आपका बच्चा चिंता करता है? इसे बचपना न समझें, जानिए कैसे पता चलेगा कि बच्चा चिंतित है या नहीं
चिंता, यह शब्द जितना छोटा है उससे कहीं ज्यादा ही खतरनाक। चिंता की वजह से कई बार लोगों की जान भी चली जाती है। माता-पिता, पति-पत्नी, बूढ़े-बुजुर्ग, इन लोगों को चिंता तो होती ही है, लेकिन क्या आपने बच्चों को चिंता करते सुना है?
कई बार बच्चे आपसे कहते भी है कि मैं कुछ सोच रहा था, फलां बात को लेकर दुखी हूं या फिर मुझे चिंता हो रही है अपने किसी दोस्त की। यह सब बातें सुनकर आप हंसते हैं और उसे अनदेखा भी कर देते हैं।
एक पेरेंट के तौर पर आपको यह बात गंभीरता से लेने की जरूरत है, क्योंकि बुजुर्गों में होने वाली चिंता अब बच्चों में भी दिखने लगी है। पहली बार अमेरिकी विशेषज्ञों की टास्क फोर्स ने 8-18 साल के बच्चों के बिगड़ते मेंटल हेल्थ को देखते हुए उनकी स्थिति जांचने की बात सामने रखी है। जिससे बच्चे अपनी उम्र की तरह व्यवहार करें और उनका बचपन न खत्म हो।
चिंता में बीत रहा है बचपन
बाल मनोवैज्ञानिक और मेयो क्लिनिक में पीडियाट्रिक एंग्जाइटी डिसऑर्डर्स क्लिनिक के डायरेक्टर स्टीफन पीएच व्हाइटसाइड के अनुसार, बच्चों में चिंता बचपन की सबसे आम मानसिक गड़बड़ी बनकर सामने आई है। इसके लिए हमें जल्द से जल्द जांच करनी होगी। ज्यादातर बच्चों को मानसिक स्वास्थ्य देखभाल की जरूरत है, जो उन्हें इस समय मिल नहीं रही। कोरोना ने इस समस्या को बढ़ा दिया है।
बच्चों में लक्षण नहीं होने पर भी जांच की जाएगी
जी हां, अमेरिकी टास्ट फोर्स ने सिफारिश की है कि बच्चों में लक्षण दिखें या नहीं दिखें, हर बच्चे के मेंटल हेल्थ की जांच करनी चाहिए। टास्क फोर्स की मेंबर मार्था कुबिक के अनुसार, बच्चों का जीवन अस्त-व्यस्त हो, उससे पहले हमें पेरेंट के तौर पर उसमें दखल देना होगा।
चिंता की वजह से बच्चे नशा कर सकते हैं
चाइल्ड माइंड इंस्टीट्यूट की एक रिपोर्ट के मुताबिक, बच्चे अगर बचपन से चिंता करने लगते हैं तो आगे चलकर वो डिप्रेशन में जा सकता हैं। इतना ही नहीं इससे उसे नशे की लत भी लग सकती है।
अब बात करते हैं भारतीय बच्चों के बारे में-
स्टेट ऑफ द वर्ल्ड चिल्ड्रन 2021 की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में हर 7 में से एक बच्चा डिप्रेशन का शिकार है। वहीं इंडियन जर्नल ऑफ साइकेट्री की 2019 की रिपोर्ट के अनुसार, देश में कोरोना महामारी से पहले भी करीब 5 करोड़ बच्चों में कोई न कोई मानसिक बीमारी रही है। इनमें से करीब 90% बच्चों या उनके माता-पिता ने इलाज के बारे मे सोचा तक नहीं।
अगर बच्चा चिंता कर रहा है तो माता-पिता को क्या करना चाहिए?
फोर्टिस हॉस्पिटल के मेंटल हेल्थ और बिहेवियरल सांइस के डायरेक्टर डॉ. समीर पारीख कहते हैं– अगर बच्चों में चिंता के लक्षण दिख रहे हैं तो उसे हल्के में लेना छोड़ना होगा। पेरेंट को बच्चों की बात को गंभीरता से सुनना होगा। अगर बच्चा कुछ कहना चाह रहा है तो उसे नजरअंदाज न करें।
इसी तरह अगर बच्चे के व्यवहार में कोई बदलाव दिख रहा है तब भी उसे गंभीरता से लें, उससे बात करें। अगर बच्चा ज्यादा चिंता में है तो माता-पिता को पीडियाट्रिक (बाल रोग विशेषज्ञ) या किसी दूसरे प्राइमरी देखभाल वाले डॉक्टर से बात करनी चाहिए। क्योंकि लगातार चिंता करने से बच्चा किसी डिसऑर्डर का शिकार हो सकता है।
बच्चों में चिंता का क्या कारण है?
डॉक्टर प्रितेश गौतम के अनुसार कई ऐसी बातें हैं, जो आपको दिखने में छोटी लगती हैं, लेकिन बच्चों के कोमल मन-मस्तिष्क में गहरा असर छोड़ जाती हैं। इनमें से कुछ ऐसी बाते भी हैं-
- माता-पिता का बच्चों को समय न दे पाना
- क्लास में कम मार्क्स लाने का डर सताना
- पेरेंट्स का झगड़ा और अलग होने का डर
- घर का नेगेटिव माहौल रहना
- बच्चों को बार-बार डांटना या मारना
एक और स्टडी में हुआ ये खुलासा
दुनियाभर में की गई एक स्टडी के अनुसार, डिप्रेशन के शुरुआती लक्षण 17 साल की उम्र में दिखाई देते हैं, लेकिन इन दिनों डिप्रेशन की पहचान शुरुआती उम्र में ही समझ आने लगी है। ज्यादा से ज्यादा जांच करने की वजह से ये चीजें समझ आ रही है।
बच्चे के लिए कंस्ट्रक्टिव काम करें
फोर्टिस एस्कॉर्ट्स इंस्टीटय़ूट एंड रिसर्च सेंटर, दिल्ली में सीनियर क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट डॉ. भावना बर्मी चिंता के बारे में कहती हैं कि अगर अपना समय थोड़ा क्रिएटिव काम में लगा लिया जाए तो काफी हद तक चिंता दूर हो सकती है।
इसलिए पॉजिटिव बातों को ज्यादा जगह दें और नेगेटिव को दूर कर दें। बच्चों को…
- सुबह जल्दी उठाएं
- मेडिटेशन करवाएं।
- घर का खाना खिलाएं।
- खाने में जूस जरूर दें।
- पढ़ाई का ज्यादा प्रेशर न दें।
- डांस या म्यूजिक जैसी एक्टिविटी करवाएं।