गंगोत्री धाम से भास्कर की ग्राउंड रिपोर्ट:गंगोत्री-यमुनोत्री धाम के कपाट खुले; श्रद्धालुओं की संख्या पर से पाबंदी हटी

गंगोत्री और यमुनोत्री धाम के कपाट मंगलवार को पूरे विधि विधान के साथ श्रद्धालुओं के लिए खोल दिए गए। इसके साथ ही चार धाम यात्रा शुरू हो गई। इस मौके पर गंगोत्री धाम में CM पुष्कर सिंह धामी भी पहुंचे और पूजा में शामिल हुए। कपाट खुलने के बाद CM धामी ने सबसे पहले PM नरेंद्र मोदी के नाम की पूजा की। इस मौके पर धामी ने कहा कि यात्रा को लेकर कोई संख्या निर्धारित नहीं की गई है। अगर यात्री अधिक संख्या में आते हैं तो उसके बाद कोई निर्णय लिया जाएगा। पिछले दिनों शासन की ओर से यात्रियों की संख्या निर्धारण के आदेश जारी किए गए थे।

इससे पहले, तमाम तैयारियों के बीच मां गंगा के शीतकालीन प्रवास भैरो घाटी स्थित मुखबा गांव से मंगलवार सुबह 8.20 बजे मां गंगा की उत्सव डोली विधि विधान के साथ गंगोत्री धाम पहुंची। इस दौरान हर-हर गंगे, जय मां गंगे के जयकारों से पूरा माहौल भक्तिमय हो उठा।

उत्तराखंड के CM पुष्कर सिंह धामी ने गंगोत्री धाम पहुंच कर पूजा में हिस्सा लिया।
उत्तराखंड के CM पुष्कर सिंह धामी ने गंगोत्री धाम पहुंच कर पूजा में हिस्सा लिया।

गंगोत्री धाम में आर्मी बैंड की धुन पर पारंपरिक वाद्य यंत्रों के साथ सैकड़ों की संख्या में भक्तों की मौजूदगी में मां गंगा की उत्सव डोली पहुंचने के दौरान श्रद्धालु भावुक हो गए।

मौसम ने भी श्रद्धालुओं का पूरा साथ दिया। धूप खिली हुई है, जिससे ठंड का अहसास कम हो गया है। बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं ने भागीरथी नदी में स्नान किया और धाम में पूजा की तैयारियों में जुट गए। कतारों में श्रद्धालु मां गंगा की पूजा के लिए अपनी बारी का इंतजार करते देखे गए।

मां गंगा की डोली सुबह भैरो घाटी स्थित गांव मुखबा से गंगोत्री धाम लाई गई।
मां गंगा की डोली सुबह भैरो घाटी स्थित गांव मुखबा से गंगोत्री धाम लाई गई।
मां गंगा की डोली लेकर मुखबा गांव से गंगोत्री धाम पहुंचे श्रद्धालु।
मां गंगा की डोली लेकर मुखबा गांव से गंगोत्री धाम पहुंचे श्रद्धालु।
कपाट खोले जाने से पहले गंगोत्री धाम के बाहर विधि विधान से अनुष्ठान किए गए।
कपाट खोले जाने से पहले गंगोत्री धाम के बाहर विधि विधान से अनुष्ठान किए गए।

यमुनोत्री धाम के कपाट भी खुले

आज ही दोपहर 12.15 बजे यमुनोत्री धाम के कपाट भी खुल गए। मां यमुना के मायके खरसाली से उनकी उत्सव डोली यमुनोत्री धाम पहुंची। यमुनोत्री धाम में भी पहली पूजा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम की हुई। स्थानीय पारंपरिक वाद्ययंत्रों के साथ मां की डोली को उनके भाई शनिदेव समेश्वर देवता की डोली भी विदा करने निकली। भाई शनिदेव और मायकेवासियों ने मां यमुना को विदा किया।

केदारनाथ धाम के कपाट 6 मई को और बद्रीनाथ धाम के कपाट 8 मई को खुलेंगे।

चार धाम यात्रा की पहली कड़ी में आपने यात्रा की तैयारियों से जुड़ी रिपोर्ट पढ़ी।दूसरी कड़ी में दैनिक भास्कर की टीम ने ऋषिकेश से गंगोत्री तक की यात्रा की। पढ़िए हमारी खास रिपोर्ट…

