देश का युवा आग है, इस आग से मत खेलिए
अग्निपथ योजना। पिछले एक हफ्ते से इसके दो ही पक्ष रहे। पहला भट्टी। दूसरा आग। भट्टी पूरा देश था… और आग देश का युवा। सही है, दुनिया के किसी भी कोने में अन्याय देख जिनकी सांसों में आग न सुलगने लगे, तो वो कैसा युवा? कैसा जवान?
यही वजह है कि सेना की परमानेंट नौकरी का रास्ता लगभग बंद करके चार साल की नो रैंक, नो पेंशन वाली योजना लाई गई तो युवाओं को उत्तेजित होना ही था। हुए भी। पांच दिन बाद ही सही, सरकार ने अब इसमें कई सुधार सुझाए हैं, जो ठीक भी हैं। मसलन, चार साल सेना में सेवा के बाद गृह और रक्षा मंत्रालय की तमाम नौकरियों में अग्निवीरों को 10% आरक्षण। कोई कारोबार शुरू करने के लिए तुरंत लोन की सुविधा। टेक्निकल असिस्टेंस आदि।
साढ़े सत्रह से 21 के बीच का युवा चार साल में कुल पच्चीस लाख रु. लेकर निकलेगा। फिर आगे की पढ़ाई करे या कोई कारोबार। उसके पास पर्याप्त पैसा भी होगा और उम्र भी। सेना का अनुशासन और देश प्रेम की सीख तो साथ होगी ही। यही वजह है कि रविवार को प्रदर्शनों में काफी कमी आई है। इस बीच वायु सेना ने भर्ती की गाइडलाइन जारी कर दी है। सेना भी जल्द भर्ती शुरू करने वाली है। शांति कायम हो ही जाएगी।
कांग्रेस और बाकी विपक्ष अब जागा है। प्रियंका गांधी का कहना है कि केंद्र सरकार फर्जी राष्ट्रवादी पैदा करने पर तुली हुई है। अब चार साल की ही सही, सेना की नौकरी में फर्जी राष्ट्रवाद कहां से आ गया? कुछ दिनों की हल्की बयानबाजी से मामला सुधरने वाला नहीं है। इसलिए मौजूदा विपक्ष को इसमें पड़ना ही नहीं चाहिए। वैसे भी ओशो ने कहा है- लंबे समय तक जो क्रांतिकारी नहीं रह सके, उन्हें क्रांति के झंझट में पड़ना ही नहीं चाहिए।
जहां तक सरकार का सवाल है, पांच दिन बाद जो रियायतें और सहूलियतें उसने घोषित कीं, वे अगर पहले ही कर दी जातीं तो इतनी आगजनी और तोड़फोड़ से देश को बचाया जा सकता था, लेकिन सरकार हमेशा जिद के रथ पर सवार रहती है। किसानों के विधेयकों पर भी उसने यही किया था और अब युवाओं के मामले में फिर वही रवैया! क्यों? सरकार के निर्णय हों या विपक्षी बयानबाजी, ये हर हाल में संयमित होने चाहिए।
देश का युवा हमारी पूंजी है। उसमें एक तेज है और आग भी। कृपया इस आग से खेलना बंद कीजिए। अग्निवीरों के लिए यह नौकरी सुनहरा मौका हो सकता है, लेकिन विशेषज्ञों का कहना भी सही है कि इससे सेना का काफी नुकसान होने वाला है। चार साल के लिए सेना में भर्ती होने वाले जवानों से रेजीमेंट सिस्टम गड़बड़ा जाएगा। फिर रेगुलर जवान की तरह वे अपनी जान क्यों लड़ाएंगे? क्योंकि उन्हें तो घर जाकर डेयरी खोलनी है। नए-पुरानों के बीच के मतभेद तो होंगे ही।