साइकिल से चलने वाले मेयर ने CM की कुर्सी ठुकराई …?
MP के पहले नगर निगम के महापौर पं. भवानी भाषण से हिंसा शांत करा देते थे…
मध्यप्रदेश में 7 साल बाद नगर निगम चुनाव हो रहे हैं। पहले चरण में बुधवार 6 जुलाई को भोपाल, जबलपुर समेत 11 शहरों में ‘नगर सरकार’ बनाने के लिए वोट डाले जाएंगे। इस दौरान हम आपको उस महापौर की कहानी बता रहे हैं, जो देश के इकलौते ऐसे गैर कांग्रेसी महापौर थे, जिन्होंने 7 बार इस कुर्सी पर बैठने का इतिहास रचा। जबलपुर के पहले महापौर रहे पंडित भवानी प्रसाद तिवारी के नाम कई ऐसे कीर्तिमान हैं, जो अब सामान्य बात नहीं है।
आजादी के बाद जब जबलपुर नगर पालिका को नगर निगम का दर्जा मिला तो पहले महापौर पंडित भवानी प्रसाद तिवारी बने। उस समय नगर निगम में महापौर का चुनाव आज की तरह पांच वर्ष के लिए और सीधे जनता द्वारा न होकर हर साल निर्वाचित पार्षदों द्वारा किया जाता था। मध्यप्रदेश में कांग्रेस सरकार होते हुए भी जबलपुर नगर निगम पर प्रजा समाजवादी पार्टी का ही कब्जा रहा। पं. तिवारी कवि थे, लेकिन उनकी पहचान राजनीतिज्ञ के रूप में ज्यादा बनी।
जब डीपी मिश्रा ने दिया CM बनने का ऑफर
पं. तिवारी की पुत्रवधू और जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी से रिटायर्ड प्रोफेसर अनामिका तिवारी के मुताबिक प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री डीपी मिश्रा का चुनाव कोर्ट ने अवैध करार दिया था, तब वे (डीपी मिश्रा) चाहते थे कि पं. भवानी प्रसाद मुख्यमंत्री बनें, लेकिन उन्होंने इस ऑफर को यह कहते हुए ठुकरा दिया था कि जिस तरह की राजनीति हो रही है, उसमें मैं काम नहीं कर पाऊंगा। मैं राज्यसभा सांसद की भूमिका में ठीक हूं।
पहले गैर कांग्रेसी महापौर बने थे पं. तिवारी
भवानी प्रसाद तिवारी ने 1950 में प्रजा सोशलिस्ट पार्टी से चुनाव लड़ा। वे नगर निगम के पहले ही कार्यकाल में गैर कांग्रेसी महापौर थे। उस समय महापौर का कार्यकाल एक साल का होता था। वह 1952, 1953, 1955, 1956, 1957, 1958 और 1961 में इस पद पर रहे। हालांकि बाद में वे कांग्रेस में शामिल हो गए। वे दो बार राज्यसभा के सदस्य भी रहे। 1977 में जब उनका निधन हुआ, तब उनकी अंतिम यात्रा में इतनी भीड़ उमड़ी थी, जिसकी कल्पना नहीं की जा सकती। शहर के जिस भी व्यक्ति को यह खबर मिली वह अंतिम यात्रा में शामिल हुआ।
जबलपुर में 28 महापौर बने, सबसे लंबा ‘पंडितजी’ का कार्यकाल
जबलपुर नगर निगम में अभी तक 28 महापौर बने हैं, लेकिन सबसे लंबा कार्यकाल भवानी प्रसाद तिवारी का ही रहा है। जिस समय वे महापौर बने थे, उस समय वित्त की बड़ी समस्या हुआ करती थी। यही वजह है कि विकास के ज्यादा काम नहीं हो पाते थे।
अद्भुत भाषण कला के स्वामी थे भवानी प्रसाद
पं. तिवारी के कार्यकाल को करीब से समझने वाले जबलपुर के साहित्यकार पंकज स्वामी बताते हैं कि भवानी प्रसाद तिवारी अद्भुत भाषण कला के स्वामी थे। उनके बारे में कहा जाता है कि वे हिंसक भीड़ को भी अपने उद्बोधन से नियंत्रित कर लेते थे। वे एक किस्सा बताते हैं- एक बार तिलक भूमि तलैया में एक सभा में भीड़ हिंसक हो उठी। उस समय सिटी कोतवाल रहे प्रयाग नारायण शुक्ल उन्हें यह अनुरोध कर वहां ले गए कि वे दो मिनट भाषण दे देंगे तो भीड़ शांत भी हो जाएगी और पुलिस का काम हल्का हो जाएगा। हुआ भी यही, तिलक भूमि तलैया पहुंचकर जैसे ही उन्होंने भाषण देना शुरू किया, भीड़ शांत हो गई और पुलिस का काम बिना लाठीचार्ज किए हो गया।
कार से नहीं, रिक्शे में सवार होकर कार्यक्रम में जाते थे