गंगोत्री रूट पर बीते दिनों 440 मीटर लंबी चंबा टनल बनाई गई है। श्रद्धालुओं के लिए यह सेल्फी पॉइंट बन गया है।
गंगोत्री रूट पर बीते दिनों 440 मीटर लंबी चंबा टनल बनाई गई है। श्रद्धालुओं के लिए यह सेल्फी पॉइंट बन गया है।

हम ऋषिकेश से गंगोत्री के लिए सुबह ही निकल पड़े। शहर के जाम से जूझते हुए हम बाहर निकले। शहर से निकलते ही डबल लेन की अच्छी सड़कें और खूबसूरत वादियों ने हमारा स्वागत किया। करीब सवा दो घंटे बाद हम चंबा टनल पहुंचे।

ऑल वेदर प्रोजेक्ट के तहत चंबा में कुछ समय पहले ही ये शानदार टनल खोली गई है। इस टनल के खुल जाने से यहां लगने वाले जाम से लोगों को निजात मिल गई है। यहां रुक कर लोग सेल्फी लेते नजर आए।

लैंडस्लाइड का मलबा हटाने का काम जारी
टनल पार करने के कुछ देर बाद ही हमारा सामना डेंजर जोन से हुआ। पिछले मानसून में उत्तराखंड में जगह-जगह लैंडस्लाइड हुई थी, बड़े-बड़े पत्थर सड़कों पर आ गिरे थे। उनका मलबा अब तक यहां मौजूद है। रास्ते में बड़े-बड़े पत्थरों को हटाने का काम अब भी चल ही रहा है।

चंबा से धरासू बैंड के बीच लगभग 80 किलोमीटर की सड़क काफी खराब हालत में है। जगह-जगह JCB से मलबा हटाने का काम जारी है। इसके चलते बीच-बीच में कई जगहों पर जाम लग जाता है।

चंबा टनल खत्म होते ही डेंजर जोन शुरू हो जाते हैं। धरासू तक रास्ते में बड़े-बड़े पत्थर पड़े हुए हैं। रोड भी खराब होने से सफर में लंबा समय लग रहा है।
चंबा टनल खत्म होते ही डेंजर जोन शुरू हो जाते हैं। धरासू तक रास्ते में बड़े-बड़े पत्थर पड़े हुए हैं। रोड भी खराब होने से सफर में लंबा समय लग रहा है।

यहां दो तरफ से खतरा है। पहाड़ों से अब भी पत्थर गिरने की घटनाएं होती रहती हैं। वहीं, दूसरी तरफ गहरी खाई है। आगे चलने वाली गाड़ियों से धूल का गुबार बन जाता है और सामने कुछ दिखाई नहीं देता। इससे हादसे का खतरा बना रहता है।

इस रोड पर आप 35 की रफ्तार से तेज नहीं चल पाएंगे। चंबा से धरासू के बीच 15 से ज्यादा डेंजर जोन पड़ते हैं।

कंसीसौंड़ के पास रोमलगांव धार में भूस्खलन जोन है। चिन्यालीसौंड़ में नगुण के पास दूसरा बड़ा डेंजर जोन है। सरकार का दावा था कि यात्रा शुरू होने से पहले मलबा हटा लिया जाएगा, लेकिन ये काम अब भी जारी है।

धरासू से अलग होते हैं गंगोत्री-यमुनोत्री के रास्ते
हम सुबह 7 बजे चले और दोपहर करीब 1 बजे धरासू पहुंचे। ये वो जगह है जहां से यमुनोत्री और गंगोत्री के लिए रास्ते अलग होते हैं। यहीं एक ढाबे पर हमने लंच किया। ढाबे वाले ने हमें बताया कि कोरोना की वजह से दो साल बहुत बुरे बीते। हम बरबाद हो गए। अब लोग फिर से आने लगे हैं तो उम्मीद बंधी है। बीते दो साल में जो नुकसान हमें हुआ है, उसकी भरपाई आसान नहीं है। बस कोरोना फिर से न आए।

धधकने लगे हैं जंगल, हर तरफ धुआं ही धुआं

उत्तराखंड के जंगलों में एक दिन में आग लगने की 55 घटनाएं सामने आई हैं।
उत्तराखंड के जंगलों में एक दिन में आग लगने की 55 घटनाएं सामने आई हैं।

ऋषिकेश से ऊपर बढ़ते ही हमारा सामना जंगलों में लगी आग से हुआ। गर्मी में सूखी हवाओं और बढ़ती तपिश की वजह से जंगलों में आग लगने की घटनाएं तेजी से बढ़ी हैं। कई दिनों तक इन पर काबू नहीं पाया जा सका है।

