मोबाइल और कंप्यूटर हो जाएंगे बेकार …? क्या कंप्यूटर प्रोग्राम, स्मार्टफोन जैसे गैजेट्स क्रैश कर देगा निगेटिव लीप सेकेंड, पहले से तेज घूम रही धरती

धरती के घूमने की स्पीड अब तेज हो गई है। यानी धरती अब 24 घंटे से कम समय में अपनी धुरी पर एक रोटेशन पूरा कर रही है।

इससे दिन भी छोटे होने लगे हैं। कंप्यूटर, मोबाइल जैसे गैजेट्स में समय की भरपाई के लिए निगेटिव लीप सेकेंड लाया गया तो इससे ये गैजेट्स क्रैश हो सकते हैं।

ऐसे में आज हम एक्सप्लेनर में बताएंगे कि आखिर धरती इतनी तेज क्यों घूम रही है? इसकी वजह क्या है? इससे क्या कोई फायदा होगा या नुकसान है?

सवाल 1 : पूरी खबर पढ़ने से पहले जानिए कि लीप सेकेंड होता क्या है?

आप सभी लीप ईयर के बारे में जानते ही होंगे। जैसे हर 4 साल में 1 दिन जोड़ दिया जाता है। ठीक इसी तरह कभी-कभी 1 सेकेंड जोड़ने की जरूरत भी पड़ती है। लीप ईयर की ही तरह इसे लीप सेकेंड कहा जाता है।

धरती को 360 डिग्री घूमने यानी एक चक्कर लगाने में 86,400 सेकेंड या 24 घंटे लगते हैं। लेकिन अपनी धुरी पर ये गुरुत्वाकर्षण की वजह से लड़खड़ाने लगती है जिससे चक्कर पूरा करने में सेकेंड से भी कम वक्त का हेरफेर हो जाता है। अगर इस समय को सटीक रूप से नापा जाए तो दरअसल यह 86,400.002 सेकेंड के बराबर होता है।

हर दिन ये 0.002 सेकेंड जमा होते रहते हैं और एक साल में करीब 2 मिली सेकेंड जुड़ जाते हैं। इस तरह से करीब 3 साल में एक पूरा सेकेंड बन जाता है, लेकिन यह इतना छोटा वक्त है कि कई बार इसे पूरा होने में काफी लंबा वक्त लगता है।

इसका असर यह होता है कि इंटरनेशनल एटॉमिक टाइम यानी IAT से इसका तालमेल बिगड़ जाता है। इसे सही करने के लिए कई बार 1 सेकेंड को जोड़ कर घड़ियों का टाइम सही किया जाता है।

सवाल 2 : अब जानते हैं कि कैसे धरती तेजी से घूम रही है?

29 जून दिन 24 घंटे से कम का था, यानी अब तक सबसे छोटा दिन। इस दिन धरती ने अपनी एक्सिस यानी धुरी पर 24 घंटे से कम समय यानी 1.59 मिली सेकेंड (एक सेकंड के एक हजारवें हिस्से से थोड़ा अधिक) पहले ही यह चक्कर पूरा कर लिया। वहीं 26 जुलाई को भी धरती ने अपना एक चक्कर 1.50 मिली सेकेंड पहले पूरा कर लिया था।

इंडिपेंडेंट की रिपोर्ट के मुताबिक, पृथ्वी की अपनी धुरी पर घूमने की रफ्तार तेज हो गई है। 2021 में भी धरती के घूमने की रफ्तार तेज थी, लेकिन उस दौरान कोई नया रिकॉर्ड नहीं बना था। 2020 में भी धरती ने 1960 के दशक के बाद सबसे छोटे दिन का रिकॉर्ड बनाया था। उस साल 19 जुलाई को दिन 24 घंटे से 1.4602 मिली सेकेंड छोटा रहा था।
इंडिपेंडेंट की रिपोर्ट के मुताबिक, पृथ्वी की अपनी धुरी पर घूमने की रफ्तार तेज हो गई है। 2021 में भी धरती के घूमने की रफ्तार तेज थी, लेकिन उस दौरान कोई नया रिकॉर्ड नहीं बना था। 2020 में भी धरती ने 1960 के दशक के बाद सबसे छोटे दिन का रिकॉर्ड बनाया था। उस साल 19 जुलाई को दिन 24 घंटे से 1.4602 मिली सेकेंड छोटा रहा था।

सवाल 3 : धरती के तेज घूमने की वजह क्या है?

यदि हम लंबी अवधि में इसे देखें तो धरती के घूमने की गति धीमी हो रही है। वैज्ञानिकों के मुताबिक हर सदी में धरती एक चक्कर पूरा करने में कुछ मिली सेकेंड ज्यादा समय लेती है।

पृथ्वी की गति तेज होने की फिलहाल तो कोई स्पष्ट वजह नहीं बताई गई है, लेकिन कुछ वैज्ञानिकों का अनुमान है कि धरती के इनर या आउटर लेयर में बदलाव, समुद्र, टाइड या जलवायु परिवर्तन इसकी वजह हो सकता है।

कुछ वैज्ञानिकों का कहना है कि यह चांडलर वॉबल की वजह से हो सकता है, जो पृथ्वी के घूमने की धुरी में एक छोटा सा डीविएशन यानी विचलन है।

सवाल 4 : क्या इसका कोई फायदा है या नुकसान होगा?

रिपोर्ट के मुताबिक, यदि धरती तेज गति से घूमती रही तो एक नए निगेटिव लीप सेकेंड की जरूरत पड़ेगी, ताकि घड़ियों की गति को सूरज के हिसाब से चलाया जा सके।

निगेटिव लीप सेकेंड से बड़े नुकसान की भी आशंका जताई जा रही है। इससे स्मार्टफोन, कंप्यूटर और अन्य कम्यूनिकेशन सिस्टम की घड़ियों में गड़बड़ी पैदा हो सकती है। मेटा ब्लॉग की रिपोर्ट कहती है कि लीप सेकेंड वैज्ञानिकों और एस्ट्रोनॉमर्स यानी खगोलविदों के लिए तो फायदेमंद हो सकता है, लेकिन यह एक खतरनाक परंपरा है जिसके फायदे कम नुकसान ज्यादा हैं।

यह इसलिए क्योंकि घड़ियां 23:59:59 के बाद 23:59:60 पर जाती हैं और फिर 00:00:00 से दोबारा शुरू होती हैं। टाइम में यह बदलाव कंप्यूटर प्रोग्रामों को क्रैश कर सकता है और डेटा को करप्ट कर सकता है क्योंकि यह डेटा टाइम स्टैंप के साथ सेव होता है।

मेटा ने बताया कि यदि निगेटिव लीप सेकेंड जोड़ा जाता है तो घड़ियों का समय 23:59:58 के बाद सीधा 00:00:00 पर जाएगा और इसके विनाशकारी परिणाम हो सकते हैं। इस समस्या के हल के लिए इंटरनेशनल टाइमर्स को ड्रॉप सेकेंड जोड़ना होगा।

अमेरिका की बड़ी टेक कंपनियां जैसे कि गूगल, अमेजन, मेटा और माइक्रोसॉफ्ट जैसी कंपनियां लीप सेकेंड को खतरनाक बताते हुए इसे खत्म करने की मांग की है।

सवाल 5 : अब तक कितनी बार लीप सेकेंड जोड़ा जा चुका है?

सोलर टाइम और एटॉमिक टाइम में फर्क को समाप्त करने के लिए कॉर्नडिनेटेड यूनिवर्सल टाइम यानी UTC बनाया गया है। इसमें सामंजस्य बैठाने की कोशिश 1972 से हो रही है। इससे पहले समय को सूर्य और चंद्रमा की गति के आधार पर तय किया जाता था।

अगर लीप सेकंड जोड़ा जाता है तो यह कोई पहली बार नहीं होगा। दुनियाभर की घड़ियां जिस UTC के आधार पर चलती हैं उसे 27 बार लीप सेकेंड से बदला जा चुका है। असल में कुछ साल पहले तक सोचा जाता था कि पृथ्वी की अपनी धुरी पर घूमने की रफ्तार कम हो रही है।

ऐसा 1973 तक एटॉमिक क्लॉक से की गई गणना के बाद माना गया था। इसी के बाद इंटरनेशनल अर्थ रोटेशन एंड रेफरेंस सिस्टम्स सर्विस यानी IERS ने लीप सेकेंड जोड़ना शुरू किया जो 27वीं बार 31 दिसंबर 2016 को किया गया था।

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