पथराव की भाषा काबिले बर्दाश्त नहीं

पथराव की भाषा काबिले बर्दाश्त नही

जिस तरह से भाजपा की बर्खास्तशुदा प्रवक्ता नूपुर शर्मा का बयान काबिले बर्दाश्त नहीं था उसी तरह जुमे के रोज देश के विभिन्न शहरों में हुयी पथराव और आगजनी की वारदातें भी काबिले बर्दाश्त नहीं कही जा सकतीं .क्रिया की प्रतिक्रिया के जो तरीके इस्तेमाल किये गए उससे केवल और केवल मजहब और इंसानियत दोनों का अपमान हुआ है .
हम उन लेखकों की जमात से हैं जो देश में हर कीमत पर अमन के पक्षधर हैं और चाहते हैं कि देश में सैकड़ों साल पुरानी गंगा-जमुनी तहजीब सुरक्षित बनी रहे ,लेकिन लगता है कि कुछ लोग हैं जो इसके खिलाफ हैं. वे नहीं चाहते कि देश में शांति रहे ,लोग सद्भाव से रहें .जाहिर है कि ऐसे लोग दोनों तरफ हैं और अपने-अपने तरीके से अपने मकसद को हासिल करने का प्रयास कर रहे हैं .सत्तारूढ़ भाजपा जिस तरह अल्पसंख्यकों को किनारे लगा रही है उसी तरह अल्पसंख्यकों में कुछ लोग हैं जो चाहते हैं कि नफरत का रंग और गहरा हो ,अन्यथा क्या जरूरत थी जुमे के दिन नमाज के बाद जगह-जगह पथराव और आगजनी करने की ?
जहाँ तक मेरा अपना स्वाध्याय है उसके हिसाब से दुनिया का कोई मजहब,कोई ईश्वर,कोई पैगंबर अमन के खिलाफ काम करने का निर्देश नहीं देता. किस पवित्र किताब में ऐसा कोई सूरा,श्लोक,नहीं है जो कहता हो कि इबादत के बाद बाहर निकलो तो अपने ही लोगों पर पत्थर बरसाओ .ऐसा सबक सीखने वाले न सिर्फ अपने मजहब के खिलाफ बल्कि पूरी इंसानियत के खिलाफ अपराध कर रहे हैं .जब नूपुर शर्मा के खिलाफ जाब्ता फौजदारी की धाराओं के तहत मामले दर्ज हो गए हैं तब पथराव कर आप क्या दिखाना चाहते हैं. बेहतर होता कि जुमे की नमाज के बाद आरोपियों की गिरफ्तारी के लिए कोई रोजा रखता .लेकिन ऐसा नहीं हुआ.ऐसा हो सकता है लेकिन कोई पहल तो करे .
देश में गांधीवाद किसी हिन्दू या मुसलमान का दर्शन नहीं है .गांधी के रास्ते पर चलकर जब देश अंग्रेजों को विदा कर सकता है तो क्या छोटे-मोटे मसलों को बैठकर नहीं सुलझा सकता ? एक बार गांधी को आजमाकर तो देखिये .सत्याग्रह करके तो देखिये .सत्याग्रह करने पर किसी देश में कोई बुलडोजर नहीं चलाया जाता .आप भूल जाते हैं कि आपका मुल्क चीन नहीं ,भारत है जहां आपको सब तरह की आजादी है,निजता का अधिकार है,अधिकारों की रक्षा करने वाला संविधान है. अदालतें हैं ,वकील हैं ,अमन पसंद लोग हैं ,भले ही उन्हें नकली धर्मनिरपेक्षतावादी या अर्बन नक्सली कहा जाता हो .जब इतना सब है तो आपके हाथों में पत्थर क्यों हैं ?
घाटी में पथराव अलगाववादियों का एक औजार हो सकता है लेकिन आप तो घाटी में नहीं मैदान में रह रहे हैं .यहां आप अलगाववादी असलहे का इस्तेमाल क्यों कर रहे हैं ? आपको किसने समझाया है कि पथराव से आपकी फतह हो जाएगी,आपकी मांगे मान ली जायेंगीं ?ऐसा न हुआ है और न होगा .क़ानून के राज में क़ानून के तहत व्यवहार किये बिना आप इन्साफ की उम्मीद कर ही नहीं सकते .आज जिस तरह से देश के अलग-अलग हिस्सों में पथराव और आगजनी की वारदातें हुईं हैं उससे लगता है कि इसके पीछे एक साजिश है .यदि सचमुच ये साजिश है तो ये आपके खिलाफ ही जाएगी .आपको तस्लीम कर लेना चाहिए कि हिंसा से कुछ हासिल होने वाला नहीं है .