उनकी सादगी का पता इसी बात से चलता है कि उन्होंने कभी भी नगर निगम की कार का व्यक्तिगत उपयोग नहीं किया। मेयर रहते हुए वे शहर में किसी कार्यक्रम में रिक्शे से ही जाते थे। जबकि, शहर भ्रमण वे साइकिल से करते थे। उस समय मेयर की कार का नंबर MPJ- 102 था। बतौर पंकज स्वामी- वे हमेशा कहते थे यह सरकारी काम के लिए हैं। निजी काम साइकिल से ही करना चाहिए।
विधानसभा चुनाव हार गए थे पंडितजी
1957 में महापौर पं. तिवारी ने विधानसभा का चुनाव लड़ा था, लेकिन वे हार गए। तब उनके समर्थकों को यकीन नहीं हुआ कि पंडितजी चुनाव हार गए हैं। उन्होंने जीते प्रत्याशी के जुलूस को रोककर मंच पर कब्जा कर लिया। हालात बिगड़ते देख पुलिस अधिकारी के आग्रह पर भवानी प्रसाद ने प्रदर्शन स्थल पर भाषण देकर भीड़ को शांत करा दिया।
राजनीति में परिवारवाद को हावी नहीं होने दिया
पं. तिवारी की पहचान जबलपुर में एक सक्षम व सफल राजनीतिज्ञ के तौर पर थी, लेकिन उन्होंने परिवार को राजनीति की छाया से मुक्त रखा था। उनकी पांच बेटियां गीता, चित्रा दुबे, आभा दुबे, प्रतिभा शर्मा, मंगला शर्मा हैं। एक पुत्र सतीश तिवारी भी था, जिनका 1998 का निधन हो गया। लेकिन, परिवार से कोई राजनीति में नहीं हैं। पुत्रवधू अनामिका बताती हैं कि पं. तिवारी के परिवार का कोई भी सदस्य राजनीति में नहीं आया। इस सवाल पर अनामिका कहती हैं- परिवार के सभी सदस्य नौकरी पेशा थे। उनमें राजनीतिक उठापटक के संस्कार नहीं थे। इसलिए वे राजनीति में नहीं आए।
पं तिवारी की राजनीतिक ताकत
वे 1936 से लेकर 1947 तक लगातार नगर कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष रहे। इस पद से 11 साल तक उन्हें कोई हटा नहीं सका। फिर उन्होंने कांग्रेस छोड़ दी। इसके बाद 7 बार महापौर रहने के बाद 1964 से दो बार राज्यसभा सांसद रहे। वे पहले महापौर हैं, जो दो बार राज्यसभा के लिए निर्वाचित हुए।
पं. तिवारी की पुत्रवधू प्रोफेसर अनामिका तिवारी बताती हैं कि निवास स्थान राइट टाउन, भवानी सदन में बाउंड्री नहीं थी। घर के चारों ओर झाड़ियां थी। लेकिन, महापौर रहते उन्होंने कभी भी नगर निगम से मिले मानदेय राशि का एक रुपए भी घर पर खर्च नहीं किया था। अब के महापौर गड्ढों वाली सड़क के किनारे फूल लगवाते हैं।
अब महापौर मतलब शहर की बड़ी हस्ती
अनामिका तिवारी ने कहा कि पहले के महापौर बहुत ही सादगी से जीवन जीते थे, लेकिन अब तो महापौर यानी शहर की बड़ी हस्ती…। उनसे अपेक्षाएं बहुत हैं, लेकिन कभी-कभी ऐसा लगता है कि वे पहले जैसे महापौरों की तरह सक्षम नहीं हैं। उन्होंने यह भी कहा कि भवानी जी कॉन्वेंट स्कूल में नहीं पढ़े थे। अंग्रेजी मीडियम में पढ़ाई नहीं की। इसका मतलब यह नहीं कि वे ज्ञानी नहीं थे। वे वास्तविक शिक्षा से परिपूर्ण थे। इसलिए उन्होंने साहित्य को चुना। उनके लिए समाज सेवा की शिक्षा सर्वोपरि थी।
मप्र का पहला नगर निगम जबलपुर, 90 हजार थी निर्माण लागत
जबलपुर शहर मध्यप्रदेश का पहला नगर निगम था। इसकी स्थापना 1864 में की गई थी। इससे पहले 1781 से जबलपुर शहर मराठों का मुख्यालय हुआ करता था। जब सत्ता अंग्रेजों के हाथ में आई तो उन्होंने जबलपुर के भौगोलिक महत्व को ध्यान में रखते हुए इस शहर को ब्रिटिश कमीशन का हेड क्वार्टर बनाया। इसी के चलते अंग्रेज अफसरों ने जबलपुर शहर के डेवलपमेंट पर ज्यादा ध्यान दिया। 1864 में यहां पहली बार नगर पालिका चुनाव हुए। वर्तमान में जबलपुर नगर निगम का जो ऑफिस है, उस भवन का निर्माण 1929 में 90 हजार की लागत से किया गया था। 1952 में यहां पहली बार नगर निगम के चुनाव हुए थे।