पत्थरबाजी ने रोकी बिजनेस की रफ्तार …? प्रयागराज के तीन मार्केट को हुआ 50 करोड़ का नुकसान, 500 दुकानों पर हिंसा वाले इलाके के लड़के करते थे काम
अटाला में 10 जून को हुई पत्थरबाजी का असर शहर के व्यापार पर भी पड़ा है। जिस स्थान पर हिंसा हुई वहां के लोग इंदिरा भवन, लक्ष्मण मार्केट और नवाब यूसुफ रोड पर काम करने आते थे। हिंसा के बाद उनका आना कम हो हुआ तो इधर दुकानों का बिजनेस डाउन होता गया। एक अनुमान के मुताबिक 7 दिन के अंदर 50 करोड़ का व्यापार प्रभावित हुआ है।
हम इन सभी मार्केट में गए। अटाला के लोगों के बारे में पता किया। जो रिजल्ट आए वह चौकाने वाले थे। आइए शुरू से जानते हैं। सबसे पहले इंदिरा भवन की बात।
कोई बताने को तैयार नहीं कि मैं अटाला से हूं
सिविल लाइंस के सुभाष चौराहे पर स्थित इंदिरा भवन की 10 सीढ़िया चढ़ते ही मोबाइल की दुकान वाले बुलाने लगे। एक व्यक्ति के पास पहुंचे और उनका नाम पूछा। उन्होंने नाम बताया जॉनी। जॉनी से हमने पूछा, “अटाला के लोग क्या यहां काम करते हैं?” जॉनी को लगा ये लोग पुलिस विभाग से हैं इसलिए उन्होंने कहा, “यहां नहीं काम करते सब लक्ष्मण मार्केट में काम करते हैं। 4-5 हैं जो करते हैं लेकिन वह आ नहीं रहे हैं।”
हिंसा वाले दिन के बाद तीन दिन तक उधर के लोग नहीं आए
इंदिरा भवन की दूसरी मंजिल पर लैपटॉप रिपेरिंग की दुकान चलाने वाले फतेहपुर के नीरज शर्मा ने बताया कि यहां करीब 50 लोग अटाला, रसूलपुर, रोशनबाग, करेली साइड के हैं। जिस दिन हिंसा हुई उस दिन के 3 दिन बाद तक 4-5 लोग ही इधर आए। तब तक करीब 10 दुकानें बंद थी। खुली भी तो उनके पास कारीगर नहीं थे। इंदिरा भवन मार्केट को लेकर उन्होंने कहा, यहां करीब 50-60 दुकानें हैं। मान के चलिए एक हफ्ते में 8 से 10 करोड़ का नुकसान हुआ है।
इसके बाद हम नवाब यूसुफ रोड पहुंचे, जहां करीब 300 दुकानें ऑटोपर्ट्स बेचने, लगाने और बनाने की हैं।
दंगे के बाद धंधा एकदम ठंडा
सिविल लाइंस बस स्टैंड के पीछे वाले गेट से 50 मीटर दूर प्रतापगढ़ के अमर बहादुर सिंह की दुकान है। अटाला में हिंसा की बात करते हुए कहते हैं, यहां आधे से अधिक लोग उसी साइड के काम करते हैं। अमर बहादुर ने सीट एक दुकान की तरफ हाथ दिखाते हुए कहा, यह 7 दिन से बंद है। यहीं चार लोग काम करते थे। जो दुकानें खुली हैं वहां भी सब लोग नहीं आ रहे हैं। ग्राहक भी दुकान बंद होने की बात सोचकर कम आने लगे हैं।
इमरान खान करैली से आते हैं। हिंसा वाले इलाके से महज 2 किमी दूर से। नवाब यूसुफ रोड पर गाड़ी रिपेयरिंग की दुकान पर काम करते हैं। धंधा डाउन की वजह हिंसा को बताते हैं। इमरान ने कहा, न सिर्फ उस इलाके के लड़के काम करने नहीं आ रहे हैं। बल्कि उधर से हमारे जो ग्राहक हैं वह काम करवाने इधर नहीं आ रहे हैं। इमरान के बगल ही बैठे दुकान के मालिक इकबाल कहते हैं, पूरे मार्केट का नुकसान तो नहीं बता सकते लेकिन हमारा अपना धंधा 50% डाउन हो गया है।
