एअर पाल्यूशन फैलाने में 29 टायर फैक्ट्री चिन्हित …?
मुजफ्फरनगर में कोल्हू और वाहनों से भी बढ रहा प्रदूषण, बदनामी का तमगा मिलने से उद्योग परेशान …
मुजफ्फरनगर में बढ़ते वायु प्रदूषण के लिए यहां संचालित 29 टायर फैक्ट्रियों को मुख्य कारक के तौर पर चिन्हित किया गया है। हांलाकि कोल्हू तथा वाहनों के बढने से भी प्रदूषण का स्तर बढ़ता जा रहा है। जबकि जिले में संचालित उद्योगों को प्रदूषण के मामले में घसीटे जाने पर उद्योगपतियों ने नाराजगी जाहिर करते हुए लाकडाउन की स्थिति का हवाला दिया। उस समय केवल उद्योग ही चल रहे थे, लेकिन प्रदूषण का स्तर निम्नतम रहा था।
वायु प्रदूषण में उद्योगों की हिस्सेदारी केवल 11 प्रतिशत
एक रिपोर्ट के अनुसार जो भी प्रदूषण है, उसमें उद्योगों के स्तर से 11 प्रतिशत ही हिस्सेदारी है। प्रदूषण चाहे दूषित जल से हो, या फिर प्रदूषित हवा से फैल रहा हो, 89 प्रतिशत प्रदूषण उद्योगों से अलग दूसरे स्रोतों की ही देन है। ऐसा ही मामला उद्योगपतियों ने उठाया है और मुफ्त की बदनामी को लेकर वह परेशान भी हैं। जनपद की बात करें तो प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की ही अपनी जांच पड़ताल में यह सामने आया है कि यहां पर भयंकर वायु प्रदूषण फैलाने में टायर फैक्ट्रियों का हाथ है। विभागीय सूत्रों के अनुसार जनपद में 29 टायर फैक्ट्री संचालित हैं। इनमें प्रदूषण नियंत्रण के लिए जो उपाय, साधन और संसाधान जुटाने चाहिए थे, वह नहीं जुटाये गये और मानकों के विपरीत यहां पर टायर निर्माण के लिए काम किया जा रहा है। बेगराजपुर इंडस्ट्रियल एरिया में अधिकांश संख्या में टायर फैक्ट्री हैं।
इन टायर फैक्ट्रियों के साथ ही इस औद्योगिक क्षेत्र में दूसरी फैक्ट्रियों और छोटे व लघु उद्योग भी पनप रहे हैं। यहां पर कई फैक्ट्रियों पर प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के साथ ही एनजीटी से आने वाली टीमों के द्वारा निरीक्षण और छापामार कार्यवाही की जाती रही है, लेकिन टायर फैक्ट्रियों के खिलाफ अभी तक भी कोई बड़ी कार्यवाही नहीं हुई। इस मामले से दूसरे उद्योगपति भी आहत है। एक उद्योगपति का कहना है कि वह इन फैक्ट्रियों के खिलाफ कार्यवाही नहीं चाहते है। न ही उनका मकसद इनको बंद कराना है, लेकिन जिस प्रकार से दूसरे उद्योगों को लेकर प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड या एनजीटी की टीमों की कार्यवाही गाहे बगाहे सामने आती रहती है। उसी प्रकार से इन फैक्ट्रियों का निरीक्षण किया जाये, वहां पर प्रदूषण नियंत्रण के लिए मानकों को पूरा कराया जाये ताकि इनसे निकलने वाली दूषित हवा से जहर कम किया जा सके। इसके साथ ही प्रदूषण फैलाने के जो दूसरे स्रोत बने हुए हैं, जिसमें गुड और शक्कर बनाने वाले कोल्हू भी शामिल हैं, उन पर भी प्रदूषण नियंत्रण के लिए काम किया जाये। कोल्हुओं को लेकर वहां पर प्रयोग हो रहे ईंधन के लिए कई बार कार्यवाही भी हुई है। यहां पर सोलिड वेस्ट के साथ ही पन्नी कचरा भी जलाया जा रहा है, जिससे वायु प्रदूषण फैलता है। इसके साथ ही वाहनों का संचालन, सड़कों पर धूल, कंस्ट्रक्शन साइट, सड़कों पर निर्माण सामग्री के साथ ही शहरों में कूड़ा डलाव घरों में कूड़ा करकट का सही प्रोसेस नहीं होना और नालों से निकलने वाला दूषित जल का शोधन नहीं होना भी प्रदूषण के बढ़ने के मुख्य कारक बने हुए है। जब तक इन सभी पर मिलकर एक विभागीय समन्वय बनाते हुए कार्य नहीं किया जायेगा, प्रदूषण का स्तर बढ़ता ही रहेगा।
टायर फैक्ट्रियों से बढ़ रहा वायु प्रदूषण: अंकित सिंह
प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के आरओ अंकित सिंह भी मानते हैं कि इन टायर फैक्ट्री से निकलने वाली कार्बन डाईऑक्साइड व अन्य गैस वायु प्रदूषण को तीव्रता प्रदान कर रही हैं। उन्होंने कहा कि पिछले दिनों इसके लिए हमने सर्वे कराकर चेतावनी दी है, लेकिन शायद कुछ सुधार नहीं हुआ है, अब फिर से विभागीय स्तर पर इन फैक्ट्रियों पर अंकुश लगाने की कार्यवाही के लिए सर्वे का काम शुरू कराया जायेगा। उनका कहना है कि यहां पर 28-29 फैक्ट्री ऐसी सूचीबद्ध की जा चुकी हैं, जो टायर निर्माण से जुड़ी हैं और इनके द्वारा वायु प्रदूषण को लेकर बड़े पैमाने पर नियमों की अनदेखी की जा रही है। उनका कहना है कि कोल्हुओं पर हमने कार्यवाही की है और विभागीय स्तर पर लगातार पर्यवेक्षण किया जा रहा है। इसके साथ ही हम उद्योगों के साथ साथ दूसरे कारकों को लेकर भी विभागीय स्तर पर आपसी समन्वय स्थापित करते हुए काम करने का प्रयास कर रहे हैं। मिलकर हम प्रदूषण के लिए अपने उद्देश्य में सफल हो सकते हैं।
लॉकडाउन में उद्योगों ने दिखा दिया, कौन फैला रहा प्रदूषण
उद्योग संगठन से जुड़े एक उद्यमी का कहना है कि आज आम धारणा यह है कि सारा प्रदूषण उद्योग द्वारा ही किया जा रहा है जबकि पर्यावरण को सुधारने के लिए सबसे अधिक यदि कोई कार्य कर रहा है तो वह सिर्फ उद्योग है। उद्योगों का पोल्यूशन, कुल पोल्यूशन का सिर्फ 11 प्रतिशत है परंतु आम आदमी, शासन प्रशासन से लेकर कोर्ट तक सिर्फ उद्योगों के लिए ही गाइडलाइन जारी करते हैं, जबकि 89 प्रतिशत पोल्यूशन करने वालों के लिए न कोई नियम ना कोई बात होती है। कोविड काल में भी जब सिर्फ उद्योग चल रहे थे, बाक़ी सब लाकडाउन था उस समय में वातावरण बिल्कुल स्वच्छ था नीला आसमान दिखता था और आईआईटी कानपुर के शोध के अनुसार उस समय पर्यावरण की स्थिति बहुत अच्छी थी। यह दर्शाता हैं कि उद्योग से कहीं अधिक और मुख्य माध्यम है जो पर्यावरण को खराब करते हैं।