ग्वालियर: महापाैर- सबसे कम 36000 वाेटाें से जीतीं थीं समीक्षा, सबसे ज्यादा 99 हजार का रिकाॅर्ड शेजवलकर के नाम
निकाय चुनाव-2022 …?
- वर्ष 1973 में माधव शंकर इंदापुरकर महापौर थे, 10 साल बाद जब चुनाव हुए तब फिर से चुनकर परिषद में पहुंचे
- सरकार ने वर्ष 1999-2000 में महापौर चुनाव की व्यवस्था में बदलाव किया
64 साल पहले बनी ग्वालियर नगर निगम परिषद में 24 नेता महापौर का पद संभाल चुके हैं। अब 25वें महापौर के लिए चुनाव हाेने जा रहा है। इस बार महापाैर पद सामान्य महिला के लिए आरक्षित है। इससे पहले अनारक्षित सीट पर विवेक नारायण शेजवलकर महापौर थे। उन्होंने कांग्रेस की सरकार आने पर पांच जून 2019 को अपना त्याग-पत्र दे दिया था, तब से नगर निगम काे प्रशासक संभाल रहे हैं। महापौर के 64 साल के सफर में दस साल वर्ष 1973 से 1983 तक चुनाव नहीं हुआ।
वर्ष 1973 में माधव शंकर इंदापुरकर महापौर थे, 10 साल बाद जब चुनाव हुए तब फिर से चुनकर परिषद में पहुंचे। सरकार ने वर्ष 1999-2000 में महापौर चुनाव की व्यवस्था में बदलाव किया। इसके बाद महापाैर के लिए चार प्रत्यक्ष चुनाव हो चुके हैं। चारों में भारतीय जनता पार्टी के महापौर चुने गए। सबसे ज्यादा मतों से जीत का रिकाॅर्ड विवेक नारायण शेजवलकर के नाम है। उन्हाेंने 2014-15 में कांग्रेस के दर्शन सिंह काे 99 हजार वाेटाें से हराया था। हालांकि 2004-05 में उन्होंने कांग्रेस के गोविंद अग्रवाल को 40 हजार मतों से पराजित किया था। 1999-2000 में महापौर बने पूरन सिंह पलैया 87 हजार मतों से जीते थे, जबकि वर्ष 2009-10 में महापौर बनीं समीक्षा गुप्ता ने कांग्रेस की डॉ. उमा सेंगर को 36 हजार मतों से हराया था।
31 साल तक एक-एक साल के लिए चुने गए महापौर
महापौर को पहले पार्षद ही चुनते थे। महापौर के साथ-साथ उप महापौर भी चुने जाते थे। दोनों पद पर बैठने वालों का कार्यकाल एक-एक साल का था। सबसे पहले महापौर 14 नवंबर 1956 को विष्णु माधव भागवत चुने गए। ये 30 अक्टूबर 1957 तक पद पर बने रहे। प्रदेश सरकार ने साल 1995 में महापौर पद का कार्यकाल एक साल से बढ़ाकर 5 साल किया गया। साथ ही महापौर पद के लिए आरक्षण शुरू हुआ। पहली बार अनुसूचित जाति महिला के लिए सीट आरक्षित की गई। तब अरुणा सैन्या को पांच साल के लिए चुना गया।
ये एक से ज्यादा बार रहे महापौर
विष्णु माधव भागवत (दो बार), सैयद हामिद अली शाह (दो बार), करतार सिंह (दो बार), नारायण कृष्ण शेजवलकर (तीन बार), माधव शंकर इंदापुरकर (दो बार), विवेक शेजवलकर दो बार महापौर पद पर रहे चुके हैं।
12 वार्डों में कभी नहीं जीती कांग्रेस, भाजपा सिर्फ एक वार्ड में नहीं खोल पाई खाता
1994 के बाद नगर नगम के कई ऐसे वार्ड रहे, जिनमें कांग्रेस का खाता ही नहीं खुला। पिछले निकाय चुनाव में नगर निगम सीमा में शामिल हुए ग्रामीण क्षेत्र के 6 वार्डों में कांग्रेस अपना खाता खोलने में नाकाम रही लेकिन इन वार्डों में पार्टी के महापौर पद के प्रत्याशी को भाजपा के प्रत्याशी से अधिक वोट मिले थे। इसी तरह दक्षिण विधानसभा के 5, पूर्व में 4 आैर ग्वालियर विधानसभा क्षेत्र के 3 वार्डों में में कांग्रेस अभी तक खाता नहीं खाेल सकी है। हालांकि 1994 के चुनाव में पार्टी के चुनाव चिन्ह के बिना कुछ वार्डों में कांग्रेस विचारधारा के उम्मीदवार जीते थे। पूर्व विधानसभा में 18,19, 26 व 58 एेसे वार्ड हैं जहां कांग्रेस वार्ड के चुनाव में कभी नहीं जीती। इसी तरह ग्वालियर विधानसभा में वार्ड 1, 16, व 32 में कांग्रेस ने कभी जीत नहीं दर्ज की। यहां पर मंत्री प्रद्युम्न सिंह तोमर व सुनील शर्मा के वार्ड में भी कांग्रेस हारती रही है, हालांकि अब प्रद्युम्न सिंह भाजपा में हैं। दक्षिण विधानसभा में वार्ड 38, 49, 52, 46 व 53 में भी कांग्रेस के प्रत्याशी नहीं जीते हैं।
वार्ड 46, जहां से कभी नहीं जीत पाई भाजपा, निर्दलीय जीतने वाले चेहरे काे बनाया प्रत्याशी
वार्ड 46 में 25 साल में भाजपा का पार्षद नहीं जीत पाया। 1984 से पार्षद के चुनाव नहीं हुए। 1995 में चुनाव की शुरुआत हुई। तब कांग्रेस की पार्षद अंजलि वासुदेव चुनी गईं। उसके बाद से निर्दलीय प्रत्याशी घनश्याम गुप्ता का कब्जा है। तीन बार वे खुद और एक बार उनकी पत्नी पार्षद रह चुकी हैं। इस बार भाजपा ने उन्हें ही अपना प्रत्याशी बना दिया है।