केंद्र सरकार की अनुमति के बगैर नहीं बढ़ाई जा सकती है। यानी 1 अप्रैल से दवाई के दाम 11% तक बढ़े हैं। इसकी परमिशन केंद्र सरकार से मिली है।
सवाल: कम रेट वाली दवा का कितना असर होता है?
डॉ. बालकृष्ण श्रीवास्तव: एक डॉक्टर के लिए मरीज की कांउसिलिंग सबसे जरूरी होती है। उसके बाद आप उसे सामान्य (Generic) दवा भी दे दो वह भी काम करेगी। आपको पता होना चाहिए कि ज्यादातर बड़ी कंपनी एक ही दवा को जेनेरिक भी बनाती हैं और उसे महंगी भी बनाती है। असरदार दोनों बराबर होती हैं, बस उसके साथ लाइफस्टाइल में बदलाव भी जरूरी है।
यह भी समझ लें कि जेनेरिक दवाइयों से वह बीमारी नहीं जुड़ी है जो क्रिटिकल है। इसे ऐसे समझें– किसी की कीमो थैरेपी चल रही है। तो आप उसकी दवाई के साथ अपने मन से कोई बदलाव नहीं कर सकते हैं।
सवाल: जन औषधि केंद्र का कैसे पता करें?
डॉ. बालकृष्ण श्रीवास्तव: देश में अभी तक लगभग 600 जन औषधि केंद्र खोले जा चुके हैं, ऐसे में आप गूगल सर्च करके पता कर सकते हैं आपके घर के पास कौन सा जन औषधि केंद्र है। यह जन औषधि अभियान सरकार ने पब्लिक को अवेयर करने के लिए शुरू किया है। इसका मकसद लोगों को समझाना है कि जेनेरिक मेडिसिन कम प्राइस में मिलती है, लेकिन इसमें क्वालिटी से कोई समझौता नहीं किया जाता।
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सवाल: इसके अलावा भी कहीं से सस्ती दवा मिल सकती है?
डॉ. बालकृष्ण श्रीवास्तव: हां बिल्कुल आज कल काफी एनजीओ भी इस तरह का काम कर रहे हैं। ये NGO फ्री में दवाई दिलाने में मदद करती है। आप अपने शहर में ऐसे NGO की तलाश कर सकते हैं। इसके साथ ही Indiamart, 1 mg ऐसी कई वेबसाइट भी हैं जो सस्ते में दवाई बेचती हैं।
सारी जानकारी मिलने के बाद भी आपके मन में एक सवाल अभी भी आ रहा होगा वह यह कि आखिर ये नेशनल फार्मा प्राइसिंग अथॉरिटी (NPPA) क्या है?
क्या है नेशनल फार्मा प्राइसिंग अथॉरिटी (NPPA)?
राष्ट्रीय औषधि उत्पाद मूल्य प्राधिकरण (National Pharmaceutical Pricing Authority-NPPA) को 29 अगस्त, 1997 में स्थापित की गई थी। यह फार्मास्युटिकल दवाओं की कीमतों को नियंत्रित करती है। यह औषधि उत्पाद विभाग (DoP), Ministry of Chemical Products and Fertilizers के अधीन स्वतंत्र कार्यालय के रूप में काम करता है।
चलते-चलते बताते हैं कि दवाई का रेट आखिर क्यों बढ़ा?
रॉ मटेरियल महंगा होने की वजह से नॉन शेड्यूल दवाई जिसका रेट तय करना सरकार के हाथ में नहीं होता वो पहले से ही महंगी हैं। जो शेड्यूल दवाइयां होती हैं इसका रेट सरकार होल सेल प्राइस इंडेक्स के आधार पर तय करती है। शेड्यूल दवाइयों के रेट पर सरकार का कंट्रोल होता है। पिछली साल का होल सेल प्राइस इंडेक्स 10.7 था। इस वजह से इस बार 800 दवाइयों पर 10% से 12% तक की बढ़ोत्तरी की गई। सरकार जो रेट तय करती है वह एक साल तक ही फिक्स रहता है।