देश में सबका साथ,सबका विकास का नारा भले ही आभासी हो लेकिन ऐसा करने के लिए अपने ही लोगों और अपनी ही सरकार के खिलाफ हिंसा का रास्ता अख्त्यार नहीं किया जा सकता ,हमारे पास हिंसा से भी बड़ा और अमोघ माने जाने वाला अस्त्र ‘ वोट ‘ का है .आप इसका इस्तेमाल करना सीखिये,आपको जनादेश की ताकत का अहसास करने के बजाव पथराव की ताकत का अहसास कराया जा रहा है जो अपने पांवों पर कुल्हाड़ी मारने जैसा है .ऐसी कोशिशों से सरकार तो अपने ढंग से पार पा ही लेगी लेकिन समाज में जो खाई गहराएगी उसे पाट पाना आसान काम नहीं होगा .
हकीकत से दूर भागने के बजाय उसे समझने की जरूरत है. यदि कोई आपके खिलाफ कांटे बो रहा है तो आप उसके लिए फूल बिछाकर तो देखिये ,एक न एक दिन नजारा बदल जाएगा .आपको अब कोई ताकत पाकिस्तान भेजने वाली नहीं है. आपके लिए अब देश दोबारा बटने वाला भी नहीं है.,क्योंकि अब 75 साल पीछे जाने का कोई सवाल ही नहीं उठता .अब आपको इसी मिटटी में अपना खून-पसीना एक करना है. मिलकर मुल्क बनाना है ,कोई औबेसी आपका मुस्तकबिल बना नहीं सकता और कोई योगी आपका मुस्तकबिल बिगाड़ नहीं सकता. ये काम आपके हाथ का है. आप चाहें तो इसे बनायें,आप चाहें तो इसे बिगाड़ लें .
पूरी दुनिया के मुसलमान एक होकर भी भारत के मुसलमानों का न कल्याण कर सकते हैं और न उन्हें अपने यहां ले जाकर बसा सकते हैं. हिंदुस्तान के मुसलमान का कल्याण इसी जमीन पर होगा और यहीं रहकर होगा ,किसी के कहने -सुनने से कुछ नहीं होने वाला .हिकमत अमली से काम लेना सीखें .और ठन्डे दिल से सोचें कि नूपुर शर्मा के बयान से पैगबर साहब का क्या बिगड़ा ? क्या उन्होंने कोई प्रतिक्रिया दी ? भगवान के बनाये हम लोग भगवान का क्या बना और बिगाड़ सकते हैं .इसलिए हमें विचलित होने की जरूरत नहीं .हम खामखां तिल का ताड़ बना रहे हैं .जो हो गया सो हो गया ,जो नहीं होना चाहिए उसे रोकिये .
दुनिया में कभी ,किसी भगवान ने अपने लिए पूजाघर बनाने का आदेश नहीं दिया. ये सब हम अपने संतोष के लिए करते हैं .इनमें रहने कोई भगवान नहीं आता.भगवान तो आपके अंदर बैठा होता है लेकिन आप उसकी सुनते कहाँ हैं ?आप सुनते हैं उन लोगों की जो भगवान के नाम पर अपना उल्लू सीधा करने में सिद्धहस्त हैं .ऐसे लोगों से सावधान रहिये .पूजाघरों से लौटिए तो हल्के-फुल्के मन से लौटिए,खुश होकर लौटिए,मुस्कराते हुए लौटिए,विनम्र होकर लौटिए .पत्थर बरसाते हुए लौटेंगे तो मुमिकन है कि आपको भी जबाब में पत्थर ही मिले.मुमकिन है बन्दूक की गोली भी मिले .इसलिए फिर सोचिये,बार-बार सोचिए .पथराव किसी समस्या का हल न था है और न होगा .मसले आपस में बैठकर,बातचीत से क़ानून से आपसी समझ से सुलझेंगे .पहले भी सुलझते आये हैं और आगे भी सुलझेंगे .सरकारें आती-जातीं रहेंगीं .
@ राकेश अचल

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