इन दोनों मार्केट के बाद हम लक्ष्मण मार्केट पहुंचे। मोबाइल और लैपटॉप बेचने, बनाने की यह इंदिरा भवन से भी बड़ी मार्केट है।
वसीम ने बताया, 40% डाउन हो गई मार्केट
लक्ष्मण मार्केट में मोबाइल की दुकान पर काम करने वाले वसीम अटाला से ही आते हैं। हमने पूछा, पूरे इलाके में बैरिकेटिंग है। क्या आने-जाने में दिक्कत नहीं होती। वसीम बोले, “शुरुआती दो दिन दिक्कत हुई लेकिन जब वह जान गए कि पत्थरबाजी से हमारा कोई मतलब नहीं तो वह अब नहीं रोकते।” लक्ष्मण मार्केट के डाउन हुए बिजनेस को लेकर कहते हैं कि यहां 40% बिक्री डाउन हो गई है। पहले 12-15 मोबाइल सेट निकल जाते थे, लेकिन आज 4-5 ही बिक रहे हैं।
300 दुकाने हैं, किसी की भी बिक्री पहले के मुकाबले बढ़ी नहीं
लक्ष्मण मार्केट की 20 दुकानों पर हमने बात की। किसी ने भी नहीं कहा कि पहले के मुकाबले बिक्री बढ़ी है। घटनास्थल से 4 किमी दूरी होने की वजह से उस इलाके के ग्राहक आने भी कम हो गए। इसी मार्केट में 100 से ज्यादा लोग उसी प्रभावित इलाके से आते हैं। उनसे सीधा पूछने पर वह उस इलाके का होने से इंकार करते हुए अपना घर कभी बमरौली तो कभी करेली बताते हैं।
इन तीन मार्केट के अलावा लीडर रोड और नूरउल्लाह रोड पर भी जो दुकान हैं वहां भी अटाला साइड के लोग काम करते हैं। इन इलाकों में भी एक हफ्ते बीत जाने के बाद भी 10 से अधिक दुकानें बंद हैं।
हिंसा का असर पूरे शहर पर हुआ है
इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के छात्र रहे और अब यूनिवर्सिटी चौराहे पर ही साइबर कैफे चलाने वाले मो. आमिर कहते हैं, सिर्फ तीन मार्केट ही नहीं बल्कि पूरे जिले का बिजनेस डाउन हुआ है। पत्थरबाजी का डर इतना ज्यादा हावी हो गया कि लोग प्रयागराज की सबसे बड़ी मार्केट चौक का भी बिजनेस डाउन हो गया है। कुल मिलाकर देखिएगा तो पाएंगे कि 100 करोड़ से अधिक का धंधा चौपट हुआ है।
जो दुकानें खुलने वाली थी वह अब बाद में खुलेंगी
बिजनेस एनालिटिक्स उज्जवल श्रीवास्तव बताते हैं टीवी ने पत्थरबाजी के विजुअल इतनी बार दिखाए कि लोगों के भीतर डर भर गया। वह उन मार्केट में जाना ही नहीं चाहते जहां हिंसा वाले इलाकों से लोग काम करने आते हैं। उज्जवल आगे बताते हैं कि इस डर की कोई ठोस वजह नहीं है। लेकिन बिजनेस पर इसका व्यापक असर पड़ा है। कई ऐसे भी लोग थे जो नई अटाला, नूरउल्लाह रोड पर नई दुकानें खोलना चाहते थे वह भी दुकान खोलने का फैसला अगले कुछ महीनों के लिए होल्ड पर रख दिए हैं।