धरासू बैंड से हम आगे बढ़े तो उत्तरकाशी तक हल्की गर्मी महसूस हुई। उत्तरकाशी के बाद गंगोत्री तक सिंगल लेन रोड ही है। भटवाड़ी के बाद मौसम में ठंड का अहसास होने लगा। यहां बादल आपके करीब दिखते हैं। उनके बीच से गुजरना अलग ही रोमांच पैदा करता है।

साढ़े तीन बजे हम भटवाड़ी पहुंचे। वहां चाय की चार-पांच दुकानें मिलीं, जिन पर ज्यादा चहल-पहल नहीं थी। कुछ स्थानीय लोग ही थे, जो चाय पी रहे थे और बातें कर रहे थे।

ऋषिकेश से 10 घंटे में गंगोत्री
शाम लगभग 5 बजे हम गंगोत्री पहुंचे। यहां सभी लोग स्वेटर, जैकेट और टोपी में नजर आ रहे थे। तापमान 5-6 डिग्री के आसपास था। गंगोत्री धाम के मुख्य गेट के बाहर ही लोगों ने गाड़ियां पार्क कर रखी थीं। वहां सड़क मरम्मत का काम चल रहा था।

यहां एक छोटा सा बाजार है, जिसमें हर तरह की दुकानें हैं। उसी बाजार में आपको ठहरने के लिए होटल भी मिलते हैं। ज्यादा चहल-पहल नहीं होने से अभी ज्यादातर होटल खाली पड़े हैं। यहां रात में गलनभरी ठंड है। देशभर में बिजली कटौती का असर यहां भी दिख रहा है। पिछले कई दिनों से दिन में बिजली कटती है।

गंगोत्री धाम से निकलती हैं दो नदियां
गंगोत्री से दो नदियां निकलती हैं। एक, गोमुख से निकलने वाली भागीरथी नदी और दूसरी केदार गंगा, जिसका उद्गम क्षेत्र केदारताल है। गंगोत्री धाम से करीब 300 मीटर आगे जाकर केदार गंगा भागीरथी नदी में मिल जाती है।

गंगोत्री के पास ही केदार ताल है, जहां से केदार गंगा निकलती है। ये नदी गंगोत्री से 300 मीटर आगे भागीरथी में मिल जाती है।
गंगोत्री के पास ही केदार ताल है, जहां से केदार गंगा निकलती है। ये नदी गंगोत्री से 300 मीटर आगे भागीरथी में मिल जाती है।

सवाई मान सिंह ने बनवाया था गंगोत्री मंदिर
गंगोत्री धाम के निर्माण की शुरुआत नेपाल के एक राजा ने की थी, लेकिन स्थानीय पुजारियों के विरोध की वजह से उन्हें हाथ खींचना पड़ा। मंदिर के पुजारी रहे मनोहर सेमवाल ने बताया 18वीं सदी में नेपाल से आए कुछ आक्रांता उत्तराखंड के इलाके में लूटपाट करते थे। इस वजह से लोगों ने नेपाल के राजा का विरोध किया। आगे चलकर जयपुर के राजा सवाई मान सिंह ने गंगोत्री धाम का निर्माण पूरा कराया था। उसके बाद टिहरी के राजा ने भी मंदिर निर्माण में मदद की थी।

भगीरथ की तपस्थली : गंगोत्री मंदिर के ठीक सामने राजा भगीरथ की तपोस्थली है। यहां भगीरथ ने तपस्या करके गंगा को स्वर्ग से धरती पर उतारा था।

गौरी कुंड : गौरी कुंड को लेकर ये मान्यता है कि राजा भगीरथ की कड़ी तपस्या के बाद मां गंगा धरती पर आईं, लेक‌िन यहां गंगा खुद भगवान श‌िव की पर‌िक्रमा करती हैं।

सूर्य कुंड: गौरी कुंड के बगल में ही सूर्य कुंड है। सूर्य की किरणें सबसे पहले यहीं पड़ती है। इसलिए यहां का नाम सूर्य कुंड पड़ा।

पांडव गुफा : मान्यता है कि महाभारत काल में पांडवों ने अपने पितरों के उद्धार के लिए चार धाम की यात्रा की थी। इसी यात्रा के दौरान एक गुफा में उन्होंने विश्राम किया था। तभी से इस गुफा का नाम पांडव गुफा पड़ गया। ये गंगोत्री मंदिर से दो किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।

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