ऑनलाइन गेम खेलते-खेलते लड़की जैसा रहने लगा …?
होमोसेक्सुअल ग्रुप से जुड़ा 14 साल का लड़का; स्कर्ट पहनता और मेकअप भी करने लगा….
क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि कोई व्यक्ति वर्चुअल दुनिया से इतना प्रभावित हो जाए कि अपनी आइडेंटिटी तक भूल जाए। मध्यप्रदेश में ऐसा ही हैरान करने वाला मामला सामने आया है। यहां 14 साल का लड़का सोशल मीडिया और मोबाइल गेम से इतना इंफ्लूएंस हुआ कि वह खुद को लड़की समझने लगा।
गेम के जरिए होमोसेक्सुअल ग्रुप के संपर्क में आया। लड़की जैसा बिहेव करने लगा। शुरुआत बाल बढ़ाने से हुई। फिर नेल पॉलिश लगाना, पर्स हैंडल करना, सजना-संवरना, ब्रेसलेट- कंगन पहनने के बाद उसने लड़कियों की तरह ही स्कर्ट पहनना स्टार्ट कर दिया। यही नहीं, वह बॉयज स्कूल में स्कर्ट पहनकर जाने लगा। भोपाल की चाइल्ड साइकेट्रिस्ट डॉ. समीक्षा साहू के पास ऐसा पहला केस आया है।
जानिए, कैसे वर्चुअल दुनिया ने बदल दी जिंदगी
इंदौर (आइडेंटिटी छुपाने के लिए शहर और लड़के का नाम बदला गया है) के बड़े बिजनेसमैन का बेटा राहुल 14 साल की उम्र तक वह नॉर्मल था। अब उसकी लाइफ स्टाइल लड़कियों की तरह है। वह नेल पॉलिश लगाता है। स्कर्ट पहनता है। लंबे बाल रखता है। लड़कियों की तरह बात करना। सजना-संवरना पसंद है। ये बदलाव महज दो साल में हुआ है। असल में कोरोनाकाल में राहुल को मोबाइल के जरिए ऑनलाइन गेम खेलने और सोशल मीडिया की लत लग गई। इन प्लेटफॉर्म पर वह लंबा समय बिताने लगा। ऑनलाइन ही वह अनजाने में होमोसेक्सुअल ग्रुप से जुड़े कुछ लोगों के संपर्क में आ गया।
उनकी लाइफ स्टाइल, एंजॉयमेंट, रहने के तौर-तरीके और उनके द्वारा हर साल जून में मनाए जाने वाले प्राइड मंथ से वह प्रभावित होने लगा। उनसे खुद को कनेक्ट करने लगा। उसे लगने लगा कि यह अलग खूबसूरत दुनिया है, उससे जुड़े वीडियो व लाइफ स्टाइल से प्रभावित होने लगा। उस ग्रुप के लोगों से बात करने लगा। इसके बाद उसने खुद को बदलना शुरू कर दिया।
पहले उसने कुछ महीने अपने बाल लड़कियों की तरह लंबे किए। पेरेंट्स को लगा कि कोरोनाकाल में स्कूल तो जाना नहीं है, इसलिए आपत्ति नहीं जताई। इसके बाद लड़कियों की तरह सजना-संवरना भी शुरू कर दिया। अब माता-पिता भी इसे नोटिस करने लगे कि आखिर ऐसा क्यों कर रहा है। पूछने पर वह टालता रहा। करीब डेढ़ साल के बाद वह लड़कियों की तरह कपड़े पहनने लगा।
यही नहीं, दो साल बाद वह जब स्कूल जाने लगा, तो लंबे बाल और लड़कियों की तरह स्कर्ट पहनकर ही गया, जबकि वह बॉयज स्कूल है। इसे लेकर बच्चों ने भी चिढ़ाना शुरू किया। कमेंट्स करने लगे, लेकिन उसे फर्क नहीं पड़ा। इस पर स्कूल मैनेजमेंट ने पेरेंट्स को बुलाया। पेरेंट्स ने बेटे को समझाया, लेकिन वह बिहेवियर बदलने को तैयार नहीं है। उसका कहना है कि जो उसे अच्छा लगेगा, वह करेगा। अब माता-पिता उसकी काउंसिलिंग करा रहे हैं।
इस ऐज ग्रुप में जेंडर आइडेंटिटी डिसऑर्डर हो जाता है
चाइल्ड साइकेट्रिस्ट डॉ. समीक्षा बताती हैं कि देखा गया है कि लड़का हो या लड़की, इस ऐजग्रुप में फिजकली- मेंटली चेंजेस को लेकर कुछ में जेंडर आइडेंटिटी डिसऑर्डर हो जाता है। वह खुद को लड़का है या लड़की इस रूप में पहचानने की जद्दोजहद से गुजरते हैं। लड़के या लड़की के रूप में अंदर से भी वे वही हैं कि नहीं।
राहुल के मामले में अब तक की गई काउंसिलिंग में समझ में आया है कि वह सोशल मीडिया के जरिए जिन ग्रुप के लोगों से जुड़ा, उसने इंफ्लूएंस होकर ऐसा किया है। उसे लगता है कि उनकी लाइफ ही सही है, वह तय नहीं कर पा रहा है कि वह वास्तविक में क्या है। इसे लेकर काउंसिलिंग की जा रही है। माता-पिता भी उसे दबाव न डालते हुए उसे सही समय पर मनोचिकित्सक के पास ले आए।
जेंडर को नहीं पहचान पाते बच्चे, बिहेवियर चेंजेस भी
- 11 से 16 साल तक के कई बच्चे जेंडर आइडेंटिटी डिसऑर्डर से पीड़ित होते हैं।
- शरीर में फिजिकली, हॉर्मोनल और मेंटली चेंज को एक्सेप्ट करने में परेशानी होती है।
- बिहेवियर में बदलाव के कारण को पेरेंट्स समझ नहीं पाते।
- इस ऐज ग्रुप के बच्चों के लिए पेरेंटल स्किल अलग है, जो माता-पिता को पता ही नहीं।
सोशल मीडिया की लत से फोमो से पीड़ित हो रहे बच्चे
- फोमो (फीयर ऑफ मिसिंग आउट) मतलब अपने आप को भूलने या गुम होने का डर।
- फोमो पीड़ित खुद को दूसरों की लाइफ से जोड़ते हैं, उनकी वर्चुअल दुनिया से कनेक्ट होते हैं।
- ऐसे लोगों में दूसरों की लाइफ में अपनी अहमियत देखते हैं, उनके कमेंट्स से निराशा-खुशी।
- सोशल मीडिया की लत से एंग्जाइटी, लोनलीनेस, लो कॉन्फिडेंस, निगेटिव थिंकिंग, डिप्रेशन भी होता है।