जनसंख्या पर भागवत की चिंता को समान कानून की जरूरत से जोड़ें

राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत जब बोलते हैं तो उसमें कई छिपे हुए संकेत होते हैं। कभी देश हित के, कभी सरकारी नीतियों के बारे में और कभी सरकार के अगले फैसलों के बारे में भी।

गुरुवार को उन्होंने कर्नाटक में एक दीक्षांत समारोह में कहा- जीवित रहना ही जीवन का लक्ष्य नहीं होना चाहिए। यह भी कि सिर्फ खाना और आबादी को बढ़ाने का काम तो जानवर भी करते हैं। जंगल का कानून यह है कि शक्तिशाली ही जीवित रहेगा, लेकिन मनुष्य होने की निशानी है- दूसरों की रक्षा करना।

साफ संकेत हैं कि अब केंद्र सरकार या तो जनसंख्या नियंत्रण कानून लाने वाली है या इस दिशा में सोच रही है। नहीं भी सोच रही है तो अब सोचना होगा। करना होगा। ये बात अलग है कि जनसंख्या नियंत्रण का यह कानून या नियम अकेले लाया जाता है अथवा समान कानून के बैनर तले इसका पालन कराया जाएगा।

ज्ञानवापी मामले के बाद देश में इससे मिलते कई केस सामने लाए गए। भागवत को बोलना पड़ा कि हमें हर गली- मोहल्ले की मस्जिद में शिवलिंग खोजने की कोशिश नहीं करनी चाहिए।
ज्ञानवापी मामले के बाद देश में इससे मिलते कई केस सामने लाए गए। भागवत को बोलना पड़ा कि हमें हर गली- मोहल्ले की मस्जिद में शिवलिंग खोजने की कोशिश नहीं करनी चाहिए।

अच्छी तरह याद है कि पिछले दिनों जब ज्ञानवापी का मामला खूब फैल गया था तो भागवत सामने आए थे और उन्होंने कहा था कि हमें हर गली- मोहल्ले की मस्जिद में शिवलिंग खोजने की कोशिश नहीं करना चाहिए।

वे जानते थे कि ज्ञानवापी के बहाने गली- मोहल्लों में ऐसा होने लगा तो अराजकता फैल सकती है और उसे संभालना सरकार या प्रशासन या संघ के लिए भी बहुत मुश्किल हो जाएगा। भागवत के इस बयान के बाद मामला लगभग शांत हो गया था। … और अब तक शांत ही है।

अब जनसंख्या का मामला उन्होंने छेड़ दिया है। निश्चित ही एक तरफ बढ़ती जनसंख्या हमारे लिए समस्या है और दूसरी तरफ बूढ़ा होता जा रहा भारत भी एक तरह की दुविधा है। रिपोर्ट के अनुसार अगले चौदह साल में देश में ढाई करोड़ युवा घट जाएंगे और बुजुर्गों की संख्या पांच प्रतिशत बढ़ जाएगी।

देशभर में सभी सम्प्रदायों के लिए एक जैसा कानून लाकर समान नागरिक कानून का काम पूरा किया जाना है। भागवत का संकेत शायद इसी तरफ है।
देशभर में सभी सम्प्रदायों के लिए एक जैसा कानून लाकर समान नागरिक कानून का काम पूरा किया जाना है। भागवत का संकेत शायद इसी तरफ है।

136 करोड़ के देश में 27.3 प्रतिशत युवाओं (15 से 29 साल की उम्र वाले) के साथ हम फिलहाल दुनिया के सबसे युवा देश हैं, लेकिन चौदह साल बाद ऐसा नहीं रहेगा। सौ में से अभी 27 युवा और दस बुजुर्ग हैं। चौदह साल बाद सौ में युवा 23 रह जाएंगे, जबकि बुजुर्गों की संख्या बढ़कर 15 हो जाएगी। 1991 में सौ में बुजुर्गों की संख्या केवल सात ही थी।

कुल मिलाकर जनसंख्या वृद्धि की चिंता सबको है, लेकिन संघ प्रमुख की चिंता कौन सा और कैसा मोड़ लेकर आएगी, यह भविष्य बताएगा। हालांकि, केंद्र में भाजपा सरकार के आने के बाद से ही समान नागरिक कानून की बात चल रही है। लगता है अब इसका समय आ गया है। समान कानून का मतलब है एक देश, एक निशान, एक विधान।

कश्मीर से धारा 370 हटाकर एक निशान, एक विधान वाला काम कुछ हद तक पूरा हो चुका है। देशभर में सभी सम्प्रदायों के लिए एक जैसा कानून लाकर समान नागरिक कानून का काम पूरा किया जाना है। भागवत का संकेत शायद इसी तरफ है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *