जयंत खासमखास, डिंपल का पत्ता साफ ..
2017 के विधानसभा चुनाव में महज एक सीट जीतने वाले जयंत 2022 में 8 सीटें कैसे जीत गए? इसके पीछे एक लकी नंबर है 4, आज उसी की कहानी…
तारीख: 4 अक्टूबर 2020
दिन: रविवार
पता: बूलगढ़ी गांव, हाथरस
भरी दोपहरी, गांव के बीचो-बीच वाले घर से निकलती चीखें। चारों ओर पुलिस का जमावड़ा और मीडिया। गैंगरेप पीड़िता की मां के आंसू पोछते हुए एक नौजवान ने कहा, “मां, चुप हो जाइए, हम सरकार से आपके हर आंसुओं का जवाब मांगेंगे।” नौजवान को भी कुछ लाठियां पड़ी थीं। पुलिस उसे गांव में नहीं आने दे रही थी, लेकिन वो पुलिस को धक्का देकर पहुंच गया था। इस नौजवान का नाम है, जयंत चौधरी।
फिर…
तारीख: 4 अक्टूबर 2021
दिन: सोमवार
पता: तिकोनिया, लखीमपुर खीरी
फिर जयंत को पुलिस ने घेरा था।जयंत को एक गांव जाना था और एक बार फिर जयंत ने पुलिस को चकमा दिया। तिकोनिया गांव के उस 18 साल के लवप्रीत सिंह के घरवालों के पास पहुंच गए, जिसे लखीमपुर खीरी हिंसा में मारा गया था। लवप्रीत के परिजनों से बात करते हुए जयंत रो पड़े। आठ दिन बाद जयंत फिर लोगों के बीच थे। उन्होंने बोलना शुरू किया, ‘हमें लखीमपुर खीरी हिंसा में शहीद हुए किसानों के नाम याद रखने होंगे। अपने वोटों से इस अत्याचार का बदला लिया जाएगा।’
जयंत को इन घटनाओं ने दो बातें सिखाईं…
पहली: लोगों को हक दिलाने के लिए आखिरी लम्हे तक लड़ते रहना।
दूसरी: किसी भी कीमत पर अपनी बात से पीछे न हटना।
आरएलडी के सियासी भविष्य पर संकट आया तो जयंत बन गए बड़े चौधरी
4 अक्टूबर 2020 से 4 अक्टूबर 2021 तक आरएलडी की राजनीति में एक बड़ा बदलाव हुआ। 6 मई 2021 में आरएलडी अध्यक्ष चौधरी अजित सिंह नहीं रहे। तब जयंत पार्टी के उपाध्यक्ष थे। लेकिन 18 दिन बाद उन्हें पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में राष्ट्रीय अध्यक्ष चुना गया।
बात 20 सितंबर 2021 की है। जयंत भीड़ के बीचो-बीच थे। चेहरे पर चमक थी। यूपी, हरियाणा, दिल्ली और राजस्थान की 40 खाप पंचायत के प्रमुख छपरौली में इकट्ठा हुए थे। सभी ने तय किया कि चौधरी चरण सिंह और चौधरी अजित सिंह की तरह ही समुदाय का नया चौधरी… एक नौजवान चेहरा… जयंत होगा।
आते ही बनाई 3 स्ट्रेटेजीः सिर्फ जाटों की पार्टी का ठप्पा हटाया, सोशल एंगेजमेंट बढ़ाया
लंदन से पॉलिटिक्स में एमएससी करके आए जयंत ने सबसे पहले 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव की गलतियां सुधारनी शुरू कीं। इसमें जयंत की 3 स्ट्रेटेजी अब तक कामयाब नजर आ रही हैं। इसके बारे में हमने आरएलडी के एससी-एसटी सेल के अध्यक्ष प्रशांत कनौजिया से बात की। आइए जानते हैं…
- न्याय यात्रा: जयंत चौधरी के आरएलडी अध्यक्ष बनने के बाद पार्टी ने सोशल इंगेजमेंट पर फोकस किया। सबसे पहले पार्टी ने नोएडा से आगरा तक 63 दिन लंबी ‘न्याय यात्रा’ शुरू की। इसमें हमने गांव-गांव जाकर जाट और दलित समुदाय के लोगों से बात की। उनके मुद्दे जाने। इससे हमारी सोशल रीच बहुत बढ़ गई।
- बहुजन-उदय अभियान: RLD ने यह अभियान केवल वोट लेने के नहीं चलाया। इसका मकसद था बहुजन समाज के लोगों को पार्टी में पदाधिकारी के तौर पर जोड़ना। पार्टी के उपाध्यक्ष शाहिद सिद्दीकी हैं और दलित समुदाय से आए मुंशीराम पार्टी के महासचिव हैं। इससे लोगों के बीच पार्टी की छवि बनी है कि आरएलडी केवल जाटों की पार्टी नहीं है।
- लोक संकल्प यात्रा: इस यात्रा में हमने यूपी में अनुसूचित जाति के लोगों, किसानों और महिलाओं के बीच जाकर उनकी बात सुनी। इसका मकसद था जनता के मुद्दों से पार्टी का घोषणापत्र तैयार करना। कनौजिया की बात सुनकर एक बात तो साफ है कि पार्टी ने में सोशल एंगेजमेंट पर काफी काम किया।
1500 लोगों की डिजिटल टीम ने यूपी विधानसभा में RLD का ग्राफ 1 से 8 सीटों तक पहुंचाया
आरएलडी के पास 1500 लोगों की डिजिटल टीम है। ये जनता के मुद्दे, पार्टी के अभियान, दूसरी पार्टी के फैसले गए झूठ और फेक न्यूज को रोकने पर काम करती है। हमारे पास पश्चिमी यूपी की हर विधानसभा सीट पर 100 कार्यकर्ताओं की टीम है। डिजिटल वर्ल्ड में अच्छी पहुंच के चलते RLD को विधानसभा चुनाव में 8 सीटों पर जीत मिली। जबकि 2017 में RLD को महज 1 सीट पर जीत मिली थी।
जयंत का साथ छूटने की थी खबर
लखनऊ के वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक विवेक गुप्ता कहते हैं, “यूपी विधानसभा चुनाव 2022 के रिजल्ट आने के बाद से अखिलेश और जयंत के बीच बातचीत का कम हो गई थी। आजम खान की नाराजगी सामने आने के बाद जयंत ने रामपुर पहुंचकर उनके परिवार से मुलाकात की तो सवाल उठा कि क्या आजम खान जयंत चौधरी के साथ जाएंगे। लेकिन जयंत चौधरी गठबंधन का हिस्सा बने रहे।”
विवेक कहते हैं, “अखिलेश जानते हैं कि जयंत को साथ लेकर वे 2024 की लड़ाई में जाट और मुसलमान वोटरों को साध सकते हैं। इसलिए उन्होंने आखिरी वक्त में डिंपल यादव की जगह जयंत को राज्यसभा भेज दिया।”