नोएडा प्राधिकरण की अजीबोगरीब नीतियां … बिना मुआवजा दिए ही जमीनों पर बना दिए मॉल, बस टर्मिनल; अब अदालतों से लग रही फटकार
नोएडा प्राधिकरण के अजीबोगरीब मामले सामने आ रहे हैं। जिसमें प्राधिकरण को ये ही नहीं पता कि किसान की जमीन गई कहां। जबकि खुद ही प्राधिकरण ने कागजों में उस जमीन को अधिग्रहण किया है। हैं ना चौंकाने वाली बात। इसका खुलासा अब अदालत के आदेश के बाद हो रहा है। ऐसे एक या दो मामले नहीं, बल्कि 12 केस हैं। जो प्राधिकरण की मुश्किलों को और बढ़ा रहे हैं। जिनकी फाइलें भूलेख विभाग में ही हैं।
आइए आपको पढ़वाते हैं प्राधिकरण को कहां-कहां जमीन खोजने पर भी नहीं मिल रही..
केस 1 : जब तक जमीन ढूंढी, तब तक मॉल तैयार हो गया
सुप्रीम कोर्ट ने नोएडा प्राधिकरण को एक भूमि मालिक को लगभग 100 करोड़ का मुआवजा के भुगतान करने का निर्देश दिया है। मोहलत छह सप्ताह का दिया है। याचिका कर्ता रेड्डी विरन्ना ने 1997 में छलेरा बांगर गांव में 2.18 बीघा (7400 वर्ग मीटर) जमीन एक करोड़ में खरीदी थी। एक साल पहले इलाहाबाद हाईकोर्ट ने भी जमीन मालिक के पक्ष में फैसला सुनाया था।
हालांकि मुआवजे की राशि कम थी। इसलिए याचिका कर्ता ने सुप्रीम कोर्ट में केस फाइल किया। इससे पहले अंतरिम आदेश के अनुसार 2008 में एक राजस्व निरीक्षक ने साइट का दौरा किया। लेकिन, इस भूमि का सीमांकन नहीं किया जा सका। क्योंकि, तब तक भूमि विकसित हो चुकी थी। यहां एक आलीशान मॉल बन चुका था।
केस 2 : जमीन पर तैयार हो गया 157 करोड़ का सिटी बस टर्मिनल
नोएडा के सेक्टर-82 में प्राधिकरण ने 30 नवंबर 1989 और 16 जून 1990 को अर्जेंसी क्लोज के तहत भूमि अधिग्रहण किया था। जिसे जमीन की मालकिन मनोरमा कुच्छल ने चुनौती दी थी। वर्ष 1990 में दायर मनोरमा की याचिकाओं पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 19 दिसंबर 2016 को फैसला सुनाया था। 1990 में ही याचिका कर्ता की जमीन को प्राधिकरण ने अपने कब्जे में ले लिया था। उस पर निर्माण भी कर दिया गया है। यह पूरी तरह अवैध गतिविधियां हैं।
जमीन का उचित मुआवजा दिए बिना संपत्ति में बदलाव कर देना अवैधानिक है। यह उनके साथ अन्याय हुआ है। बता दें इस जमीन पर 157 करोड़ की लागत से सिटी बस टर्मिनल बन चुका है और इसे परिवहन निगम ने लेने से इंकार कर दिया। इसी मामले में नोएडा प्राधिकरण की सीईओ रितु माहेश्वरी को एनबीडब्ल्यू जारी की गई है।
अलग-अलग अदालतों में चल रहे 3700 मुकदमे
प्राधिकरण पर जिला न्यायालय से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक में 3700 मुकदमे चल रहे हैं। हर साल 500 नए मुकदमे जुड़ रहे हैं। जिनमें से हर रोज 40-50 मुकदमों में अलग-अलग न्यायालय में सुनवाई होती है। इनमें से काफी केस 20 से 30 साल पुराने तक भी हैं।
इन मामलों में लग चुकी फटकार
सुपरटेक एमरॉल्ड कोर्ट परिसर में बने टि्वन टावर मामले में नोएडा प्राधिकरण के खिलाफ भ्रष्टाचार को लेकर सख्त टिप्पणी की थी। इसमें लापरवाही मिलने पर सीईओ ने संबंधित वकील को नोटिस जारी किया था। इससे पहले यूनिटेक के सेक्टर-113 स्थित भूखंड आवंटन निरस्त करने के मामले में भी मामला उल्टा पड़ गया।